Monday, December 23, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog: डोनेशन के मामले में चीनी सरकार के साथ अपने संबंधों पर कांग्रेस को सफाई देनी चाहिए

Rajat Sharma’s Blog: डोनेशन के मामले में चीनी सरकार के साथ अपने संबंधों पर कांग्रेस को सफाई देनी चाहिए

कांग्रेस नेताओं को चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ पार्टी के संबंधों के बारे में बात साफ कर देनी चाहिए। पहले ही चीनी मीडिया एलएसी के हालात पर भ्रम पैदा करने के लिए कांग्रेस नेताओं द्वारा दिए गए बयानों का दुरुपयोग कर रहा है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : June 27, 2020 14:30 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on Congress, Rajat Sharma Blog on Rajiv Gandhi Foundation
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना पूर्व प्रधानमंत्री के निधन के बाद 1991 में हुई थी। इस फाउंडेशन की मुखिया कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। इसके बोर्ड ऑफ ट्रस्टी में राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, प्रियंका गांधी वाड्रा और पी. चिदंबरम समेत कई कांग्रेसी नेता और परिवार के वफादार शामिल हैं। इस फाउंडेशन का उद्देश्य साक्षरता, स्वास्थ्य, विकलांगता, वंचितों के उत्थान और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन जैसे मुद्दों पर काम करना था।

यह फाउंडेशन अब तमाम गलत कारणों के चलते सुर्खियों में है। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 2005 में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से इस फाउंडेशन को पैसे दान किए थे। नड्डा ने ट्वीट कर कहा: PMNRF जोकि संकट की घड़ी में लोगों की मदद करने के लिए है, वह UPA कार्यकाल के दौरान राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसे दान कर रहा था। PMNRF के बोर्ड में कौन बैठा था? श्रीमती सोनिया गांधी। राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्षता कौन करता है? श्रीमती सोनिया गांधी। यह पूरी तरह से निंदनीय है। नीति और प्रक्रियाओं के खिलाफ है। पारदर्शिता को ताक पर रख दिया गया।'

भाजपा अध्यक्ष ने आरोप लगाते हुए आगे कहा: 'भारत के लोगों ने अपने खून-पसीने की कमाई अपने देश के जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए PMNRF को दान की। ऐसे में जनता के पैसे को एक परिवार के फाउंडेशन में भेजना न केवल खुलेआम धोखाधड़ी है, बल्कि भारत के लोगों के साथ विश्वासघात भी है। पैसों के लिए एक परिवार की भूख देश को बहुत महंगी पड़ी है। अच्छा होता कि वे अपनी ऊर्जा को अधिक रचनात्मक अजेंडे में लगाते। कांग्रेस के शाही राजवंश को अपने फायदे के लिए की गई अनियंत्रित लूट के लिए माफी मांगनी चाहिए!'

कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता ने देर शाम एक बयान में कहा, ‘2004 के आखिरी सप्ताह में आई सुनामी के बाद RGF को वित्तीय वर्ष 2005 में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से 20 लाख रुपये की मामूली राशि मिली थी, जिसका अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में राहत गतिविधियों में विधिवत इस्तेमाल किया गया था।’ राजीव गांधी फाउंडेशन द्वारा चीनी दूतावास और चीन की सरकार से चंदा लेने की मीडिया रिपोर्टों के बारे में कांग्रेस ने जवाब दिया: ‘2005 में राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दूतावास से  (1) विकलांग लोगों के कल्याण के लिए कार्यक्रम चलाने और (2) चीन-भारत संबंधों पर शोध करने के लिए, 1.45 करोड़ रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ (था)।’ 

कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष ने ‘चीनी घुसपैठ के वास्तविक मुद्दे पर डायवर्जन, डिसइंफॉर्मेशन और डिस्ट्रैक्शन का काम कर रहे हैं।’ कांग्रेस पार्टी का बयान जितना खुलासा करता है उससे कहीं ज्यादा छिपाता है। कुछ अनुमानों के मुताबिक, चीन की सरकार और चीनी दूतावास से राजीव गांधी फाउंडेशन और राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्परेरी स्टडीज (RGF के तहत एक थिंक टैंक) को 2004 से 2006 के बीच 2 मिलियन डॉलर और 2006 से 2013 के बीच 9 मिलियन डॉलर का डोनेशन मिला था।  और अब, जरा देखें कि कांग्रेस कैसे इन डोनेशंस के बदले 2009 में चीन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते के पक्ष में जनमत के साथ हेरफेर कर रही थी।

समाचार एजेंसी आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2009 में RGICS फेलो मोहम्मद साकिब ने पूर्णचंद्र राव के साथ मिलकर ‘भारत-चीन: मुक्त व्यापार समझौता (FTA)’ को लेकर एक अध्ययन किया था। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य 'भारत और चीन के बीच एक एफटीए की बेहतर समझ हासिल करना', विभिन्न व्यापार मुद्दों का विश्लेषण करना और पहचान करना था कि इस तरह के समझौते से कौन लाभ प्राप्त कर सकता है और किसे नुकसान हो सकता है। रिपोर्ट से यह नतीजा निकला कि चीन को अपनी अर्थव्यवस्था की दक्षता के कारण सभी तरह के व्यापार में ज्यादा फायदा होगा। स्टडी का निष्कर्ष था कि ‘...दोनों सरकारों को एफटीए वार्ता में प्रवेश करने का निर्णय लेना चाहिए। भारत और चीन के बीच प्रस्तावित एफटीए व्यवहार्य, वांछनीय और पारस्परिक रूप से लाभकारी होगा। भारत और चीन के बीच एफटीए व्यापक भी होना चाहिए, जिसमें माल, सेवाओं, निवेशों और पूंजी का मुक्त प्रवाह होना चाहिए।’

फिर जून 2010 में RGICS के द्वारा एक और अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन ने यह भी प्रस्ताव दिया कि एक एफटीए द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों में मदद करेगा और माल, सेवाओं, निवेश और पूंजी के मुक्त प्रवाह से वास्तव में चीन के मुकाबले भारत के व्यापार क्षेत्र को लाभ होगा। कांग्रेस के आलोचक पूछ रहे हैं कि क्या RGF को मिले दान से इसका कुछ कनेक्शन है, कि कांग्रेस पार्टी के थिंक-टैंक ने चीन के साथ एफटीए की पैरवी की, जिसके बाद 2003-04 और 2013-14 के बीच व्यापार घाटा 33 गुना बढ़ गया।

इसके अलावा 2008 में कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (MoU) का RGF के साथ संबंध बताते हुए कांग्रेस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। मांग की जा रही है कि यही समय है कि कांग्रेस पार्टी सीसीपी के साथ हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन पर सफाई पेश करे। ऐसी भी मांगें उठ रही हैं कि कांग्रेस को CCP के साथ अपने संबंधों और MoU के कंटेंट का पूरा खुलासा करना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्रहित में जरूरी है। कांग्रेस भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है और इसकी कई राज्यों में या तो अकेले की या फिर गठबंधन सरकारें हैं।

आलोचकों के मुताबिक, दिलचस्प बात ये है कि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा इसके बाद ही शुरू होता है। यूपीए के शासनकाल में चीन के साथ समग्र व्यापार घाटा 2003-04 में 1.1 बिलियन डॉलर से 33 गुना बढ़कर 2013-14 में 36.2 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। हितों के टकराव पर भी सवाल उठ रहे हैं। कैसे एक एनजीओ, जिसका नेतृत्व उस व्यक्ति के हाथ में है जिसके पास यूपीए शासन के दस वर्षों के दौरान बेहिसाब ताकत थी, चीनी सरकार, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी, और राष्ट्रीय राहत कोष के जरिए खुद अपनी ही पार्टी की सरकार से, और 11 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों एवं सात मंत्रालयों से दान ले सकता है? क्या यूपीए के शासनकाल के दौरान परिवार की तिजोरी भरने का यह आसान तरीका था?

कुछ ऐसी भी मीडिया रिपोर्स हैं जिनमें कहा गया कि यूपीए की सरकार आरसीईपी (रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) डील को पूरा करने की हड़बड़ी में थीं, जिससे चीन को काफी फायदा पहुंचा होता, लेकिन मोदी सरकार ने राष्ट्रीय हित में आरसीईपी से कदम वापस खींचने का फैसला किया। साल। भारतीय जनता पार्टी के नेता अब पूछ रहे हैं कि क्या राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसे की इतनी कमी थी कि उसे प्राकृतिक आपदाओं और बड़ी दुर्घटनाओं के दौरान लोगों को राहत देने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा मैनेज किए जाने वाले राष्ट्रीय राहत कोष से दान लेना पड़ा।

मामला यहीं खत्म नहीं होता। 1991 में, जब डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री थे, उन्होंने संसद में दिए अपने पहले बजट भाषण में राजीव गांधी फाउंडेशन को 100 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी। इसे 5 साल की अवधि में सालाना 20 करोड़ रुपये के हिसाब से दिया जाना था। विपक्ष की कड़ी आपत्तियों के कारण, आरजीएफ ने हालांकि इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि सरकार को खुद उपयुक्त परियोजनाओं में पैसे का निवेश करना चाहिए।

कांग्रेस नेताओं को चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ पार्टी के संबंधों के बारे में बात साफ कर देनी चाहिए। पहले ही चीनी मीडिया एलएसी के हालात पर भ्रम पैदा करने के लिए कांग्रेस नेताओं द्वारा दिए गए बयानों का दुरुपयोग कर रहा है। ऐसे समय में जब सभी विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे एकजुट हो गए हैं, कांग्रेस क्यों राष्ट्रीय संकट की घड़ी में चीजों को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है? (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 26 जून, 2020 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement