मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती का विरोध किया है। इनमें से कुछ ने तो यह ऐलान कर दिया कि वह अपने राज्य में फिल्म के प्रदर्शन की इजाजत नहीं देंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इनके साथ सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि कोई भी आपत्तिजनक चीज नहीं दिखाई जानी चाहिए। समस्या यह है कि इनमें से किसी मुख्यमंत्री ने फिल्म नहीं देखी है, लेकिन वे इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि इस फिल्म में आपत्तिजनक दृश्य है। इससे यह प्रतीत होता है कि ये मुख्यमंत्री भी उस तीव्र विरोध की बयार में बह गए जो पूरी तरह से कल्पना पर आधारित मुद्दा है। फिल्म के कलाकारों और निर्देशक को धमकियां दी गई लेकिन पुलिस की तरफ से कुछ ही मामलों में कार्रवाई की गई।
मैं यह पूरे दावे के साथ कह सकता हूं जब ये सभी मुख्यमंत्री खुद फिल्म देखेंगे तो उन्हें अपने बयानों पर और अपने कारनामों पर बहुत शर्म आएगी। मैं फिर से दोहरा रहा हूं कि इस फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती का कोई प्रेम-प्रसंग नहीं है। इस फिल्म में दोनों का एक सेकेन्ड के लिए भी आमना-सामना नहीं हुआ। ड्रीम सीक्वेंस में प्रेम के दृश्यों की बात बिल्कुल बेकार और बेबुनियाद है। इस फिल्म में न तो राजपूती आन-बान-शान के साथ समझौता किया गया है और न ही रानी पद्मावती के साहस और शौर्य को कम करके दिखाया गया है। इसके विपरीत इस फिल्म में राजपूतों की वीरता और बलिदान को प्रभावी तरीके से पेश किया गया है।
मैं तो एक बार फिर संजय लीला भंसाली से कहूंगा कि इन विरोध करने वालों के लिए एक शो ऑर्गेनाइज करें और योगी आदित्यनाथ, वसुन्धरा राजे और शिवराज सिंह चौहान जैसे मुख्यमंत्रियों से कहूंगा कि फिल्म पर पाबंदी और पद्मावती के मान-सम्मान की बात करने से पहले खुद फिल्म देख लें। फिल्म देखे बगैर शोर मचाने वालों की बात सुनने के बजाए उनकी बात सुनें जिन्होंने फिल्म देखी है। लीडर तो वह होता है जो लीड करे, वह लीडर कैसे हो सकता है जिसे भीड़ गाइड करे और वह भीड़ के पीछे-पीछे चलने लग जाए। (रजत शर्मा)