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Rajat Sharma’s Blog: किसानों को सियासी दलों का मोहरा बनने से बचना चाहिए

किसानों ने साफ कह दिया कि वे सरकार से बात करने आए हैं और आगे भी आएंगे, लेकिन बात तभी बनेगी जब सरकार तीनों कृषि कानून वापस ले लेगी।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: January 16, 2021 18:36 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

दिल्ली में शुक्रवार को केंद्र और किसान नेताओं के बीच 5 घंटे तक चली बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला क्योंकि किसान नेता कृषि कानूनों को खत्म करने की अपनी मांग पर अड़े रहे, जबकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने उनसे इन कानूनों के एक-एक बिंदु पर चर्चा करने की बात कही थी।

यह मीटिंग तक शुरू होते ही खत्म हो गई जब केंद्र ने किसान नेताओं से उन प्रावधानों के बारे में पूछा जिनपर उन्हें आपत्ति थी। इसके जवाब में किसान नेताओं ने कहा कि वे कानून के प्रावधानों पर बात नहीं करेंगे और बल्कि उनकी मांग है कि तीनों कानूनों को रद्द किया जाए।

केंद्र सरकार के मंत्रियों ने किसान नेताओं से पूछा कि आपकी आशंका क्या है, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि सरकार ‘हां’ या ‘ना’ में बता दे कि वह कानून वापस ले रही है या नहीं। तोमर ने ये भी कहा कि अगर किसान नेताओं को कानून की बारीकियों पर बात नहीं करनी तो किसान सगंठन अपने एक्सपर्ट्स की कमेटी बना दें, इसके जरिए भी बात हो सकती है। लेकिन किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि न तो वे कोई कमेटी बनाएंगे, न ही सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से कोई बात करेंगे। 

तोमर ने किसान नेताओं को समझाने की बहुत कोशिश की, वे न तो सुनने को तैयार थे, न समझने को। वे तीनों कानूनों को खत्म करने की अपनी मांग पर अड़े रहे। फिर ये मीटिंग पांच घंटे तक कैसे खिंच गई? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ किसान संगठनों के नेताओं ने मांग की कि हरियाणा और पंजाब में जिन किसानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए हैं, वे वापस लिए जाएं। वहीं, कुछ किसान संगठनों ने आढ़तियों के खिलाफ चल रही ईडी की जांच को रोकने की मांग की।

किसानों ने साफ कह दिया कि वे सरकार से बात करने आए हैं और आगे भी आएंगे, लेकिन बात तभी बनेगी जब सरकार तीनों कृषि कानून वापस ले लेगी। अब अगले दौर की बातचीत 19 जनवरी को होगी और नरेंद्र सिंह तोमर को अभी भी उम्मीद है कि अगले राउंड में बात बन जाएगी। तोमर ने कहा कि सरकार को कड़ाके की ठंड में खुले में बैठे किसानों और उनके परिवारों की चिंता है।

नरेन्द्र सिंह तोमर बहुत पुराने नेता हैं, और बतौर किसान उनकी जड़ें मध्य प्रदेश के खेतिहर समुदाय से जुड़ी हुई हैं। वह अन्नदाता की मुश्किलें भी जानते हैं और किसानों के मुद्दे पर हो रही सियासत को भी समझते हैं। यही वजह है कि वह बार-बार काम बनने की उम्मीद जताते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि किसान संगठनों के कुछ नेता ये तय कर चुके हैं कि आंदोलन 26 जनवरी तक चले और इसके बाद ही कुछ रास्ता निकले। इसका अंदाजा भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की बात सुनकर हुआ जब उन्होंने कहा कि बात होती रहेगी और मीटिंग में भी आते रहेंगे, लेकिन सरकार को कृषि कानून वापस लेने पड़ेंगे और किसान गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे।

किसान संगठन पूरी ताकत के साथ ट्रैक्टर रैली की तैयारी कर रहे हैं और इसमें हिस्सा लेने के लिए पंजाब और हरियाणा से सैकड़ों ट्रैक्टर दिल्ली की तरफ रवाना हो चुके हैं। 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च में हिस्सा लेने के लिए हरियाणा के फतेहाबाद-सिरसा से सैकड़ों की संख्या में ट्रैक्टरों का काफिला दिल्ली के लिए रवाना हुआ। सड़क पर चल रहे ट्रैक्टर्स का यह काफिला लगभग 2 किलोमीटर लंबा है। इस काफिले में तमाम ऐसे ट्रैक्टर्स भी शामिल हैं जिन्हें किसानों ने खासतौर से 26 जनवरी के की ट्रैक्टर रैली के लिए खरीदा गया है।

किसान दिल्ली के बाहरी इलाकों में बीते 51 दिनों से धरने पर बैठे हैं। अब तक लोगों की सहानुभूति किसानों के साथ रही है और इसकी एक बड़ी वजह ये है कि कड़ाके की सर्दी का सामना कर रहे किसानों का प्रदर्शन शान्तिपूर्ण है। दूसरी बात ये है कि अब तक किसानों ने नेताओं और राजनीतिक दलों को अपने आंदोलन से दूर रखा है। लेकिन अगर किसानों को भड़काने की बात हुई और उनके आंदोलन में सियासी लोग घुस गए, तो जाहिर है लोगों का सपोर्ट कम हो जाएगा।

गणतंत्र दिवस सेना के हमारे बहादुर अफसरों, जवानों और शहीदों को याद करने का दिन है। यह हमारे शूरवीरों की वीरता का, उनके शौर्य का पर्व है। यदि गणतंत्र दिवस समारोह में बाधा डालने की कोशिश की गई तो इससे सारे देश की बदनामी होगी और दुनिया में भारत का नाम खराब होगा। आंदोलनकारी किसान अपने प्रति लोगों की सहानुभूति और प्यार खो देंगे। मैं अभी भी हमारे किसान नेताओं से अपील करता हूं कि वे एक बार जरूर विचार करें कि उन्हें 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालना चाहिए या नहीं। हालांकि ऐसा मुश्किल ही लग रहा है क्योंकि तमाम सियासी ताकतें किसानों को भड़काने में लगी हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलकर तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को थकाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल ने कहा कि बीजेपी सरकार को तीन कृषि कानूनों को खत्म करना ही होगा। राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी 4-5 उद्योगपतियों को फायदा पहुंचा रहे हैं और वे ही देश भी चला रहे हैं। उन्होंने मोदी को याद दिलाया कि किस तरह कांग्रेस ने भट्टा पारसौल आंदोलन के बाद एनडीए सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन से पीछे हटने के लिए मजबूर किया था।

अब इस बात को सब समझते हैं कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट, ये दोनों सियासी दल अपने फायदे के लिए किसानो के आंदोलन का इस्तेमाल कर रहे हैं। कांग्रेस और कम्युनिस्ट, दोनों ही पार्टियां किसानों के जरिए अपनी बंजर हो चुकी जमीन पर वोटों की फसल उगाना चाहती हैं। उनकी ख्वाहिश है कि राजनीतिक रूप से बंजर उनकी जमीन पर मेहनत किसानों की लगे, खून-पसीना किसान का बहे और उनके लिए बंपर सियासी फसल पैदा हो।

अगर राहुल गांधी को वाकई में किसानों की चिंता होती तो वह दिल्ली की कड़कड़ाती सर्दी में सड़क पर ठिठुर रहे किसानों को उनके हाल पर छोड़कर नए साल की छुट्टी मनाने इटली न जाते। अगर राहुल गांधी को किसानों की फिक्र होती तो विदेश में न्यू इयर मनाने की बजाए बारिश में सड़क पर भीग रहे किसानों के पास पहुंचते।

क्या ये बात सही नहीं है कि पंजाब के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने कृषि कानूनों में इसी तरह के बदलावों का वादा किया था जैसा कि मोदी सरकार ने किया है? क्या ये सही नहीं है कि कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा के इलेक्शन में अपने मैनिफेस्टो में APMC ऐक्ट में बदलाव करके कृषि क्षेत्र में प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देने का, और किसानों को कहीं भी और किसी को भी फसल बेचेने का हक देने का वादा किया था? अब अगर यही बदलाव नरेंद्र मोदी की सरकार ने कर दिए कांग्रेस नेता उन्हें ‘किसानों का दुश्मन’ और ‘अंबानी और अडानी का दोस्त’ करार दे रहे हैं। इसे कैसे जस्टिफाई किया जा सकता है?

मुझे लगता है कि किसान भाइयों को विपक्षी दलों की सियासत का मोहरा नहीं बनना चाहिए? उन्हें अपना आंदोलन चलाने का और अपनी आवाज उठाने का पूरा हक है, लेकिन सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट की बात भी सुननी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा है कि रास्ता बातचीत से ही निकलेगा, क्योंकि जब बातचीत के रास्ते बंद होते हैं तो दोनों पक्षों में दूरियां बढ़ती जाती हैं और फिर रास्ते अलग हो जाते हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 15 जनवरी, 2021 का पूरा एपिसोड

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