प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को विपक्ष पर सीधा हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को राजनीतिक दलों द्वारा गुमराह किया जा रहा है। बीते एक हफ्ते में दूसरी बार किसानों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर आरोप लगाया कि उनके राज्य में 70 लाख किसानों को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से ‘वंचित’ रखा गया। उन्होंने लेफ्ट पार्टियों और कांग्रेस पर किसानों के मुद्दों पर दोहरे मापदंड का सहारा लेने का भी आरोप लगाया। मैंने उनका पूरा भाषण सुना तो लगा कि प्रधानमंत्री किसानों के आंदोलन का फायदा उठाने की कोशिश में जुटे राजनीतिक दलों से दुखी और नाराज हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में किसानों को बार-बार यह समझाने की कोशिश की कि नए कानून उनके खुद के भले के लिए लाए गए हैं और वह ऐसे किसी भी प्रावधान को संशोधित करने के लिए भी तैयार हैं जो किसानों को ठीक नहीं लग रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार अब भी किसानों के साथ बातचीत फिर से शुरू करने और उनकी मांगों पर नए सिरे से विचार करने के लिए तैयार है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा सरकार किसानों के सामने झुकने के लिए तैयार है, लेकिन वह किसानों के बीच घुसपैठ कर चुके सियासी लोगों की बात बिल्कुल नहीं सुनेगी।
मोदी ने जोर देते हुए कहा कि जो राजनीतिक दल उन्हें चुनावों में नहीं हरा पाए, वे किसानों को आगे करके पीछे से वार कर रहे हैं, उनकी आड़ में अपना एजेंडा थोप रहे हैं और ये सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि लेफ्ट पार्टियां अपने झंडे को लेकर किसानों के बीच घुस गई हैं और आंदोलन की डोर पकड़ ली है। मोदी ने कहा कि ये लोग न तो किसानों को सरकार से बात करने देते हैं और न किसी भी तरह से कोई रास्ता निकलने देना चाहते हैं।
अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने दिखाया था कि कैसे लेफ्ट के समर्थकों ने शरजील इमाम और उमर खालिद जैसे ऐंटिनेशनल और वरवरा राव जैसे माओवाद समर्थकों की रिहाई की मांग करते हुए पोस्टर और प्लेकार्ड्स लहराए थे। लेफ्ट पार्टियों द्वारा सरकार को सौंपे गए ज्ञापन में भी जेल में बंद इन लोगों की रिहाई की मांग की गई थी।
इसीलिए पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि जिस लेफ्ट ने 30 सालों में बंगाल की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया और तृणमूल कांग्रेस से चुनावों में मात खाई, अब भोले-भाले किसानों को गुमराह करने के लिए पंजाब पहुंच गया है। हन्नान मोल्लाह, सीताराम येचुरी और डी. राजा जैसे लेफ्ट के तमाम नेताओं को हम किसान नेताओं के बीच, किसानों के मुद्दों पर बोलते हुए लगभग हर रोज देख रहे हैं। सच्चाई यह है कि लेफ्ट फ्रंट द्वारा शासित केरल में एक भी APMC (कृषि उपज विपणन समिति) नहीं है जहां किसान अपनी उपज बेच सकें। खुद प्रधानमंत्री ने कहा कि जो लेफ्ट पार्टियां पश्चिम बंगाल और केरल में किसानों के हित की बात नहीं करतीं, वे पंजाब के किसानों को भड़का रही हैं। मोदी ने कहा, ‘हारे हुए, थके हुए लोग, इवेंट मैनेजमेंट के जरिए अपना चेहरा चमकाने की कोशिश कर रहे हैं।’
न तो केरल से सांसद चुने गए राहुल गांधी, और न ही वामपंथी दल सूबे में एपीएमसी की मांग कर रहे हैं, लेकिन दिल्ली में वे APMC मंडियों का रोना रो रहे हैं और कह रहे हैं कि यदि ये खत्म हो गईं तो किसान उद्योगपतियों के गुलाम हो जाएंगे। ऐसा कैसे हो सकता है कि केरल में APMC की जरूरत नहीं है, लेकिन यूपी, पंजाब और हरियाणा में यह जरूर होनी चाहिए? ऐसा दोहरा मानदण्ड क्यों है? इसका जवाब न लेफ्ट ने दिया, और न ही कांग्रेस ने।
इस बात में जरा भी शक नहीं है कि दिल्ली के बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन के पीछे लेफ्ट है। लगभग हर रोज हम लेफ्ट से जुड़े हन्नान मोल्लाह, अशोक ढवले (महाराष्ट्र से CPI-M के नेता), दर्शन सिंहऔर सुरजीत सिंह फूल को किसानों के मुद्दे पर बात करते हुए देखते हैं। इन्ही लोगों के हाथों में आंदोलन की कमान है। हैरानी की बात यह भी है कि बंगाल में जो लोग एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं, वे दिल्ली में आकर मोदी विरोध के नाम पर एक हो जाते हैं। जिस किसान आंदोलन को लेफ्ट चला रहा है, उसे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सपोर्ट कर रही हैं।
मोदी ने शुक्रवार को सीधे ममता से भी पूछ लिया कि उन्होंने पश्चिम बंगाल के 70 लाख किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि योजना का पैसा किसानों के खाते में डालने में रुकावट क्यों पैदा की। इस योजना के तहत मोदी सरकार साल में 3 बार 2-2 हजार रुपये की रकम सीधे किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर करती है। प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को देश के 9 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 18,000 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए, लेकिन पश्चिम बंगाल में 70 लाख किसानों को पैसा नहीं मिला क्योंकि तृणमूल सरकार ने इस योजना को लागू नहीं होने दिया। अगर ममता सरकार ने इस योजना को लागू किया होता, तो सूबे के 70 लाख किसानों के खाते में 8,500 करोड़ रुपये जा चुके होते और हर किसान को कुल 12 हजार रुपये मिल चुके होते।
तृणमूल सरकार द्वारा इस योजना को लागू न करने के पीछे एकमात्र वजह यही है कि ममता बनर्जी नहीं चाहतीं कि नरेंद्र मोदी को इसका क्रेडिट मिले। ममता बनर्जी जहां कोलकाता में बैठकर किसान आंदोलन को सपोर्ट कर रही हैं, लेफ्ट पार्टियां खुले तौर पर किसानों के आंदोलन को चला रही हैं, वहीं एक तीसरी पार्टी कांग्रेस इस आंदोलन में मोदी को घेरने का मौका देख रही है।
मोदी ने शुक्रवार को कांग्रेस पर भी निशाना साधा और कहा कि उसके नेताओं ने ऑन रिकॉर्ड APMC (मंडियों) और बिचौलियों की भूमिका को खत्म करने की मांग की है और उन्होंने कृषि क्षेत्र मल्टिनैशनल और प्राइवेट सेक्टर के इन्वेस्टमेंट का भी समर्थन किया था। लेकिन अब कांग्रेस नेताओं ने गिरगिट की तरह रंग बदल दिया है।
मोदी शुक्रवार को काफी अग्रेसिव थे और मुझे लगता है कि ये जरूरी भी था। मोदी कांग्रेस, लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस के दोहरे चरित्र को उजागर करना चाहते थे। कई केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के प्रवक्ता इस बारे में पहले भी बात करते रहे हैं, लेकिन मोदी की बात का जो असर होता है, वह किसी और की बात का नहीं हो सकता। विपक्ष के नेता इस भाषण में भी कमी निकालने की कोशिश करेंगे। कोई कहेगा कि मोदी ने ये सब पहले क्यों नहीं कहा, कोई कहेगा कि उन्होंने धरना स्थलों पर किसानों के बीच जाकर क्यों नहीं बात की, तो कोई कहेगा कि मोदी विरोधियों को डराना चाहते हैं। मुझे लगता है कि ये सारी बातें बेमानी हैं।
असल में हमें इस आंदोलन में आग लगाने वालों की हरकतों पर ध्यान देना चाहिए। लेफ्ट के लोग किसान आंदोलन का सहारा लेकर कभी टुकड़े-टुकड़े गैंग को जेल से छोड़ने की मांग करते हैं, तो कभी अर्बन नैक्सलाइट्स को जेल से बाहर निकालने की मांग करते हैं। राहुल गांधी हर रोज अंबानी-अडानी का राग अलापते हैं। ममता बनर्जी के सामने पश्चिम बंगाल के चुनाव चुनौती बनकर खड़े हैं। ये सभी सियासी मुद्दे हैं, जिनका किसानों से कोई लेना-देना नहीं है, और यही मोदी के लिए विपक्ष पर हमला करने का सही समय था।
पीएम के तीखे हमले के बावजूद इस बात की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि विपक्ष किसानों को भड़काना, बहकाना, डराना बंद कर देगा। हमें उनसे किसी सकारात्मक परिणाम की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। बल्कि हमें पॉलिटिकली अनकनेक्टेड किसानों से नए कृषि कानूनों को समझने और अंतिम फैसला करने की उम्मीद करनी चाहिए। ये तीनों कानून किसानों के फायदे के लिए हैं और यदि इसमें कोई कमी है तो सरकार उसमें संशोधन करने के लिए तैयार है।
कई किसान नेताओं से बात की है। उनमें से कुछ ने कहा कि जब-जब राहुल गांधी हमारे समर्थन में बोलते हैं, हमारा आंदोलन कमजोर पड़ जाता है। उन्होंने ये भी कहा कि जब वामपंथी ’टुकड़े-टुकड़े गैंग’ और अर्बन नैक्सलाइट्स से संबंधित मुद्दे जोड़ देते हैं, तो हमारा आंदोलन बदनाम हो जाता है। किसानों को सोचना चाहिए कि जो ममता और लेफ्ट बंगाल में राजनीतिक दुश्मन है, जो लेफ्ट और कांग्रेस केरल में एक-दूसरे के कट्टर विरोधी हैं, वे तीनों किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली में एक हो जाते हैं। उनका एकमात्र एजेंडा मोदी को घेरना है। जब ये बात किसान भाई पूरी तरह समझ जाएंगे तो रास्ता भी निकल आएगा। हालांकि मुझे लगता है कि कुछ किसान नेताओं को धीरे-धीरे यह बात समझ में आ रही है और आज जो नरेंद्र मोदी ने कहा उससे बेहतर परिणामों की उम्मीद की जा सकती है। (रजत शर्मा)
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