गुजरात में पिछले 22 साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और पार्टी नेतृत्व को इस बार पूरी उम्मीद थी कि मतदाताओं की बीजेपी से नाराजगी की वजह से कांग्रेस चुनाव में सफल होगी। राहुल गांधी इस बार प्रचार के दौरान नए अवतार में नजर आए और मीडिया ने भी यह कहना शुरू कर दिया कि राहुल गांधी मोदी को अपने घर में कड़ी चुनौती दे रहे हैं लेकिन अंतिम परिणाम ने कांग्रेस नेताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया । इतना ही नहीं मोदी के अन्य राजनीतिक प्रतिद्वंदियों जैसे लालू प्रसाद और ममता बनर्जी की उम्मीदों को भी गुजरात के वोटरों ने धराशायी कर दिया । मोदी के प्रतिद्वन्द्वी यह अनुमान लगाकर बैठे थे कि अगर बीजेपी को उसके गुजरात के किले से उखाड़ फेंका गया तो 2019 में लोकसभा की लड़ाई आसान हो जाएगी।
नरेंद्र मोदी से ज्यादा और कौन इस खेल को अच्छी तरह समझ सकता था? गुजरात की जीत लोगों के अंदर मोदी के नेतृत्व में विश्वास को पुख्ता करती है और मोदी विरोधियों की उम्मीदों को धराशायी भी करती है। ज़ाहिर है कि अब मोदी विरोधी राजनीतिक मोर्चा बनाने के लिए नए सिरे से प्रयास होंगे लेकिन यह आसान काम नहीं है। क्योंकि अगर कांग्रेस इस मोर्चे में शामिल होती है तो इससे राहुल गांधी के नेतृत्व की कुशलता पर सवाल उठेंगे और कांग्रेस ऐसा कभी नहीं चाहेगी कि ऐसे सवाल उठें।
कांग्रेस को गुजरात में अपने असफल प्रयोग से कुछ सबक सीखना चाहिए। राहुल गांधी को अपने युवा और अपरिपक्व सहयोगियों की जगह कांग्रेस के पुराने नेताओं पर भरोसा करना चाहिए था। यह पूरी तस्वीर को बदल सकता था। राहुल को लग रहा था कि हार्दिक पटेल, जिग्नेश और अल्पेश के साथ से काम बन जाएगा। इस गलत आकलन की वजह से राहुल ने शंकर सिंह वाघेला की बात नहीं सुनी और उन्हें साइडलाइन कर दिया। चुनाव से पहले कांग्रेस के 14 विधायक साथ छोड़ गए और उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया। पार्टी को इसका नुकसान हुआ। यह बात सही है कि शंकर सिंह वाघेला कोई ठोस विकल्प नहीं दे पाए लेकिन उन्होंने कांग्रेस को एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरने से भी रोक दिया। अगर शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस के साथ होते तो परिणाम अलग हो सकता था।
इस परिणाम से एक बात तो साफ है कि नरेन्द्र मोदी गुजरात की जनता की नब्ज पहचानते हैं और गुजरात के लोग नरेन्द्र मोदी से बेहद प्यार करते हैं। यही वजह है कि जब नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की जनता से दिल से अपील की तो उनकी बात गुजरात के लोगों के दिल तक पहुंची और दूसरे फेज में उसका असर दिखा। मोदी के मैजिक ने काम किया और गुजरात में लगातार छठी बार बीजेपी सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया। इसीलिए इस जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी को दिया जा रहा है।
बीजेपी के लिए भी इस चुनाव से काफी कुछ सीखने के लिए है। बीजेपी ने शहरी इलाकों में जो प्रदर्शन किया है अगर वही परफॉर्मेंस ग्रामीण इलाकों में होता तो बीजेपी की एकतरफा जीत हो सकती थी। गुजरात के गांव में बीजेपी के प्रति उत्साह में कमी है.. नाराजगी है। किसानों के मन में आशंकाएं हैं जिसे उन्हें दूर करना होगा। यह बात बिल्कुल साफ है कि सूरत राजकोट अहमदाबाद, वडोदरा हर जगह व्यापारी GST से परेशान थे। वे बीजेपी से नाराज थे, उन्हें इस बात पर गुस्सा था कि जिस सरकार को वो अपना समझते थे उसने उनका धंधा चौपट करा दिया। जब राहुल गांधी ने यह नाराजगी देखी तो उन्हें लगा कि वो GST को बड़ा मुद्दा बनाएंगे, गब्बर सिंह टैक्स कहेंगे तो उन्हें व्यापारियों का समर्थन मिलेगा। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने सही समय पर इस नाराजगी को पहचाना। मोदी ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जो गुजरात के कई कारोबारियों के नाम तक जानते हैं और उनसे अच्छी तरह वाकिफ हैं। उन्होंने अरूण जेटली और अमित शाह को भेजा और व्यापारियों से बात करवाई। GST से संबंधित उनकी एक-एक परेशानी को हल किया। ये व्यापारी पंरपरागत तौर पर बीजेपी के समर्थक रहे हैं। इसीलिए सूरत में ऐसी सीटें भी हैं जहां बीजेपी उम्मीदवार सवा लाख वोट से जीता है। ऐसे नतीजे देखकर राहुल गांधी हैरान होंगे। कांग्रेस को समझ ही नहीं आया कि यह बाजी कैसे पलट गई।
पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल इस परिणाम से बेहद हैरान हैं। उनकी मीटिंग में भारी भीड़ उमड़ती थी, वे अपना इमोशन दिखाते थे और कहते थे अगर मेरे पिता या मां भी बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े तो उन्हें वोट मत देना, कांग्रेस का साथ देना। लेकिन वो हैरान हैं कि पाटीदारों ने उनके इस इमोशनल अपील पर ध्यान नहीं दिया। पाटीदारों ने फिर से बीजेपी का साथ दिया। वे बीजेपी से नाराज ज़रूर थे लेकिन उस हालत में भी कांग्रेस उन्हें विकल्प नहीं लगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि गुजरात में 29 ऐसी सीटें रहीं जहां बड़े पैमाने पर लोगों ने NOTA (जहां कोई किसी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता) का विकल्प अपनाया। यहां NOTA की संख्या उम्मीदवार की जीत के मार्जिन से अधिक थी। NOTA की वजह से बीजेपी ने 15 सीटें जीतीं जबिक कांग्रेस ने 13 पर सफलता पाई। एक निर्दलीय उम्मीदवार को भी NOTA का फायदा मिला। गुजरात में करीब साढ़े पांच लाख लोगों ने NOTA का बटन दबाया। यह संख्या कुल मतदान का करीब 1.8 प्रतिशत है। (रजत शर्मा)