प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में कोरोना वायरस के रोजाना मामलों में आ रही गिरावट और 88 फीसदी की हाई रिकवरी रेट हासिल करने के बारे में सोमवार को देशवासियों को बताया। वहीं दूसरी ओर बिहार में नेताओं की चुनावी रैलियों में बड़ी तादाद में लोगों की भीड़ उमड़ रही है। यूपी के लखनऊ और मिर्जापुर के मंदिरों में भक्तों की बड़ी भीड़ देखने को मिल रही है। यह निश्चित रूप से आपदा को आमंत्रण देना है। अगर रैलियों और मंदिरों में इस तरह से भीड़-भाड़ का क्रम जारी रहा तो इन राज्यों को कोरोना वायरस के मामलों में बढ़ोतरी का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में लॉकडाउन को समय रहते लागू करने, बाद में फेज वाइज अनलॉक और मास्क के उपयोग के लिए जनता को प्रोत्साहित करने के उपायों को महामारी से निपटने में भारत की सफलता का सूत्र बताया। लेकिन बिहार की स्थिति बहुत अलग है।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनावी रैलियों के दृश्य दिखाए, जहां अधिकतर लोगों ने मास्क नहीं पहना थे। यहां सोशल डिस्टेंसिंग (दो गज दूरी) की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं, पूरा कार्यक्रम स्थल भीड़ से भरा था। बिहार में चुनाव को लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह हैं, लेकिन जोश में लोग होश खो रहे हैं। ये गलती भारी पड़ सकती है। ये खौफनाक भविष्य की आहट है। निश्चित रूप से आनेवाले हफ्तों में बिहार में कोरोना वायरस के मामले बहुत तेजी से बढ़ सकते हैं।
केंद्र सरकार की वैज्ञानिकों की एक कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बिहार में चुनाव के बाद कोरोना का विस्फोट हो सकता है। बिहार में स्थिति बहुत खराब हो सकती है। दरअसल, चुनाव आयोग ने बिहार में चुनाव के दौरान तमाम तरह के नियम कानून बनाए हैं। नामांकन में सिर्फ दो लोग जा सकते हैं, पदयात्रा में सिर्फ पांच लोग, रोड शो में पांच गाड़ियां, पांच-पांच गाड़ियों के बीच निश्चित दूरी का अंतर, रैली में सौ लोगों को शामिल होने की इजाजत, चुनाव प्रचार में शामिल हर व्यक्ति के लिए मास्क लगाना जरूरी है, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना और करवाना जरूरी है। लेकिन इनमें से कुछ नहीं हो रहा है।
अब जैसे-जैसे बिहार चुनाव के लिए वोटिंग की तारीख करीब आ रही है, चुनाव प्रचार ज्यादा तेज हो रहा है। सोमवार को ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पांच जनसभाएं की, तेजस्वी यादव की सात रैलियां हुई। इन जनसभाओं को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि कोरोना का खतरा है, या फिर कोरोना का किसी तरह का कोई खौफ है। एक भी ऐसी सभा नही दिखी जहां कोरोना वायरस को लेकर किसी तरह की सतर्कता बरती जा रही है। ऐसा लग रहा था कि कोरोना से पहलेवाले दिन वापस आ गए हैं। हैरानी की बात ये है कि न नेताओं को पब्लिक की चिंता है और न पब्लिक को अपनी फ्रिक है। सब वोट के चक्कर में फंसे हैं। हैरानी की बात ये है कि लोग नेता जी का हैलीकॉप्टर दिखाने के लिए छोटे-छोटे बच्चों को भी साथ लेकर रैली में आ रहे हैं। सभाओं में पहुंचनेवाले अधिकांश नेता और पब्लिक के चेहरे पर मास्क नहीं था। अपने भाषण में तेजस्वी यादव ने लोगों से एक बार भी यह नहीं पूछा कि वे मास्क क्यों नहीं पहन रहे हैं?
इंडिया टीवी संवाददाता ने जब लोगों से पूछा कि मास्क क्यों नहीं लगाया? दो गज की दूरी क्यों नहीं रखते? इसपर लोगों ने कहा कि बिहार में कोरोना नहीं है। कुछ लोगों ने कहा कि कोरोना कुछ नहीं है, सब झूठ फैलाया गया। कुछ लोगों ने कहा कि बिहार के लोग मेहनतकश हैं और मेहनत मजदूरी करने वालों को कोरोना का कोई खतरा नहीं है। उधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैली में भी हजारों लोग उनके हेलिकॉप्टर को देखने के लिए पहुंचे। नीतीश कुमार जहानाबाद की घोसी विधानसभा सीट पर जेडीयू उम्मीदवार के लिए वोट मांगने गए थे। जब हमारे संवाददाता ने लोगों से बात की और पूछा- कोरोना के संकट के वक्त खतरा मोल क्यों ले रहे हो, तो लोगों ने कहा कि कोरोना -वोरोना कुछ नहीं है, सब बेकार की बात है। कुछ लोगों ने कहा कि हम तो किसान हैं। इतना पसीना आता है कि कोरोना ध्वस्त हो जाता है। यहां पर ज्यादातर लोग ऐसे थे जिन्हें गलती का एहसास तो था, लेकिन गलती क्यों की? इस सवाल का कोई जबाव नहीं था।
उधर, बिहार के श्रम मंत्री विजय सिन्हा जब लखीसराय के गौरा गांव पहुंचे तो यहां सब नियम कायदे हवा हो गए। मंत्री जी गांव के लोगों के बीच गए, अपने काम गिनाने लगे और धीरे-धीरे भीड़ जमा हो गई। इंडिया टीवी संवाददाता ने जब पूछा कि कोरोना गाइडलाइंस फॉलो क्यों नहीं करते? तो मंत्री जी ने कहा कि बिहार में कोरोना का असर कम हो रहा है इसलिए लोग लापरवाही बरत रहे हैं।
बिहार के लोग राजनीतिक रूप से जागरूक हैं, वे चुनाव के लिए उत्साहित हैं और बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन जहां तक नियमों का सवाल है तो लोग नियमों का तभी पालन करते हैं, जब डर होता है। और मुश्किल ये है कि कोरोना के प्रति लोगों का डर खत्म हो गया है। लोग ये मानने लगे हैं कि कोरोना खत्म हो गया और कोरोना हो भी गया तो ठीक हो जाएंगे, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसीलिए लोग इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। लेकिन मैं आपको बता दूं कि ये सही है कि देश में कोरोना के मामलों की रफ्तार अब तेजी से कम हो रही है, लेकिन ये भी सही है कि सरकार ने साफ कहा है कि सर्दी के दौरान कोरोना का कहर बहुत से तेजी से बढ़ सकता है। वैज्ञानिक भी बिहार चुनाव के बाद कोरोना के बढ़ने की आशंका जता चुके हैं, और अगर दूसरों से सीखें तो अमेरिका के चुनाव इस बात का सबूत है। अमेरिका में नेताओं ने रैलियां की, सड़कों पर प्रचार के लिए उतरे और नतीजा ये हुआ कि अब अमेरिका मे कोरोना की दूसरी लहर आ गई है। वहां तेजी से मरीजों की तादाद बढ़ रही है। लेकिन मुश्किल ये है कि यहां लोग समझने को तैयार नहीं है।
कोरोना वायरस को लेकर इसी तरह की लापरवाही धार्मिक स्थलों पर भी देखने को मिल रही है। सरकार ने नियमों के तहत मंदिरों को खोल दिया लेकिन भक्तों के व्यवहार के कारण, भीड़ के कारण, कोरोना के खतरे के कारण मंदिरों को दोबारा बंद करना पड़ रहा है। कोरोना की वजह से बांके बिहारी मंदिर सात महीनों से बंद था। 17 अक्टूबर से मंदिर खोलने का फैसला हुआ। लेकिन पहले ही दिन दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ मंदिर के सामने पहुंच गई। इनमें क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग और क्या महिलाएं, सब एक दूसरे के बिल्कुल पास खड़े नजर आए। इसके बाद प्रशासन ने तय किया कि एक दिन में दो सौ भक्तों को मंदिर में अंदर जाने की इजाजत होगी और किसी तरह का कोई भेदभाव न हो इसलिए ऑनलाइन बुकिंग का फैसला हुआ था। लेकिन एक साथ इतने भक्तों ने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की कोशिश की, कि सिस्टम ही डाउन हो गया। इसके बाद हजारों भक्त बांके बिहारी के दर्शन करने पहुंच गए। भक्तों के सैलाब से गलियां पट गईं। पैर रखने की जगह नहीं थी। भक्तों की भीड़ देखकर प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए और इसके बाद एक ही रास्ता बचा कि मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाएं। और प्रशासन ने मंदिर को दोबारा बंद कर दिया।
लखनऊ में चंद्रिका देवी मंदिर में भी इसी तरह की भीड़ नजर आई। यहां एक दिन में सिर्फ 200 लोगों की एंट्री वाले नियम का पालन करवाना बहुत मुश्किल है क्योंकि नवरात्र के दौरान रोजाना हजारों श्रद्धालु मंदिर पहुंच रहे हैं। गाइडलाइंस के मुताबिक मंदिर में दर्शन के लिए फेस कवर या मास्क जरूरी है। एक-दूसरे से छह फीट की दूरी का पालन करना होगा। दस साल से कम उम्र के बच्चे और साठ साल के ज्यादा के बुजुर्ग मंदिर में दर्शन नहीं कर सकते। लेकिन ये सारे नियम भीड़ की भेंट चढ़ गए। यूपी के मिर्जापुर में प्रसिद्ध विंध्यवासिनी मंदिर में भी हालात ऐसे ही हैं। यहां पर भी नवरात्रि के चलते रोजाना हजारों श्रद्धालु पूजा करनेआते हैं।
चूंकि त्योहारों का मौसम है, नौ दिन की नवरात्रि का त्योहार चल रहा है, दशहरा है, फिर दीवाली होगी और फिर छठ पूजा। अगले डेढ़-दो महीने तक उत्सव का माहौल रहेगा। बाजारों और मंदिरों में भारी भीड़ रहेगी। इसके बाद सर्दी का मौसम आ जाएगा। वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने सरकार से पहले ही साफ-साफ कहा है कि सर्दी के दौरान कोरोना का खतरा बढ़ेगा। इसलिए जब तक दवाई नहीं है तब तक ढ़िलाई नहीं। अब सवाल ये है कि कोरोना की वैक्सीन (टीका) या कोरोना की दवा कब तक तैयार हो जाएगी तो इसके बारे में कोई निश्चित तौर पर नहीं कह सकता। हां, इतनी जानकारी जरूर है कि कोरोना की वैक्सीन पर काम फाइनल स्टेज में है। स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने बताया है कि एक वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल थर्ड फेज के एडवांस स्टेज में है जबकि दो वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल सेकेन्ड फेज के एडवांस स्टेज में है। अब तक तो नतीजे अच्छे हैं और अगर सब ठीक रहा तो अगले तीन महीनों में वैक्सीन मार्केट में आ सकती है। लेकिन लोगों को कोरोना से सावधान रहने की जरूरत है। चुनाव प्रचार भी होगा, त्योहार भी मनाए जाएंगे लेकिन कोरोना ने पकड़ लिया तो कोई नहीं बचा पाएगा। इसलिए मास्क पहनिए और दो गज की दूरी बनाए रखिए। इसी में सब का भला है।