लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर से डीएसपी देविंदर सिंह की हाल में हुई गिरफ्तारी को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की। देविंदर सिंह को हिजबुल के एक आतंकवादी और एक ओवर ग्राउंड वर्कर के साथ गिरफ्तार किया गया था। चौधरी ने कहा, 'यदि देविंदर सिंह इत्तफाक से देविंदर खान होता तो आरएसएस की ट्रोल टुकड़ी की प्रतिक्रिया कहीं ज्यादा तीखी और मुखर होती। हमें देश के दुश्मनों का रंग, आस्था और धर्म की परवाह किये बिना निंदा की जानी चाहिए।'
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह पूछकर इस षड्यंत्र को नया एंगल देने की कोशिश की, कि क्या देविंदर सिंह 'एक बड़े षड्यंत्र का मोहरा मात्र था।' पुलवामा में पिछले वर्ष फरवरी में हुए आतंकी हमले के समय देविंदर सिंह वहां बतौर डीएसपी तैनात था। इस आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की मौत हो गई थी। सुरेजवाला ने वर्ष 2001 में हुए संसद हमले के दोषी अफजल गुरु के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि उसकी देविंदर सिंह के साथ डील हुई थी जो कि उस वक्त स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में तैनात था।
सुरजेवाला ने पूछा, देविंदर सिंह कौन है? संसद पर हुए हमले में उसकी क्या भूमिका थी ? पुलवामा हमले में उसकी क्या भूमिका थी? क्या वह अपनी मर्जी से अपने साथ हिजबुल के आतंकियों को ले जा रहा था या वह केवल एक मोहरा है और इसके मुख्य साजिशकर्ता कहीं और हैं?'
गिरफ्तार डीएसपी ने कथित तौर पर यह माना है कि उसे अपनी बेटी की शादी के लिए पैसों की जरूरत थी और इसलिए वह आतंकवादियों की मदद कर रहा था। कश्मीर में उसके निर्माणाधीन मकान को देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि वह एक साधारण पुलिसकर्मी है। अब चूंकि मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने संभाल ली है हमें यह उम्मीद करनी चाहिए कि और तथ्य सामने आएंगे।
मुझे ये मामला इतना सीधा नहीं लगता जितना दिख रहा है। एनआईए को बहुत सारे सवालों के जबाव खोजने होंगे। क्या डीएसपी लेवल का अफसर इतना नासमझ होगा कि वह आतंकवादियों को अपने घर में ठहराए, उनके साथ फोन पर संपर्क करे और उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर दिल्ली के लिए चल दे? इन बातों पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है।
जहां तक देविंदर सिंह की गिरफ्तारी को साम्प्रदायिक रंग देने और पुलवामा हमले पर शक जाहिर करने की बात है तो कांग्रेस नेताओं की प्रतिक्रिया नासमझी भरी प्रतीत होती है। कांग्रेस ने यह गलती लोकसभा चुनाव में की थी। पुलवामा हमले पर सवाल उठाने के लिए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी। अगर इसके बाद भी कांग्रेस के नेता वही गलती दोहराते हैं तो फिर मुश्किल होगी और वे एक और गलती करेंगे। अपने ओछे राजनीति हितों के लिए आतंकवाद से जुड़े मुद्दों को धार्मिक रंग देना और उन पर सियासत करना कम से कम देशहित में तो नहीं हो सकता।
समस्या यह है कि कांग्रेस पार्टी के पास कई ऐसे नेता हैं जो बयान बहादुर हैं। विवादित बयान देने की कला में उन्हें महारथ हासिल है। उनमें मणिशंकर अय्यर भी शामिल हैं, जिन्होंने हाल ही में लाहौर में आयोजित एक साहित्यिक समारोह में पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया था। इस तरह के बयानों का भारत की ग्रैंड ओल्ड पार्टी के नेताओं पर कोई असर नहीं पड़ता। (रजत शर्मा)
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