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Rajat Sharma’s Blog: ‘पुलिस को वसूली का आदेश’: महाराष्ट्र के गृह मंत्री की भूमिका की जांच हो

अगर ये इल्जाम सच साबित हुआ तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि लेटर किसने लिखा, कब लिखा और क्यों लिखा।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: March 23, 2021 18:56 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर द्वारा लगाए गए ‘वसूली’ के आरोपों के बाद शुरू हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने अब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की गठबंधन सरकार का भविष्य दांव पर लगा दिया है।

NCP सुप्रीमो शरद पवार ने पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के आरोपों की जांच की बात कहने के बाद अब यू-टर्न ले लिया है और अपने गृह मंत्री को क्लीन चिट दे दी है। सोमवार को पूर्व पुलिस कमिश्नर ने अपने तबादले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जबरन वसूली के मामले की CBI जांच की मांग की।

सत्तारूढ़ दल बीजेपी के सदस्यों ने CBI जांच की मांग करते हुए सोमवार को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा किया, लेकिन NCP सुप्रीमो शरद पवार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने गृह मंत्री के इस्तीफे की बात खारिज कर दी और दावा किया कि जिस समय उनके द्वारा पुलिस अफसरों को वसूली के लिए कहने की बात कही जा रही है, उस समय तो वह नागपुर में अपने घर पर पृथकवास में रह रहे थे। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने परमबीर सिंह को ‘बीजेपी की कठपुतली’  बताते हुए आरोप लगाया कि उनका इस्तेमाल गठबंधन सरकार को गिराने के लिए किया जा रहा है।

सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में शरद पवार ने नागपुर के एक अस्पताल से जारी किया गया एक सर्टिफिकेट भी दिखाया, जिसमें लिखा था कि देशमुख 5 फरवरी से 15 फरवरी तक कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते वहां भर्ती थे और फिर 15 फरवरी से 27 फरवरी तक होम क्वॉरन्टीन में थे। पवार ने दावा किया कि ये आरोप गलत हैं कि देशमुख ने किसी मीटिंग में कथित तौर पर बार मालिकों से ‘100 करोड़ रुपये की वसूली करने’ की बात बात कही थी। NCP सुप्रीमो ने कहा, ‘उनके इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता।’

पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस सहित बीजेपी के कई नेताओं ने तुरंत पवार के दावे के खिलाफ ट्वीट किए। उन्होंने कहा कि देशमुख ने 15 फरवरी को मीडिया को संबोधित किया था। फडणवीस ने ट्वीट किया, ‘ऐसा लगता है कि शरद पवार जी को परमबीर सिंह के पत्र पर ठीक से जानकारी नहीं दी गई है। इस पत्र में, एसएमएस से पता चलता है कि मीटिंग की तारीख फरवरी के आखिर में थी। अब मुद्दे को कौन डायवर्ट कर रहा है?’ फडणवीस ने परमबीर और उनके अधिकारियों के बीच एसएमएस पर हुई बातचीत को भी ट्वीट में जोड़ा, और 15 फरवरी को ट्विटर पर अनिल देशमुख द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो को भी रीट्वीट किया, जिसमें वह मीडिया को संबोधित करते दिख रहे थे।

अनिल देशमुख ने भी यह बात मानी कि उन्होंने 15 फरवरी को अस्पताल से बाहर आने के बाद मीडिया से बात की, और फिर मुंबई के लिए उड़ान भरी थी। पवार ने आरोप लगाया मुकेश अंबानी के आवास के बाहर विस्फोटक से भरे वाहन और उस वाहन के मालिक की कथित हत्या के ‘मुख्य मामले’ की जांच को भटकाने की कोशिश में अनिल देशमुख पर आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने कहा, ‘कुछ ऐसे नाम हैं जिनकी जांच होनी चाहिए और ये कुछ लोगों को शायद पसंद न आए, और इसीलिए  देशमुख के खिलाफ (जबरन वसूली के) आरोप लगाए गए। मैं नहीं चाहता कि जांच को अलग दिशा में मोड़ दिया जाए।’

सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी रिट याचिका में, परमबीर सिंह ने कहा है, ‘याचिकाकर्ता ने साक्ष्यों को नष्ट कर दिए जाने से पहले, महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के कदाचार की पूर्वाग्रह रहित, अप्रभावित, निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच कराने का इस अदालत से अनुरोध किया है।’

अपनी रिट याचिका में परमबीर सिंह ने कहा है कि ‘अनिल देशमुख विभिन्न जांचों में हस्तक्षेप कर रहे हैं और पुलिस अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे कि वे एक विशेष तरीके से उनके द्वारा वांछित तरीके से आचरण करें। देशमुख द्वारा पद का दुरुपयोग करके इस तरह की सारी कार्रवाई करने के लिए उनके खिलाफ सीबीआई जांच जरूरी है।’

याचिका में परमबीर सिंह ने जिक्र किया है कि कैसे 'देशमुख के भ्रष्ट आचरण को' वह वरिष्ठ नेताओं और मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाए थे। सिंह ने कहा कि इस बारे में विश्वसनीय जानकारी है कि टेलीफोन बातचीत को सुनने के आधार पर पदस्थापना/तबादला में देशमुख के कदाचार को 24-25 अगस्त 2020 को राज्य खुफिया विभाग की खुफिया आयुक्त रश्मि शुक्ला ने पुलिस महानिदेशक के संज्ञान में लाया था, जिन्होंने इससे अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग, महाराष्ट्र सरकार को अवगत कराया था। सिंह ने कहा, ‘अनिल देशमुख के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें (रश्मि को) पद से हटा दिया गया।’

 
इस पूरे मामले ने अब राजनीतिक मोड़ ले लिया है। शरद पवार एक ‘महानायक’ के रूप में उभरते दिख रहे हैं, जबकि अनिल देशमुख ‘खलनायक’ और देवेंद्र फडणवीस ‘आक्रामक’ नजर आ रहे हैं।

शिवसेना और एनसीपी नेताओं का आरोप है कि एंटीलिया मामले का संदिग्ध सचिन वाजे पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह का ही आदमी है और वह उसकी सारी हरकतों के बारे में जानते थे। उनका आरोप है कि जब एंटीलिया की घटना के बाद जब वाजे का नाम सामने आया था तो परमबीर सिंह ने बजे को अपने घर बुलाया था। मेरे पास जानकारी है कि परमबीर सिंह ने सचिन वाजे से 2 घंटे तक पूछताछ की थी। उससे बार-बार पूछा था कि इस केस में उसका कोई रोल तो नहीं है, और सचिन वाजे ने हर बार यही कहा कि उसका इस केस से कोई लेना-देना नहीं है।

परमबीर सिंह ने दूसरी बार सचिन वाजे को तब बुलाया जब उसने अपने वॉट्सऐप स्टैटस पर दुनिया को अलविदा कहने की बात लिखी। परमबीर सिंह ने सचिन वाजे फिर बुलाया और समझाया कि वह ऐसा कोई कदम ना उठाए, आगे से कभी इस तरह की बात दिमाग में न लाए और सोशल मीडिया पर इस तरह की कोई बात न लिखे। उस वक्त सचिन वाजे के सिर में दर्द था तो परमबीर सिंह ने उसे डिस्प्रिन की एक टैबलेट भी दी थी। परमबीर सिंह के पास कई सीनियर अफसरों के फोन कॉल आए थे और सारे अफसरों ने परमबीर सिंह से कहा था कि आप खुद ही सचिन वाजे को समझाएं कि वह कोई ऐसा काम न करे।

मुझे पता चला है कि जब मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन से भरी गाड़ी पार्क करने के केस में सचिन वाजे गिरफ्तार हुआ, तो परमबीर सिंह ने अपने दोस्तों से कहा कि वाजे ने उनसे झूठ बोलकर उन्हें अंधेरे में रखा। उन्होंने यह बात कुछ पुलिस अफसरों से कही कि उन्हें सचिन वाजे पर पूरा भरोसा था। उन्हें उसकी बातचीत से, उसके रवैए से, उसके कॉन्फिडेंस से कभी ये लगा ही नहीं कि वह उनसे झूठ बोलेगा।

परमबीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में फाइल की गई अपनी रिट याचिका में लिखा है कि उन्हें इस पूरे एपिसोड में, इस पूरे केस में सिर्फ अटकलों और अनुमानों के आधार पर ही बलि का बकरा बनाया गया। अपनी याचिका में उन्होंने लिखा कि मुंबई पुलिस के ऑर्गनाइजेशनल स्ट्रक्चर के हिसाब से उनके और सचिन वाजे के बीच में 5 अफसर आते हैं। मुंबई पुलिस कमिश्नर के अंडर में 5 ज्वाइंट कमिश्नर हैं, और मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन से भरी गाड़ी पार्क करने के केस की जांच ज्वाइंट कमिश्नर क्राइम कर रहे थे। ज्वाइंट कमिश्नर को क्राइम ब्रांच का Additional CP असिस्ट करता है और ACP को IPS रैंक का ही DCP (डिटेक्शन) असिस्ट करता है। DCP के अंडर एक और Assistant CP मौजूद होता है, जो एक्सटॉर्शन, क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट, प्रॉपर्टी और चोरी जैसे मामलों की जांच करता है। इसी में से एक क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट का हेड सचिन वाजे था।

परमबीर सिंह ने अपनी याचिका में लिखा है कि गृह मंत्री 5 पुलिस अधिकारियों को दरकिनार करके सीधे वाजे को बुलाया करते थे। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर ने आरोप लगाया कि उनका ट्रांसफर एंटीलिया के बाहर जिलेटिन की छड़ें पाए जाने के मामले के चलते नहीं किया गया, बल्कि इसका मकसद तो कुछ और ही था। अब शिवसेना और NCP का इल्जाम है कि परमबीर सिंह ने बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिला लिया है और उनका असली मकसद डेप्युटेशन पर दिल्ली जाना है। उनका आरोप है कि पूर्व पुलिस प्रमुख ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद ही मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी थी। कुछ लोगों का दावा है कि 59 साल के परमबीर सिंह VRS लेकर राजनीति में जाना चाहते हैं। NCP नेता और महाराष्ट्र के कैबिनेट मिनिस्टर नवाब मलिक ने दावा किया कि उन्हें इस बात की पूरी जानकारी है कि परमबीर सिंह ने दिल्ली में किन-किन लोगों से मीटिंग की। मलिक ने कहा कि बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं ने परमबीर सिंह से क्या कहा, ये भी उन्हें मालूम है।

मैंने चेक किया तो पता चला कि परमबीर सिंह ने न तो सेन्ट्रल गवर्मेंट में डेप्युटेशन पर आने के लिए अप्लाई किया है, और न ही उनका ऐसा कोई प्लान है। दूसरी बात, परमबीर सिंह ने अपने करीबियों से कहा है कि वह DG होमगार्ड के पद पर काम करेंगे और उनका VRS  लेने का कोई प्लान नहीं है। तीसरी बात, परमबीर सिंह ने इस बात को कन्फर्म किया है कि वह इस दौरान न तो दिल्ली आए और न ही बीजेपी के किसी नेता से उनकी मुलाकात हुई है। मैंने भी सरकार में अपने सूत्रों से कन्फर्म किया है कि परमबीर सिंह की गृह मंत्री अमित शाह से कोई मुलाकात नहीं हुई है। परमबीर सिंह के करीबियों का कहना है कि जब उनसे राजनीति में जाने के बारे में पूछा जाता है तो इस सवाल पर वह जोर से हंसते हैं और कहते हैं कि वह सियासत के लिए लायक नहीं है, और न सियासत उनके लायक है।

यह बात तो सही है कि परमबीर सिंह और अनिल देशमुख, न तो दोनों सही हो सकते हैं और न ही दोनों गलत हो सकते हैं। इनमें से एक सही है और एक गलत है। इसलिए जांच जरूरी है, इल्जाम सामने हैं और उनकी हकीकत सामने आनी जरूरी है। यह देश में अपनी तरह का पहला मामला है जिसमें एक पुलिस चीफ ने अपने ही गृह मंत्री के खिलाफ जबरन वसूली के अभूतपूर्व आरोप लगाए हैं। इस केस से मुंबई पुलिस की छवि को बड़ा धक्का लगा है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि शरद पवार जैसे अनुभवी राजनेता, जिन्होंने जिंदगी का तीन-चौथाई हिस्सा राजनीति की ऊबड़-खाबड़ राहों में बिता दिया, अपने गृह मंत्री के बचाव में सामने आए।

शरद पवार को मैं पिछले 45 सालों से जानता हूं। वह 1978 में महाराष्ट्र के यंगेस्ट चीफ मिनिस्टर बने थे। तब से लेकर आज तक मैंने शरद पवार को इतना बेचैन और परेशान नहीं देखा है, जितना वह सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखे थे। एक वरिष्ठ IPS अधिकारी द्वारा उनकी पार्टी के एक नेता के खिलाफ लगाए गए जबरन वसूली के इस आरोप ने पवार को हिला दिया है। वरना किसी मुद्दे पर शरद पवार 24 घंटे में 2 बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करें, अपनी पार्टी के किसी नेता के बचाव में कागज लेकर सबूत पेश करें, ऐसा नहीं होता।

हैरानी की बात तो यह है कि रविवार को शरद पवार ने मीडिया से कहा था कि गड़बड़ियां हुईं हैं, शिकायतें मिली हैं और जांच होनी चाहिए। लेकिन अगले ही दिन उन्होंने अपने मंत्री को क्लीन चिट दे दी। एक तरफ तो NCP चीफ अपने नेता का बचाव कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे खामोशी से इस मामले को देख रहे हैं। परमबीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से CBI  को गृह मंत्री के घर और दफ्तर के सभी CCTV कैमरों के फुटेज लेने का निर्देश देने की मांग की है। इससे यह झूठ बेनकाब हो जाएगा कि मंत्री होम क्वॉरन्टीन में थे और इस दौरान वह किसी पुलिस अफसर से नहीं मिले थे।

मुझे लगता है कि ये ऐसा मामला है जिसमें एक सवाल का जबाव मिलता है तो कई सारे दूसरे सवाल खड़े हो जाते हैं। पर्दे के पीछे बहुत कुछ हो चुका है, और बहुत कुछ हो रहा है। जितना बताया जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा छुपाया जा रहा है। सवाल यह है कि परमबीर सिंह अब तक खामोश क्यों रहे? पद से हटाए जान के बाद ही उन्होंने चिट्ठी क्यों लिखी? क्या उन्हें कुर्सी जाने के दर्द ने बागी बना दिया? जब सचिन वाजे परमबीर सिंह का भी करीबी था, तो क्या उसने 100 करोड़ रुपये की वसूली की बात उन्हें नहीं बताई थी?

मुझे पता लगा है कि परमबीर सिंह को बहुत कुछ पता था, लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी था जो उनकी जानकारी में नहीं था। हालांकि परमबीर सिंह अपने आरोपों पर कायम हैं और हिम्मत के साथ वह इस लड़ाई को आर-पार तक लड़ने के मूड में हैं। अब तक तो उन्होंने सिर्फ मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी थी, लेकिन अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दी गई अपनी रिट याचिका में और भी डीटेल में जानकारी दी है। महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार के लिए परमबीर सिंह का ये कदम बहुत कष्टकारी है क्योंकि मामला अब सरकारी फाइलों से निकल कर देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने आ गया है।

सियासत की महिमा अपंरपार है। बंद कमरों में होने वाली सियासत के राज़ सामने आने में उम्र गुजर जाती है। आज शिवसेना और NCP के नेता कह रहे हैं कि बीजेपी महाराष्ट्र की सरकार को गिराने के लिए परमबीर सिंह का इस्तेमाल कर रही है। दावा तो यह भी है कि परमबीर से होम मिनिस्टर के खिलाफ लेटर बीजेपी ने लिखवाया, और परमबीर की सुप्रीम कोर्ट मे पिटीशन भी बीजेपी की है। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि परमबीर का नागपुर कनेक्शन भी है।

ये आरोप हैरान करने वाले हैं क्योंकि कुछ दिन पहले यही परमबीर सिंह जब मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे, तो शिवसेना और एनसीपी की आंखों के तारे थे। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में हर थोड़े दिन में परमबीर की तारीफों के कसीदे पढे़ जाते थे। उन्हें सबसे दक्ष, सबसे ईमानदार अफसर बताया जाता था। अब शिवसेना के मुताबिक, वह अचानक बीजेपी के हो गए हैं, और देवेंद्र फडणवीस के इशारे पर काम कर रहे हैं। मजे की बात ये है कि जब शिवसेना और एनसीपी के नेता परमबीर की तारीफ किया करते थे, तब बीजेपी के नेता उन्हें मुख्यमंत्री के हाथ की कठपुतली बताते थे। बीजेपी आरोप लगाती थे कि शिवसेना और एनसीपी के इशारे पर परमबीर उसके नेताओं के खिलाफ केस करते हैं।

अब सिर्फ एक हफ्ते के अंदर ही मामला उल्टा हो गया है। अब शिवसेना और एनसीपी के नेता कह रहे हैं कि परमबीर का नाम अंबानी के घर के बाहर बारूद के केस में आने वाला था इसलिए खुद को बचाने के लिए उन्होंने ‘लेटर बम’ फोड़ दिया। अब गृह मंत्री अनिल देशमुख वे मामले देख रहे हैं जिनमें परमबीर सिंह पर कार्रवाई की जा सकती है।

व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि ये वक्त इस बात में जाने का नहीं है कि परमबीर ने लेटर क्यों लिखा। अभी तो जांच इस बात की होनी चाहिए कि उन्होंने लेटर में क्या लिखा। पुलिस चीफ द्वारा चिट्ठी में लगाए गए सनसनीखेज आरोपों की सर्वोच्च प्राथमिकता पर जांच होनी चाहिए। गृह मंत्री पर यह आरोप कि वह पुलिस अफसरों से रेस्तरां और बार मालिकों से 100 करोड़ रुपये की उगाही करने के लिए कह रहे हैं, काफी गंभीर हैं। इनकी गंभीरता तब और भी बढ़ जाती है जब ये आरोप एक पुलिस कमिश्नर द्वारा लगाए जाते हैं।

सच्चाई सामने आनी ही चाहिए। अगर ये इल्जाम सच साबित हुआ तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि लेटर किसने लिखा, कब लिखा और क्यों लिखा। ये मुंबई पुलिस की प्रतिष्ठा का सवाल है। जिस पुलिस को लंदन की स्कॉटलैंड यार्ड के बाद बेस्ट पुलिस फोर्स कहा जाता था, उसकी इज्जत का सवाल है। और इसके साथ ही ये महाराष्ट्र सरकार की विश्वसनीयता का सवाल है। इसका जवाब जितनी जल्दी मिले उतना ही अच्छा है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 22 मार्च, 2021 का पूरा एपिसोड

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