सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया कि दिवाली, गुरुपर्व और अन्य त्यौहारों के अवसर पर रात 8 बजे से 10 बजे तक केवल 'हरित' पटाखे ही फोड़े जाएंगे । क्रिसमस एवं नववर्ष के मौके पर रात 11.55 बजे से रात के 12.30 बजे तक ही आतिशबाजी की इजाज़त होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पूरे भारत में पटाखों के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी, लेकिन कोर्ट ने पटाखों के निर्माण के लिए कड़े मानक तय कर दिये। पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पर भी रोक लगा दी गई है। 'हरित' पटाखों से शोर कम होता है और अन्य पटाखों की तुलना में इसके इस्तेमाल से प्रदूषण ज्यादा नहीं होता। कोर्ट ने 'लड़ी' वाले पटाखों के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी और पुलिस को आदेश दिया कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि पूरे देश में केवल 'हरित' पटाखों की बिक्री हो।
दिवाली या अन्य त्यौहारों पर पटाखों का इस्तेमाल न करने के लिए छात्रों के बीच पिछले कई वर्षों से स्कूलों और कॉलेजों में अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के दौरान छात्रों को बताया जाता है कि पटाखों के इस्तेमाल से वायु प्रदूषित होता है । हालांकि यह अभियान काफी हद तक सफल हुआ है, फिर भी दिवाली या अन्य त्यौहारों पर पटाखों का इस्तेमाल जारी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद कुछ हद तक वांछित परिणाम प्राप्त होने की उम्मीद है ।
वायु प्रदूषण केवल पटाखों से ही नहीं होता बल्कि यह किसानों द्वारा खेतों में अंधाधुंध पराली जलाने से भी होता है। इसपर भी प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। बड़े शहरों के आसपास उद्योगों से निकलने वाले धुएं भी हवा में जहर घोलते हैं। कंस्ट्रक्शन वाली जगहों से उड़नेवाली धूल, गाड़ियों से निकलने वाले धुएं भी वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं।
इन सबको केवल कड़े कानून लागू करके या कोर्ट के सख्त निर्देशों के जरिये रोका नहीं जा सकता। इसमें बड़े पैमाने पर जनभागीदारी की जरूरत है। लोगों को ये समझाने की जरूरत है कि हमारी छोटी-छोटी गलतियां प्रदूषण के लिए कितनी गंभीर होती हैं। इसके लिए स्कूल, कॉलेज, माता-पिता, धर्मिक गुरुओं और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व कर रहे लोगों को कोशिश करनी पड़ेगी। (रजत शर्मा)