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Rajat Sharma's Blog: कड़ाके की सर्दी में खुले आसमान के नीचे धरना दे रहे किसानों को बदनाम न करें

 इस तरह के वीडियो को प्रसारित करने का मकसद ये दिखाना है कि जैसे किसान आंदोलन करने नहीं बल्कि पिकनिक मनाने के लिए दिल्ली के बॉर्डर पर आए हैं। 

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : December 18, 2020 14:16 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

जब पूरा दिल्ली-एनसीआर कड़ाके की सर्दी झेल रहा है, दिल्ली और आसपास के इलाकों में बर्फीली हवाएं चल रही हैं और न्यूनतम तापमान गिरकर 3.5 डिग्री सेल्सियस तक चला गया है,  ऐसे समय में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हजारों किसान पिछले 23 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर खुली आकाश के नीचे धरना दे रहे हैं। ये किसान खुले में अपना भोजन पकाते हैं, लंगर में खाते हैं और ट्रकों-ट्रॉलियों के अंदर सोते हैं। 

वहीं दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर यह दिखाया जा रहा है कि धरने पर बैठे किसान पिज्जा का मजा ले रहे हैं, किसानों को रबड़ी-जलेबी परोसी जा रही है, वे मसाज चेयर पर बैठकर मसाज करवा रहे हैं। इनके कपड़े वाशिंग मशीनों में धुल रहे हैं और रहने के लिए जंगल सफारी के टेंट लगे हैं। इस तरह के वीडियो को प्रसारित करने का मकसद ये दिखाना है कि जैसे किसान आंदोलन करने नहीं बल्कि पिकनिक मनाने के लिए दिल्ली के बॉर्डर पर आए हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे दिखाया जा रहा है कि जैसे किसान खुद तो मजे कर रहे हैं और रास्ता बंद करके दूसरों को परेशान कर रहे हैं।

एक बात सब को समझनी चाहिए कि सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन करने वाले ज्यादातर किसान पंजाब के सिख हैं। दूसरों की मदद कैसे करना है, भूखों को खाना कैसे खिलाना है, सेवा भाव कैसा होता है, ये सिखों की परंपरा से सीखा जा सकता है। पूरी दुनिया में गुरूद्वारों में लगातार लंगर चलते हैं। इसी तरह अब किसान आंदोलन के बीच में लंगर चल रहे हैं और इनका ज्यादातर इंतजाम दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने किया है। सुबह की चाय से लेकर नाश्ता, दोपहर का खाना और शाम की चाय के साथ स्नैक्स, रात का भोजन और फिर गर्म दूध किसानों को दिया जा रहा है। अगर कभी किसी व्यापारी ने ड्राई फ्रूट्स दान कर दिए तो उन्हें भी लंगर में बांट दिया जाता है। रोटी बनाने के लिए बड़े-बड़े तवे रखे गए हैं। रोटी बनाने की एक मशीन भी गुरूद्वारे की तरफ से लगाई गई है। इस मशीन से हर घंटे में बीस हजार रोटियां बनती हैं।

मेरे पास कई ऐसे वीडियो आए जिनमें दिखाया गया कि किसान लक्जरी टेंट्स में रह रहे हैं। ये टेंट आमतौर पर जंगल सफारी में या फिर कैंपिग में इस्तेमाल किये जाते हैं।ऐसा दावा किया गया कि इन टेंट्स में ठंड से बचाने का इंतजाम है और हीटर लगे हुए हैं। साथ ही ये भी दावा किया गया कि सैंकड़ों ऐसे टेंट लगाए गए हैं और पूरी टेंट सिटी बसा दी गई है। 

सच्चाई जानने के लिए इंडिया टीवी के रिपोर्टर को दिल्ली बॉर्डर के धरना स्थलों पर भेजा गया। सब कुछ देखने के बाद हमारे रिपोर्टर पवन नारा ने बताया कि ये सही है कि एक टेंट सिटी बनी है और इसमें कुछ लक्जरी टेंट भी हैं, लेकिन ये टेंट सिटी हेमकुंड फाऊंडेशन ने बसाई है। हेमकुंड साहिब में मत्था टेकने के लिए जो लोग जाते हैं उनके ठहरने के लिए ऐसे ही टेंट लगाए जाते हैं। इस तरह के करीब सौ टेंट लगाए गए हैं। लेकिन इनकी बुकिंग नहीं होती है बल्कि कोई भी आकर इनमें आराम कर सकता है। लेकिन सौ टेंट्स में हजारों किसान नहीं ठहर सकते। किसानों की संख्या लगभग 60 हजार है। ज्यादातर किसान अपनी रातें ट्रकों और ट्रैक्टर ट्रॉलियों के अंदर बिता रहे हैं।  इसलिए ये कहना है कि आंदोलन करने वाले किसान लक्जरी टेंट में रह रहे हैं,गलत होगा। किसान अपने ट्रैक्टर और ट्रॉली के साथ आए हैं। किसानों की ट्रॉली ही उनका आशियाना बन गई है। ट्रॉली पर तिरपाल लगाई है ताकि सर्द हवा से बचा जा सके। ट्रॉली के अंदर पुआल लगाई है और उसके ऊपर गद्दे डाले गए हैं ताकि तीन-चार डिग्री की ठंड को भी बर्दाश्त कर सकें। 

इसी तरह का एक और वीडियो खूब फैलाया गया कि आंदोलन में शामिल किसानों के लिए वॉशिंग मशीने लगी हैं। किसानों के कपड़े मशीनों में धुल रहे हैं। पहली बात तो ये कि वॉशिंग मशीन में किसानों के कपड़े धुलें, इसमें क्या परेशानी है?  लेकिन हमारे रिपोर्टर ने जब इसकी तहकीकात की तो ये बात सही निकली कि कुछ वॉशिंग मशींने लगाई गई हैं। कुछ किसानों के कपड़े वॉशिंग मशीनों में धोए भी जा रहे थे, लेकिन सिर्फ तीन-चार वॉशिंग मशीनें ही लगी है। इन मशीनों को दो किसान खुद लेकर आए हैं। बाकी किसान खुले आसमान के नीचे अपने कपड़े धोते और सुखाते हैं।

किसान आंदोलन का एक और वीडियो खूब चर्चा में है। इस वीडियो के जरिए दावा किया गया कि किसानों का आंदोलन फाइव स्टार आंदोलन है। यहां किसानों के लिए फुट मसाज का इंतजाम किया गया है। वीडियो में एक साथ कई फुट मसाज मशीनें लगी हैं। कई किसान बैठकर पैरों की मसाज करवा रहे हैं। हमारे रिपोर्टर ने जब वीडियो की पड़ताल की तो पता चला कि वीडियो सही है और सिंघु बॉर्डर का ही है। लेकिन हर जगह फुट मसाज मशीनें नहीं लगी हैं। एक फुट मसाज सेंटर खालसा एड की तरफ से बनाया गया है। इसमें बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों के फुट मसाज का इंतजाम है। जो बुजुर्ग किसान काफी दूर से चलकर आ रहे हैं, उनके पैरों को आराम देने के लिए ये फुट मसाजर लगाए गए हैं। ठीक इसी तरह एक वीडियो में यह दिखाया गया कि किसान अपने साथ कई सैलून वालों को भी साथ लाए हैं। आंदोलन वाली जगह पर हेयर स्पा और मेन्स पार्लर चल रहे हैं। हमारे रिपोर्टर ने बताया कि सिंघु बॉर्डर पर खुद कुछ लोगों ने अपनी पहल से किसान भाइयों के लिए सैलून का इंतजाम किया है। इस सैलून में किसानों के बाल मुफ्त में काटे जाते हैं। 

 
किसान अपना राशन अपने साथ लेकर आए हैं। गुरुद्वारों का लंगर लगता है पर कहने वालों ने कह दिया कि पिज्जा पार्टी चल रही है। किसान रात की कड़कती ठंड में अपना घर-बार छोड़कर ट्रॉलियों में तिरपाल के नीचे सोते हैं, पर कहने वालों ने कह दिया कि उनके लिए लक्जरी टेंट लगाए गए हैं। किसी ने वॉशिंग मशीन दिखाई तो किसी ने फुट मसाज की चेयर। मुझे लगता है कि ऐसी बातें फैलाना किसानों के साथ अन्याय है। हमारे रिपोर्टर्स ने पाया कि कुछ लोगों ने मुफ्त में टेंट लगाए, किसी ने पिज्जा खिलाया तो किसी ने बूढ़े लोगों के लिए फुट मसाज का इंतजाम कर दिया। इससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। हमें तो उन लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने मुफ्त में ये सुविधाएं किसानों को दी। जिससे जितना बन पड़ा, उसने उतना किया। जिसके पास जो कुछ था उसने वही सेवाभाव से दिया। वैसे भी यह हमारे देश की परंपरा और लोगों के संस्कार हैं। क्या लोग भूल गए कि मार्च-अप्रैल में जब लॉकडाउन से परेशान मजदूर सड़कों पर पैदल निकले तो उनके लिए भी लंगर लगाए गए थे? उन मजदूरों को भी ट्रांसपोर्टर्स ने मुफ्त में बसों-ट्रकों में बैठाकर उन्हें घर छोड़ा था। कुछ लोगों ने तो मजदूरों को हवाई जहाज से उनके शहर भेजा था। 
 
इसलिए किसानों की मांगों और उनके आंदोलन को पिज्जा और टेंट में फंसाना ठीक नहीं है। जब आप ऐसे वीडियो देखें तो उनपर भरोसा ना करें। कुछ लोगों को लग सकता है कि किसान बहकावे में आ गए हैं और वो जिद पकड़ कर बैठे हैं। लेकिन इस वजह से ऐसे वीडियो बनाना और भ्रम फैलाना ठीक नहीं है। मैं तो हर उस व्यक्ति के खिलाफ हूं जो अफवाहें फैलाता है, जो देश और समाज को बांटने की बात करता है। इसीलिए जब किसानों के आंदोलन में 'टुकड़े-टुकड़े' गैंग घुसा और प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक बातें कही गई तो हमने इंडिया टीवी पर उसे भी एक्सपोज़ किया। किसान भाइयों से मैं आज भी यही कहूंगा कि बातचीत का सिलसिला जारी रहना चाहिए। नरेंद्र मोदी की नीयत पर शक ना करें और सरकार से बात करें।किसान आंदोलन को लेकर इस तरह के वीडियो प्रसारित करने वाले लोगों से मेरी यह अपील है कि वे किसानों को बदनाम न करें। किसान हमारे 'अन्नदाता' हैं। नए कृषि कानूनों पर उनकी कुछ शंकाएं हैं, उनके कुछ मुद्दे हैं और उन्हें इन मामलों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने दें। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 17 दिसंबर, 2020 का पूरा एपिसोड

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