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Rajat Sharma’s Blog। कोरोना महामारी: लोगों के जीवन से खिलवाड़ करनेवालों पर सख्ती होनी चाहिए

जब-जब देश में किसी चीज की डिमांड बढ़ती है तो उसकी कालाबाजारी शुरू हो जाती है। लोग नकली सामान बनाकर बेचने लगते हैं। ये भी नहीं सोचते कि उनकी काली करतूत किसी की जान ले सकती है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: May 06, 2021 14:43 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma

देशभर में बुधवार को कोरोना वायरस के 4 लाख 13 हजार नए मामले सामने आए वहीं आधिकारिक तौर पर इस घातक वायरस के संक्रमण ने 3,980 लोगों की जान ले ली। देश में पॉजिटिविटि रेट 24.4 प्रतिशत है, इसका मतलब ये है कि कोरोना के हर 100 टेस्ट में 24.4 मामले पॉजिटिव पाए जा रहे हैं। एक्टिव मामलों की बात करें तो ये संख्या करीब 35.7 लाख है। कोरोना को लेकर आंकड़ों की यह स्थिति तब है जबकि टेस्टिंग में गिरावट आई है। कल कुल 15.4 लाख टेस्टिंग हुई जबकि इससे पहले वाले दिन 16.6 लाख टेस्टिंग हुई थी। 

 केंद्र ने बुधवार को कहा कि कोरोना वायरस के यूके वैरिएंट के मामलों में कमी आ रही है लेकिन महाराष्ट्र में पाया गया डबल म्यूटेंट वैरिएंट कोरोना के नए मामलों में उछाल की मुख्य वजह है। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के. विजय राघवन ने बुधवार को कहा कि महामारी की तीसरी लहर भी आनी तय है। उन्होंने नए वेरिएंट के खिलाफ निगरानी को मजबूत करने और वैक्सीन को अपग्रेड करने की बात कही। राघवन के मुताबिक इस वायरस ने इम्यूनिटी को भंग करने के लिए 'हिट एंड रन' रणनीति को अपनाया है। अधिकांश भारतीयों में पहली लहर और टीकाकरण के बाद इम्यूनिटी विकसित हुई थी। 
 
इस गंभीर हालत के बीच मुंबई के पास उल्हासनगर में एक झुग्गी में बच्चों द्वारा आरटी-पीसीआर टेस्ट किट में उपयोग होनेवाले बिना स्टेरलाइज किए हुए कॉटन स्वैब बड्स बनाने की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई। यह किट निर्माताओं की तरफ से की गई आपराधिक लापरवाही का मामला है। हमारे एक दर्शक ने जब बच्चों द्वारा स्वैब बड्स बनाने का विडियो भेजा तो हमारे रिपोर्टर राजीव सिंह संत ज्ञानेश्वर नगर कैंप नंबर 2 में गए। वहां उन्होंने कई घरों में महिलाओं और बच्चों को फर्श पर बैठेकर कॉटन बड्स बनाते हुए देखा। ये लोग इन बड्स को कागज के एक लिफाफे में पैक कर रहे थे। इन बड्स का उपयोग आरटी-पीसीआर टेस्ट के दौरान किया जाता है। इसके जरिए लोगों के नाक और गले से स्वैब के नमूने लिए जाते हैं।
 
इन टेस्ट किट के पेपर पर तो बड़ी कंपनियों का नाम लिखा रहता है लेकिन ये बड़ी कंपनियां स्वैब बड्स बनाने का काम छोटे वेंडर्स को आउटसोर्स कर देती हैं। ये वेंडर्स झुग्गियों में लोगों को स्वैब बड्स का काम दे देते हैं जहां इसे बनाने के लिए स्वच्छता के मानकों की बहुत परवाह नहीं की जाती। यहां एक हजार स्वैब सैंपल बड्स बनाने का ऑर्डर पूरा करने पर 20 रु का मेहनताना दिया जाता है। चूंकि हमारे रिपोर्टर ने यहां जाने से पहले पुलिस और एफडीए अधिकारियों को अलर्ट कर दिया था इसलिए इनकी भी एक संयुक्त टीम वहां पहुंच गई। इस टीम उन सभी स्वैब बड्स को जब्त कर लिया जिन्हें एक डिब्बे में पैक कर वेंडर्स को भेजा जाना था।
 
यहां कॉटन स्वैब बड्स का निर्माण स्टेरलाइज्ड कंडीशन में नहीं हो रहा था जो इसके निर्माण की पहली शर्त है। इस तरह के काम से जुड़े जोखिम का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। आरटी-पीसीआर टेस्ट कराने आए लोगों के नाक और गले से सैंपल लेने के लिए बड्स डाले जाते हैं। ऐसे में इस तरह के बड्स कोरोना वायरस के संभावित वाहक हो सकते हैं। क्योंकि इस इलाके में कोरोना के कई मामले सामने आए थे। यह काम पिछले कई महीनों से चल रहा था लेकिन स्थानीय अधिकारियों ने इसकी कोई सुध नहीं ली। 
 
मैंने महाजन डायग्नोस्टिक इमेजिंग सेंटर्स के संस्थापक डॉ. हर्ष महाजन से इस तरह से स्वैब बड्स किट बनाने और इससे जुड़े जोखिमों के बारे में बात की। उन्होंने इस तरह से स्वैब बड्स बनाने को अपराध से कम नहीं बताया। और वह भी महाराष्ट्र जैसे राज्य में यह हो रहा जो पिछले कई महीनों से महामारी की दूसरी लहर का केंद्र बना हुआ है।
 
उन्होंने कहा- 'आमतौर पर इस तरह के कॉटन स्वैब को हाइजेनिक और स्टेराइल (जीवाणु रहित) वातावरण में बनाया जाना चाहिए था।इस तरह का वातावरण हमें ऑपरेशन थिएटर के अंदर मिलता है। लोगों के नाक और गले के अंदर इन स्वैब बड्स को डालने से न केवल आरटी-पीसीआर रिपोर्ट गलत मिलेगी बल्कि बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा भी होगा। हम सपने में भी नहीं सोच सकते कि हमारे देश में इस तरह से कॉटन स्वैब बड्स का निर्माण हो रहा है।' 
 
आमतौर पर इस तरह की किट को बनाने का पूरी प्रक्रिया मशीन से होती है। मशीनें पूरी तरह से स्टेरलाइज होती हैं। बड्स बनाने में इस्तेमाल होने वाली कॉटन स्टरलाइज्ड होती है। मशीन ही कॉटन से बड बनाती है और फिर उस पर प्लास्टिक लपेटने का काम भी मशीन करती है। पैकिंग भी मशीनों से होती है। पैकिंग के बाद जिस जगह पर इन बड्स को रखा जाता है, वो जगह भी पूरी तरह से सैनेटाइज होती है। पूरी प्रक्रिया में कहीं हाथ का इस्तेमाल नहीं होता, कोई इंसानी दखल नहीं होता। लेकिन मुनाफा कमाने की होड़ में बड़ी कंपनियां छोटे-छोटे वेंडर्स को सप्लाई का ऑर्डर दे देती हैं। ये वेंडर्स कॉटन स्वैब बड्स के निर्माण में इसके मानकों का कोई ख्याल नही रखते। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जिसे कड़े कदम उठाकर रोकने की जरूरत है।
 
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने यह भी दिखाया कि कैसे डॉक्टरों और नर्सों द्वारा इस्तेमाल सर्जिकल ग्लव्स को कबाड़ी की दुकान से खरीदने के बाद इसे धोकर रीपैक किया जा रहा था। दिल्ली के पास गाजियाबाद के लोनी इलाके में एक फैक्ट्री में यह काम बड़े आराम से किया जा रहा था। इंडिया टीवी की रिपोर्टर विजय लक्ष्मी ने बताया कि  पुराने ग्लब्स का काला कारोबार करने वाले कचरा इकट्ठा करने वालों को पैसे देकर हॉस्पिटल के बाहर से, वैक्सीनेशन सेंटर के कूड़े से ये ग्लब्स इकट्ठे करवाते थे। कबाड़ी के यहां से यूज्ड ग्लब्स खरीदते थे। फैक्ट्री में पुराने ग्लब्स को धोया जाता था और इन्हें डिब्बों में पैक करके बेचा जाता था। इन लोगों ने ट्रॉनिका सिटी इलाके में एक फैक्ट्री को किराए पर लिया और फिर यहां पर ग्लव्स को साफ करने वाली मशीनें लगाईं और धंधा शुरू कर दिया। पुलिस को जब इस रैकेट का पता चला तो छापे की कार्रवाई हुई। पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया। इनके पास से 98 बोरी इस्तेमाल किए हुए सर्जिकल ग्लव्स मिले, इसके अलावा 60 बोरी ऐसी थी जिनमें धुले हुए दस्ताने थे। ये पैक होकर मार्केट में जाने के लिए तैयार थे। पुलिस इस मामले में अन्य लोगों की भूमिका की भी जांच कर रही है।
 
डॉ. हर्ष महाजन ने इस्तेमाल किए सर्जिकल ग्लव्स को 'मौत का हथियार' बताया। उन्होंने डिस्ट्रीब्यूटर्स और स्टॉकिस्टों की पूरी चेन की पहचान करने का आह्वान किया जो यूज किए हुए गलव्स को सर्जिकल ग्लव्स के रूप में बेच रहे थे। उन्होंने कहा, 'इस तरह के लोगों ने केवल मुनाफा कमाने के लिए अपनी अंतरआत्मा को मारकर हजारों लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डालने का काम किया है।'
 
जो लोग इस्तेमाल किए हुए ग्लव्स को धो-पोछकर फिर से बेच रहे हैं। वो समाज के दुश्मन हैं। इस तरह से इंफेक्शन नहीं फैलेगा तो और क्या होगा? थोड़े से पैसे के लालच में ये लोग कितना बड़ा पाप कर रहे हैं, किस तरह लोगों में बीमारियां फैलाने का काम करते हैं, ये देखकर दुख होता है। जब-जब देश में किसी चीज की डिमांड बढ़ती है तो उसे लेकर बेईमानी शुरू हो जाती है।उसी की कालाबाजारी शुरू हो जाती है। लोग नकली सामान बनाकर बेचने लगते हैं। ये भी नहीं सोचते कि उनकी काली करतूत किसी की जान ले सकती है।
 
दिल्ली पुलिस कमिश्रर एस एन श्रीवास्तव ने नकली रेमडेसिविर को लेकर बड़ा खुलासा किया। उन्होंने बताया कि रेमडेसिविर के नाम पर कुछ लोग उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में नकली दवा बनाने का काम कर रहे थे। सात लोगों का एक पूरा गिरोह एक्टिव था। ये लोग हरिद्वार, रुडकी और कोटद्वार जैसे इलाकों में अवैध फैक्ट्री में नकली रेमडेसिविर बना रहे थे और उसे कोविप्री के नाम से मार्केट में बेच रहे थे। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने बताया कि ये लोग एक-एक इंजेक्शन को 20 हजार रुपए में बेच रहे थे। फैक्ट्री से 196 इंजेक्शन जब्त किए गए..लेकिन पता ये भी चला कि इन लोगों ने छापे से पहले कम से कम 2000 इंजेक्शन बेच दिए थे। 3000 और नकली इंजेक्शन भेजने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। इसके लिए शीशी तैयार कर ली गई थी लेकिन इससे पहले पुलिस पहुंच गई।
 
यही हाल ऑक्सीजन सिलेंडर का है। आक्सीजन सिलेंडर की खूब ब्लैक मार्केटिंग हो रही है। लखनऊ पुलिस ने कई जगहों पर छापे मारे और ऑक्सीजन सिलेंडर को ब्लैक में बेचने के मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। गोमतीनगर एक्सटेंशन और जानकीपुरम इलाके में इनके ठिकानों से 225 ऑक्सीजन सिलेंडर्स बरामद हुए। एक-एक सिलेंडर 35 हजार रुपए का बेचा जा रहा था। इन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए। 
 
ऑक्सीजन की इस किल्लत के बीच अब अच्छी खबरें भी आ रही हैं। दिल्ली के दो बड़े अस्पतालों एम्स और राम मनोहर लोहिया (RML) में पीएम केयर फंड से ऑक्सीजन के दो बड़े प्लांट लगाए गए हैं। ये ऑक्सीजन प्लांट DRDO ने कोयम्बटूर की ट्राईटेंड नाम की कंपनी के साथ मिलकर बनाया है। ये प्लांट सीधे वातावरण (Atmosphere)से ऑक्सीजन बनाते हैं। ये प्लांट्स चौबीस घंटे ऑक्सीजन की सप्लाई कर सकते हैं। हर प्लांट एक घंटे में 1,000 लीटर मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकता है, जो रोजाना 190 मरीजों को 5 लीटर ऑक्सीजन देने के लिए पर्याप्त है। कुल मिलाकर, दिल्ली में पांच ऐसे ऑक्सीजन प्लांट बनाए जाएंगे।
 
कोरोना महामारी में देश को विदेशी मदद भी मिल रही है। इंडियन नेवी का युद्धपोत INS तलवार बहरीन से लिक्विड ऑक्सीजन के दो क्रायोजनिक कंटेनर्स लेकर मैंगलोर पहुंचा। इसके अलावा INS ऐरावत सिंगापुर से और INS कोलकाता कुवैत से लिक्विड ऑक्सीजन, ऑक्सीजन से भरे सिलेंडर, क्रायोजनिक टैंक और दूसरे मेडिकल उपकरण लेकर भारत आ रहे हैं। नेवी के एक और युद्धपोत INS शार्दुल को ऑक्सीजन कंटेनर लाने के लिए कोच्चि से कुवैत भेजा गया है। 
 
अबतक नेवी ने नौ युद्ध पोतों को अलग-अलग बंदरगाहों पर ऑक्सीजन लाने के लिए भेजा है। नेवी ऑपरेशन समुद्र सेतु - 2 के तहत विदेशों से मदद लाने के काम में लगी है। ऑस्ट्रेलिया से भी भारत को मदद मिल रही है। एक चार्टर्ड फ्लाइट वेंटीलेटर्स और 43 ऑक्सीजन कंसंटेर्स लेकर दिल्ली पहुंचा है। भारतीय वायुसेना का C-17 ग्लोबमास्टर विमान ऑस्ट्रेलिया से चेन्नई पहुंचा है। इस विमान में चार खाली क्रायोजनिक ऑक्सीजन कंटेनर्स हैं।
 
लेकिन इस तरह की तमाम कोशिशें भी मौजूदा संकट के सामने छोटी पड़ रही है। सावधानी बरतने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लोगों से मेरी यही अपील है कि जल्द से जल्द वैक्सीन लें, अपने घरों में रहें, मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 05 मई, 2021 का पूरा एपिसोड

 

 

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