वर्ष 1984 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई और उसके बाद हत्यारी भीड़ ने हजारों सिखों को अपना निशाना बनाया, उस वक्त मैं रिपोर्टर था। मैं अपने एक अन्य रिपोर्टर साथी तवलीन सिंह के साथ पूर्वी दिल्ली के कुछ इलाकों में गया, जहां सिखों के अंग-भंग शव खुले में पड़े हुए थे।
भीड़ द्वारा मारे गए लोगों के रिश्तेदारों की आंखों में व्याप्त डर को मैं कभी भूल नहीं सकता। दंगे में मारे गए लोगों के रिश्तेदार पिछले तीन दशक से बड़े और प्रभावशाली नेताओं के खिलाफ अदालत में एक लंबी लड़ाई लड़ रहे थे। इन नेताओं को खुले तौर पर उनके राजनीतिक दल की सरकारों द्वारा संरक्षण दिया जाता रहा।
1984 का सिख दंगा स्वतंत्र भारत के चेहरे पर हमेशा एक काले धब्बे की तरह रहेगा। उन दिनों भारत के राष्ट्रपति स्वर्गीय ज्ञानी जैल सिंह भी डरे हुए थे। जितने भी सिख ब्यूरोक्रेट और पुलिस अफसर थे, सबके मन में खौफ था। हर कोई उस समय हिंसा और अराजकता के हालात को खत्म कर शांति स्थापित करने के लिए नए प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरफ देख रहा था।
लेकिन जब राजीव गांधी ने अपने भाषण में यह कहा कि 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है,तो धरती हिलती है', इस एक बयान ने उन लाखों लोगों की उम्मीद पर पानी फेर दिया जो इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे थे। लोगों को यह लगा कि इस भीषण कत्लेआम को राजनीतिक रंग दे दिया गया है।
सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगे के मामले में फैसला सुनाते हुए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दिल्ली में सिखों की हत्या के लिए लोगों को उकसाने के अपराध में उम्रकैद की सुनाई है। इससे पहले निचली अदालत ने सज्जन कुमार को बरी कर दिया था लेकिन हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए कहा, 'नरसंहार के लिए जिम्मेदार अपराधी राजनीतिक संरक्षण में रहने के साथ ही अभियोजन और सजा से भी बचते रहे।'
अपने आदेश में हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि 'इस दंगे को राजनीतिक रसूख वाले लोगों द्वारा कानून-व्यवस्था को लागू करानेवाली एजेंसियों की मदद से अंजाम दिया गया।'
इस घटना के 34 साल बीत चुके हैं और हमें अपनी कानूनी प्रणाली की खामियों पर सोचने की जरूरत है, जिसकी वजह से मजबूत अभियोजन के अभाव में एक बड़ा अपराधी मुक्त होकर घूम रहा था। 1984 में केवल दिल्ली के अंदर 2,733 सिख मारे गए जबकि पूरे देश में 3,350 सिखों की निर्दयता से हत्या कर दी गई। इस नरसंहार के एक मामले में अपराधियों को सजा दिलाने में 34 साल का वक्त लगा। सज्जन कुमार के खिलाफ इस तरह के तीन और मामले अभी लंबित हैं।
मैं यहां कुछ गंभीर सवाल पूछना चाहता हूं: क्या वे राजनेता दोषी नहीं हैं जिन्होंने अपराधियों को बचाने और उन्हें संरक्षण देने का काम किया? क्या वे लोग दोषी नहीं हैं जो ये जानते हुए भी चुप्पी साधे रहे कि इन अपराधियों के हाथ निर्दोषों के खून से सने हैं? दिल्ली में सैकड़ों लोगों ने अपनी आंखों के सामने इस कत्लेआम को देखा, कई चश्मदीद आगे आकर गवाही देना चाहते थे। किसने इन लोगों को गवाही देने से रोका?
जब तक हम मानवता के हत्यारों को सजा नहीं देंगे, तब तक इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। (रजत शर्मा)
देखिए, रजत शर्मा के साथ 'आज की बात' 17 दिसंबर 2018 का पूरा एपिसोड