शहरों और औद्योगिक (इंडस्ट्रियल) टाउनशिप से लाखों प्रवासी मजदूरों का अपने घरों की ओर पैदल मार्च अभी भी जारी है, जबकि रेलवे ने अबतक 468 स्पेशल ट्रेनें चलाकर करीब 4.5 लाख प्रवासी कामगारों को उनके गृह राज्य तक पहुंचाया है। पैदल अपने घर की ओर जानेवाले अधिकांश प्रवासी मजदूर बेहद दयनीय हालत में हैं। चिलचिलाती धूप में भूख-प्यास से व्याकुल, दुखते पांव और थकान के बीच इनका पैदल मार्च जारी है।
सोमवार को अपने शो 'आज की बात' में हमने दिखाया कि एक मजदूर घर लौटने की इच्छा लिए हुए कैसे अपने दर्द को विरह के एक गीत के जरिए बयान कर रहा है। यह मजदूर न तो रो रहा है और न ही किसी से भीख मांग रहा है, वह केवल बेरोजगारी और कार्यस्थल से विस्थापन की वजह से पैदा हुई गहरी भावनाओं को व्यक्त कर रहा है।
भारत में प्रवासी मजदूरों की सही संख्या कोई नहीं जानता है। कोई इसे 42 लाख बताता है तो कहीं यह आंकड़ा चार से पांच करोड़ बताया जाता है। हर कोई इन प्रवासी मजदूरों की पीड़ा से सहानुभूति रखता है लेकिन जमीनी हकीकत बेहद कठोर है। इन प्रवासी मजदूरों में अधिकांश अपने रोजगार खो चुके हैं, उनके पास पैसे नहीं हैं और मकान मालिक उनपर किराए देने का दबाव बना रहे हैं।
प्रवासी मजदूर जानते हैं कि 800 किमी या 1800 किमी की दूरी पैदल तय करना असंभव सा काम है, लेकिन उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। यहां चुनौती दो तरह की है: एक, पैदल अपने घरों की ओर कूच कर चुके उन हजारों लोगों को सुरक्षित घर पहुंचाने में मदद उपलब्ध कराना और दूसरा, उन लाखों प्रवासी कामगारों को रोजगार मुहैया करना जो शहरों और औद्योगिक टाउनशिप में बेरोजगार हैं।
मेरे पास रोज हजारों खबरें भी आती है, मैसेज आते हैं...सैकड़ों वीडियो लोग भेजते हैं, जिनमें ये दिखता है कि कैसे प्रवासी मजदूरों को तकलीफें उठानी पड़ रही हैं, लेकिन मैं अपनी सहानुभूति प्रकट करने के लिए शब्दों को ढूंढने में विफल हो जाता हूं। इन्हें देखकर लगता है कि क्या कहें? क्या समझाएं? कैसे मदद करें? जानबूझ कर मौत के मुंह में कोई नहीं जाना चाहता। कोई अपने बच्चों को लेकर तेज धूप में तपती सड़क पर नंगे पैर नहीं निकलना चाहता है। मध्य प्रदेश के पीथमपुर इंडस्ट्रियल टाउनशिप से झांसी के पास स्थित ललितपुर जाने के लिए गर्भावस्था के नौवें महीने में एक महिला ने 460 किलोमीटर की दूरी तय की। उसने सड़क के किनारे एक बच्चे को जन्म दिया। ये लोग सौभाग्यशाली थे कि उन्हें आसपास के लोगों की मदद मिल गई और महिला एवं नवजात को अस्पताल में भर्ती कराया जा सका।
नासिक (महाराष्ट्र) से सतना (एमपी) की दूरी करीब 1,100 किमी. है और ट्रेन को यह दूरी तय करने में 15 घंटे लगते हैं। इसी सफर पर निकले प्रवासियों के ग्रुप (समूह) में पैदल चल रही एक गर्भवती महिला ने सड़क किनारे एक बच्चे को जन्म दिया। दो घंटे बाद इस महिला ने अपने नवजात को गोद में लेकर फिर से चलना शुरू कर दिया।
पांच दिनों में उसने करीब 175 किलोमीटर की दूरी तय की और अपने ग्रुप के साथ मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र की सीमा पर सेंधवा पहुंची। यहां तैनात पुलिस वालों की नजर इस महिला और नवजात बच्चे पर पड़ी। तब पुलिस वालों ने ग्रुप के प्रवासी मजदूरों को क्वॉरन्टी सेंटर भेजा और ग्रुप में मौजूद नवजात बच्चे और उसकी मां के अलावा एक और गर्भवती महिला को हॉस्पिटल भेजा। बाद में स्थानीय प्रशासन ने इन प्रवासियों को वापस घर भेजने के लिए बसों का इंतजाम किया।
जयपुर में इंडिया टीवी के रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने एक पुलिया के नीचे दो बच्चों के साथ बैठे एक पुरुष और महिला को देखा जो आसपास से गुजरनेवालों से बच्चों के लिए दूध मांग रहे थे। स्थानीय लोगों ने दूध का इंतजाम किया लेकिन इस गरीब दंपत्ति के पास कोई बर्तन नहीं था। सड़क के पास पड़े मिट्टी के टूटे घड़े के एक हिस्से को बर्तन बनाकर वहीं आग जलाकर बच्चों के लिए दूध गर्म किया और उन्हें पिलाया। इनलोगों ने बताया कि वे करीब 350 किमी पैदल चलकर जोधपुर से यहां तक पहुंचे हैं और इन्हें वाराणसी जाना है जो कि अभी 850 किमी. दूर है। जब तक जेब में थोड़ा बहुत पैसा था तब तक किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया, लेकिन अब पैसे खत्म हो गए हैं और बच्चे दूध और भोजन के लिए रोने लगे।
लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर जहां लॉकडाउन से पहले तेज गति से चलने वाले वाहनों के कारण अक्सर दुर्घटनाएं होती थीं, वहां पैदल चलनेवाले प्रवासी मजदूरों का एक अंतहीन काफिला नजर आता है। कुछ साइकिल से तो कुछ ठेले से और कुछ लोग तो ऑटो में भी नजर आते हैं। ये सभी लोग अपने घरों की ओर जा रहे हैं। इनमें अधिकांश पूर्वी यूपी, बिहार और झारखंड के लोग हैं। ठीक इसी तरह के दृश्य मुंबई-अहमदाबाद हाइवे पर भी देखे गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कोरोना वायरस महामारी को लेकर सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विस्तार से चर्चा की। यह कोरोना वायरस और लॉकडाउन को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ उनकी पांचवीं बैठक थी। उन्होंने मुख्यमंत्रियों से ग्रामीण क्षेत्रों में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सभी संभव उपाय करने की अपील की। उन्होंने यह भी कहा कि लॉकडाउन से जो लाभ मिला है, उसे गंवाना नहीं चाहिए।
अगर समय रहते लॉकडाउन लागू नहीं किया जाता तो कोरोना वायरस महामारी से भारत में मौत का आंकड़ा लाखों में होता। अधिकांश विकसित देशों ने विशाल जनसंख्या के कारण भारत के बारे में इतना गंभीर आकलन किया था, लेकिन वे गलत साबित हुए।
लॉकडाउन से दूसरा लाभ यह हुआ कि इससे केंद्र और राज्य दोनों को इससे निपटने की तैयारियों के लिए पर्याप्त समय मिल गया। क्वॉरन्टीन सेंटर, आइसोलेशन वार्ड और अस्थायी अस्पताल बनाए गए। लगभग 20,000 ट्रेन कोचों को अस्पताल के वार्डों में बदल दिया गया।
लॉकडाउन हमेशा के लिए जारी नहीं रखा जा सकता है। कोई भी यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकता है कि ये महामारी तीन महीने रहेगी, दस महीने रहेगी या फिर दो साल तक रहेगी। इसीलिए, सरकार ने लॉकडाउन नियमों में स्टेप वाइज (चरणबद्ध तरीके से) ढील देने का फैसला लिया है। कृषि गतिविधि की अनुमति दी गई, आवश्यक सामानों के लिए दुकानों को इजाजत दी गई , अधिकांश कारखानों को फिर से खोलने की अनुमति दी गई, और मंगलवार से लंबी दूरी की ट्रेनों का परिचालन फिर से शुरू हो गया। बस सर्विस भी बहुत जल्द शुरू हो सकती हैं वहीं हवाई यात्रा भी फिर से शुरू हो सकती है।
पिछले 45 दिनों में पूरे देश ने लॉकडाउन के प्रतिबंधों का काफी हद तक पालन किया है। लोग मास्क लगा रहे हैं, हैंड सैनिटाइजर्स का उपयोग कर रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन कर रहे हैं। लेकिन इसमें मैं एक चेतावनी भी जोड़ना चाहता हूं। अगर सौ लोग सरकार के निर्देशों और प्रतिबंधों का पालन करते हैं और उनमें से एक भी लापरवाही बरतता है, तो सारे प्रयास बेकार हो जाते हैं। सारे लोगों की मेहनत पर पानी फिर सकता है। इसलिए अगर कोरोना को रोकना है, उसे हराना है, तो ये ध्यान रखना होगा कि एक भी आदमी ये न सोचे कि कोरोना उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हर आदमी को कोरोना से लड़ना होगा, तभी इस जंग को जीतेंगे। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 11 मई 2020 का पूरा एपिसोड