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Rajat Sharma’s Blog: किसान नेता अब पूरी तरह बदनाम हो चुके हैं

पिछले दो महीनों से मैं ये लगातार कह रहा हूं कि किसानों के आंदोलन में असामाजिक तत्वों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने घुसपैठ की है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : January 28, 2021 17:25 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

देश के मूड को देखते हुए अब किसान संगठनों के नेता दिल्ली में हिंसक घटनाओं के लिए माफी मांग रहे हैं। गणतंत्र दिवस पर लाल किले की शान में गुस्ताखी, पुलिसकर्मियों पर तलवारों से हमले, ट्रैक्टर से पुलिसकर्मियों को कुचलने की कोशिश और सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान के लिए इन नेताओं ने लोगों से माफी मांगना शुरू कर दिया है। 26 जनवरी को जो हुआ उस पर किसान नेता अब पश्चाताप करेंगे। किसान संगठन के नेताओं ने 30 जनवरी को गांधी जी की शहादत दिवस पर अनशन करने का फैसला किया है।

इन किसान नेताओं का कहना है कि गणतंत्र दिवस पर जो हुआ उससे बेहद दुखी हैं लेकिन ये अपनी गलतियां मानने को तैयार नहीं हैं। बलवीर सिंह राजेवाल और गुरनाम सिंह चढ़ूनी जैसे नेताओं ने आरोप लगाया कि ये सारा उपद्रव 'सरकार के तीन एजेंटों' ने कराया। बलवीर सिंह राजेवाल ने तीन किसान नेताओं के नाम लिए और कहा कि सरवन सिंह पंढेर, सतनाम सिंह पन्नू और दीप सिद्धू सरकारी आदमी हैं, इन लोगों ने हिंसा भड़काई। अब इन लोगों को अपने बीच घुसने नहीं देना है। किसान नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि यह हिंसा आंदोलन को बदनाम करने के लिए सरकार द्वारा रची गई एक साजिश का नतीजा है। इन नेताओं ने कहा कि उनका आंदोलन जारी रहेगा।

बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने आपको किसान नेताओं के असली चेहरे दिखाए। जो लोग चौबीस घंटे पहले तक किसान आंदोलन के नेता बनते थे, जो बड़े-बड़े दावे करते थे, अब वो पर्दे के पीछे छिप गए हैं। ये लोग तरह-तरह के बहाने बना रहे हैं और तरह-तरह के झूठ बोल रहे हैं। ये सब सच पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं। किसानों  के नाम पर नेतागिरी करने वाले राकेश टिकैत, गुरमान सिंह चढ़ूनी, योगेन्द्र यादव और बलबीर सिंह राजेवाल जो शान्ति का वादा कर रहे थे, शांतिपूर्ण ट्रैक्टर रैली का जिन्होंने वादा किया था, वही अब दिल्ली में हुई हिंसा के लिए पुलिस पर उंगली उठा रहे हैं। ये नेता पुलिस से एक बात कहते हैं और अपने कार्यकर्ताओं के बीच दूसरी बात कहते हैं। 

 
हमने दिखाया कि कैसे राजेवाल ने पहले मीडिया से कहा कि पुलिस ने हमारे रूट पर बैरिकेड लगा दिए और दिल्ली जाने वालों से कहा कि जिधर चाहे चले जाओ, लाल किले चले जाओ, कोई रुकावट नहीं थी। राजेवाल ने कहा, '26 जनवरी का दिन हो और लाल किले में मौजूद सारे पुलिसवाले चौकी छोड़कर भाग जाएं, इसे क्या मानें? 4 घंटे तक वहां पुलिस का कोई जवान या अफसर नहीं आया। उन्हें (भीड़ को) खुली छूट दी गई कि जो तुम्हारा मन हो वो करो। उन्होंने वहां झंडा लहरा दिया।'
 
बलवीर सिंह राजेवाल पहले पुलिस को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं और करीब एक घंटे बाद बाद वो ये भी कबूल करते हैं कि उनके आंदोलन में शामिल कुछ लोगों ने किसानों को भड़काया और बहकाया था। ऐसा माहौल बना दिया था जैसे कि दिल्ली फतह करनी हो, लाल किले पर हमला करना हो। इसी तरह के बयानों का असर हुआ और नौजवान जोश में आ गए और होश खो बैठे।
 
मंगलवार की रात यही राजेवाल अपने समर्थकों से कहा रहे थे, 'मैं सरकार के खरीदे इन लोगों से नहीं डरता। मैं मौत से नहीं डरता। जो घटिया काम करते हैं, जैसा कल हुआ, जो दीप सिद्धू और सरवन सिंह पंढेर जैसे लोगों ने किया, हम विनती करते रहे कि ऐसा काम मत करो। हमारे बीच का भाईचारा खत्म मत करो, ऐसे लोगों को बिल्कुल मुंह मत लगाओ। मेरी आपसे अपील है कि पंजाब में भी ये बता दो कि सबसे बड़े गद्दार पन्नू, पंढेर और दीप सिद्धू हैं। आप जानते हैं कि ये समाज विरोधी लोग हैं। ऐसे लोगों को सिर चढ़ाओगे तो आपको गुमराह ही करेंगे।'

पिछले दो महीनों से मैं ये लगातार कह रहा हूं कि किसानों के आंदोलन में असामाजिक तत्वों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने घुसपैठ की है। मैंने उनका भी नाम लिया जो धरनास्थल के मंच से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपशब्द बोल रहे थे लेकिन किसान नेताओं ने इसकी कोई परवाह नहीं की। मैंने कहा था कि यह विरोध प्रदर्शन उनके हाथ से निकल सकता है, क्योंकि इस किसान आंदोलन की सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि इसका कोई नेता नहीं हैं, कोई नेतृत्व नहीं है। जो खुद को आंदोलन का नेता बता रहे हैं, उनकी कोई सुनता नहीं हैं और वो खुद कब क्या कहें, इसका कोई भरोसा नहीं हैं। अब पिछले चौबीस घंटे से किसान संगठनों का हर नेता ये बता रहा है कि उसने नियम कायदों का पालन किया और उनका ट्रैक्टर मार्च शांतिपूर्ण रहा और आईटीओ, लाल किले पर हंगामा करने वाले तो दूसरे लोग थे।

अपने शो में मैंने आपको किसान नेता भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी का बयान भी सुनाया। चढ़ूनी दो दिन पहले तक कह रहे थे कि अगर पुलिस ने रास्ता रोका तो बैरीकेड्स तोड़कर ट्रैक्टर परेड निकालेंगे। वही चढ़ूनी अब कह रहे हैं कि उन्होंने तो पुलिस को पहले ही बता दिया था कि नए रूट से सभी किसान खुश नहीं हैं और वो बगावत कर सकते हैं। पुलिस ने उनकी बात नहीं सुनी, कुछ नहीं किया, इसीलिए हिंसा हो गई। राकेश टिकैत ने भी अपने समर्थकों को 'झंडा' और 'डंडा' के साथ आने के लिए कहा था।

किसान नेताओं के बीच इस कलह की वजह से यूपी के दो किसान संगठन, भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) और राष्ट्रीय किसान मजदूर यूनियन इस आंदोलन से अलग हो गए। उनके समर्थकों ने बुधवार शाम को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में चिल्ला बॉर्डर पर धरना स्थल को छोड़ दिया और दिल्ली-नोएडा मार्ग को क्लियर कर दिया। भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) के ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने कहा, 'हम किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष करने आए थे। किसानों के हक की लड़ाई लड़ने आए थे, देश को बदनाम करने नहीं। मंगलवार को जो हुआ उससे पूरा देश आहत है। लाल किले की घटना और पुलिस पर हमले की घटना से दुखी हूं। अब संगठन का धरना खत्म कर रहा हूं। देश के किसानों को आगाह करना चाहता हूं कि वो हम पर भरोसा करें, उनके हित में काम करते रहेंगे।’

इस घटनाक्रम से दो-तीन बातें साफ हो जाती हैं। जो किसान नेता कल तक अपने आप को देश भर के किसानों का ठेकेदार बताते थे, वो अब एक्सपोज हो गए हैं। कोई पन्नू को दोषी बता रहा है, कोई पंढेर को तो कोई दीप सिद्धू को। लेकिन जब यही पन्नू और पंढेर इन्हीं किसान नेताओं के साथ धरने पर बैठे थे, इनके साथ विज्ञान भवन मीटिंग्स में जाते थे तो किसी ने नहीं कहा था कि ये दंगाई हैं। ट्रैक्टर रैली के पहले की रात को कुछ लोगों ने किसान नेताओं के मंच पर कब्जा कर लिया था और कहा था कि किसान यूनियन के नेता बिक गए हैं, अब हम लीडर हैं। उन्होंने ऐलान किया था कि वो लाल किले पर ट्रैक्टर लेकर जाएंगे।

आज जो लोग पन्नू और पंढेर का गाना गा रहे हैं उन्हें ये बात पुलिस को बतानी चाहिए थी। लेकिन ये लोग चुपचाप रजाइयां ओढ़कर सोते रहे। सुबह-सुबह जब कुछ लोगों ने तय समय से 4 घंटे पहले सुबह 8 बजे ही ट्रैक्टर निकाल दिए, बैरीकेड तोड़ दिए तो ना टिकैत, ना दर्शन पाल सिंह और ना ही चढ़ूनी ने उन्हें रोकने की कोशिश की। इसलिए अब इन किसान नेताओं की बातों पर किसी पर भरोसा नहीं होता। इन्होंने अपना विश्वास खो दिया, लेकिन पन्नू और पंढेर भी दूध के धुले नहीं हैं। इन्होंने पुलिस से वादाखिलाफी और साजिश की। पुलिस पर हमला करवाया।

और अब बात करते हैं गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के अपराधियों के बारे में

दीप सिद्धू को लाल किले में हुए उपद्रव का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है। किसान संगठनों के ज्यादातर नेता दीप सिद्धू का नाम ले रहे हैं। मैं आपको इस शख्स के बारे में भी बताता हूं। दीप सिद्धू पंजाब के मुक्तसर जिले का रहने वाला है। दीप सिद्धू अभिनेता है और वो पंजाबी फिल्मों में काम कर चुका है। चूंकि दीप सिद्धू 2019 के लोकसभा चुनाव में सनी देओल के लिए कैंपेन कर रहा था, चुनाव कैंपेन टीम में शामिल था इसलिए उसकी बीजेपी नेताओं के साथ तस्वीरें हैं। इसी आधार पर किसान संगठनों के नेता दीप सिद्धू को बीजेपी और सरकार का आदमी बता रहे हैं। हालांकि सनी देओल ने दिसंबर में ही ये ऐलान कर दिया था कि दीप सिद्दू का उनके साथ कोई रिश्ता नहीं है। अब वो उनके साथ नहीं हैं। दूसरी बात दीप सिद्धू पिछले दो महीने से किसान आंदोलन में लगातार शामिल था। किसान नेताओं के साथ संपर्क में था और मीटिंग्स में उनके साथ था। दीप सिद्धू आंदोलन में शामिल लोगों को संबोधित भी करता था, लेकिन उस समय किसान नेताओं ने दीप सिद्धू पर कोई इल्जाम नहीं लगाए। क्या किसान नेताओं को सिद्धू के इरादों के बारे में कोई जानकारी थी?

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता जिन दो और लोगों को हिंसा और दंगे के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं वो हैं सरवन सिंह पंढेर और सतनाम सिंह पन्नू। सरवन सिंह पंढेर पंजाब में माझा इलाके के किसान संगठन किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी के महासचिव हैं। इस संगठन की स्थापना सतनाम सिंह पन्नू ने 2007 में किसान संघर्ष कमेटी से अलग होकर किया था। 13 साल पुराने इस संगठन का बेस अमृतसर है। सात-आठ जिलों के किसान और खेतिहर मज़दूर इस संगठन से जुड़े हैं। सरवन सिंह पंढेर इस संगठन का चेहरा हैं। हालांकि ये सही है कि पंढेर और पन्नू ने दो दिन पहले ही साफ कह दिया था कि वो अपने सपोर्टर्स के साथ रिंग रोड पर ही ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे, उन्हें पुलिस का दिया हुआ रूट मंजूर नहीं हैं। लेकिन अब सरवन सिंह पढ़ेर कह रहे हैं कि जो हुआ उसके लिए तो दीप सिद्धू जिम्मेदार है। उसने ही सब करवाया और वो बीजेपी का आदमी है।

दिल्ली के पुलिस कमिश्रर एस.एन श्रीवास्तव ने एक बड़ी बात कही। उन्होंने बताया कि 25 जनवरी की शाम से ही ट्रैक्टर परेड को लेकर किसानों को भड़काने का काम शुरू हो गया था। जगह-जगह भड़काऊ भाषण दिए गए, और फिर किसान नेताओं ने हुड़दंगियों को आगे कर दिया। एस. एन. श्रीवास्तव ने कहा कि तय हुआ था कि बारह बजे किसान रैली निकालेंगे। लेकिन वो सुबह 7 बजे ही मुकरबा चौक पहुंच गए। सतनाम सिंह पन्नू और दर्शन पाल सिंह वहीं बैठ गए। पन्नू ने भड़काऊ भाषण दिया और जिस रूट पर जाने की बात हुई थी वहां जाने की बजाए रूट से डायवर्ट हुए।

इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने अस्पतालों में इलाज करवा रहे पुलिसकर्मियों बात की। घायल पुलिसकर्मियों में कई महिला पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। पुलिसवालों ने बताया कि कैसे प्रदर्शनकारियों ने उन पर लाठी, लोहे रॉड, तलवारें और तेज रफ्तार ट्रैक्टर से हमला किया। घायल पुलिसकर्मियों ने कहा कि कैसे उन्होंने अत्यधिक संयम बरता और फायरिंग नहीं की। किसी भी तरह की सख्त कार्रवाई से जान का भारी नुकसान हो सकता था। सीनियर अफसरों की तरफ से कहा गया था कि कम से कम फोर्स का इस्तेमाल करना है। हिंसा के बारे में बताते बताते कई पुलिसवाले सहम गए। कुछ ने तो यहां तक कहा कि उन्हें लगा नहीं था कि वो जिंदा बचेंगे। लाल किले पर मौजूद कॉन्स्टेबल संदीप पर भी दंगाइयों ने तलवार से हमला किया। उनके हाथ में फ्रेक्चर है। संदीप ने बताया कि हमला करने वाले दंगाई नशे में थे। दंगाइयों के बीच कॉन्स्टेबल रेखा भी घिर गईं तो साथी पुलिसवालों ने उन्हें वहां से बचाकर बाहर निकाला। रेखा की चोट इतनी गहरी है कि वो ठीक से बोल भी नहीं पा रही हैं। उनकी पसली में चोट आई है। 
 
वजीराबाद के एसएचओ पीसी यादव भी लालकिले पर तैनात थे। वे अपने लोगों के साथ दंगाइयों को रोक रहे थे लेकिन धीरे-धीरे दंगाइयों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई कि पुलिसवाले कम पड़ गए। एसएचओ पीसी यादव के कुछ साथी बुरी तरह घायल हो गए। वो अपने घायल साथी को उठाकर हॉस्पिटल की तरफ जाने की कोशिश कर रहे थे, इसी दौरान कुछ दंगाइयों ने उन्हें और उनके घायल साथी को घेर लिया और फिर उनपर लाठी-डंडों और हथियारों से हमला कर दिया। दंगाइयों ने पीसी यादव के हेलमेट पर तलवार से वार किया, जिससे हेलमेट टूट गया। उसके बाद पीसी यादव बेहोश हो गए।

एक सवाल सब पूछ रहे हैं कि पुलिसवालों पर हमला हुआ, तलवारें चली और वो जख्मी हुए तो भी पुलिस ने गोली क्यों नहीं चलाई? तिरंगे का अपमान हुआ, लाल किले की शान में गुस्ताखी हुई तो भी पुलिस ने फायरिंग क्यों नहीं की? पुलिस इतनी बेबस क्यों नजर आई? सच तो ये है कि कुछ किसान नेता चाहते थे कि गोली चले। कुछ राजनैतिक दल भी यही चाहते थे कि खून की नदियां बहे। साजिश तो इस बात की थी कि एक और जालियांवाला बाग बना दिया जाए। मंशा तो ये थी कि नरेन्द्र मोदी को जनरल डायर बना दिया जाए।

सरकार इस मंशा को समझती थी इसलिए पुलिस को संयम बरतने की हिदायत दी गई थी। आज जो नेता पूछ रहे हैं कि पुलिस ने एक्शन क्यों नहीं लिया। दंगा करने वालों को लाल किले तक क्यों पहुंचने दिया। उन्हें रोका क्यों नहीं। अगर गोली चलती तो यही लोग पूछते कि पुलिस ने किसानों का खून क्यों बहाया? अगर पुलिस की गोली से एक व्यक्ति भी मर जाता तो ये लोग मोदी को मौत का सौदागर बताते। इसलिए पुलिस की तारीफ होनी चाहिए कि उन्होंने चोट खाई, अपने जिस्म पर जख्म लिए लेकिन गोली नहीं चलाई। किसी का खून नहीं बहाया। लेकिन दुख की बात है कि पुलिस के जवान जिन्हें अपना भाई समझ रहे थे। जिन्हें हम अन्नदाता कहते हैं, हकीकत में उनमें से कुछ लोग देश के दुश्मन निकले। इन लोगों को पुलिस का खून बहाया। इसके साथ-साथ देश के सम्मान को ठेस पहुंचाई और लाल किले की शान में दाग लगाया।

जरा सोचिए इन पुलिसवालों पर क्या बीती होगी। इन्होंने किस तरह हजारों की भीड़ से बचने के लिए अपनी जान बचाई। कई पुलिसवालों ने 15 फीट गहरी खाई में छलांग लगा दी। किसी के हाथ में चोट आई तो किसी का पांव टूट गया।

लाल किले से जो तस्वीरें दिखीं वो और भी भयानक हैं। कल तक जिस लाल किले में सबकुछ व्यवस्थित था आज वहां तबाही और बर्बादी के निशां हैं। गेट पर बने काउंटर टूट गए। पुलिस की जिप्सी, सीआईएसएफ की गाड़ी को भी तोड़ दिया गया। दंगाइयों को जो कुछ नजर आया, सब कुछ बर्बाद कर दिया। संस्कृति और पर्यटन मामलों के मंत्री प्रह्लाद पटेल ने लाल किले के परिसर का जायजा लिया। लाल किले के अंदर टिकट काउंटर एंट्री गेट, बैरिकेडिंग और सारे स्कैनर जमीन पर बिखरे थे। जो झांकियां परेड का हिस्सा बनी थीं, उन्हें भी डैमेज कर दिया गया। इतना ही नहीं, ऑडियो टूर रूम को में भी तोड़फोड़ की गई। सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए गए ताकि उनकी करतूत कैमरे में कैद ना हो सके। पुलिस ने जो केस दर्ज किया है उसमें डकैती की धारा भी शामिल है। आरोप है कि दंगाइयों ने टिकट काउंटर पर लूटपाट को अंजाम दिया।

अब मूल बात पर आते हैं कि अगर एक बार किसान नेता चढूनी की बात मान भी ली जाए कि लाल किले पर हंगामा करने वाले लोगों को दीप सिंह सिद्दू ने भड़काया था तो फिर सवाल ये है कि नांगलोई में दंगा भड़काने वाले, तलवारें चलाने वाले कौन थे? ITO पर रॉड से पुलिस पर हमला करनेवाले कौन थे? जगह-जगह पर ट्रैक्टर को हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाले कौन थे? ट्रैक्टर से सरकारी बसों को टकराने वाले कौन थे? क्या इन सारे लोगों को सरकार ने भेजा था? क्या पुलिस पर हमला करवाने वाले हजारों लोगों को दिल्ली पुलिस वहां लेकर आई थी? किसान नेताओं की ये बातें सरासर झूठ है और दुख पहुंचाने वाली हैं। राकेश टिकैत, बलवीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चढ़ूनी, दर्शनपाल सिंह या शिवकुमार सिंह कक्का, ये सब भले ही ये सोच रहे हों कि किसानों को हकीकत समझ नहीं आएगी, देश के लोग पहले की तरह उनपर यकीन कर लेंगे, लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि अब तो किसान नेताओं के अपने साथी और किसान आंदोलन में शामिल दूसरे संगठनों के नेता भी असलियत समझ रहे हैं और बोल रहे हैं। अगर किसान नेता लाल किले में दाखिल होने की साजिश के बारे में पुलिस को पहले ही सतर्क कर देते तो आज पूरा देश उनकी तारीफ कर रहा होता। लेकिन अब वे पूरी तरह से बदनाम हो चुके हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 27 जनवरी, 2021 का पूरा एपिसोड

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