नए कृषि कानून को लेकर किसानों के विरोध की आड़ में कुछ विपक्षी दलों द्वारा सड़कों पर ड्रामेबाजी की जा रही है। सोमवार को कड़ी सुरक्षा वाले दिल्ली के इंडिया गेट के पास राजपथ पर पंजाब यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने एक ट्रैक्टर में आग लगा दी। पुलिस के भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बावजूद सुबह करीब 7.30 बजे कुछ कारों के काफिले के साथ एक ट्रक राजपथ पर पहुंचा जिसमें एक पुराना ट्रैक्टर था। ट्रक से ट्रैक्टर को सड़क पर उतारा गया और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के कोई कदम उठाने से पहले ही ट्रैक्टर में आग लगा दी। दमकलकर्मियों ने मौके पर पहुंचकर आग की लपटों को बुझाया।
इस पूरी घटना का वीडियो पंजाब यूथ कांग्रेस के फेसबुक पेज पर लाइव किया गया था और कुछ प्रदर्शनकारियों ने वीडियो को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी पोस्ट किया था। दिल्ली पुलिस ने यूथ कांग्रेस के पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन पंजाब यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बरिंदर ढिल्लों फरार है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स जब ट्रैक्टर से जुड़े सारे तथ्यों को जोड़ते हुए मामले की तह तक पहुंचे तब पता चला कि यह ट्रैक्टर पंजाब यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता संदीप भुल्लर के नाम पर रजिस्टर्ड था। भुल्लर ने यह ट्रैक्टर दस दिन पहले ही एक किसान से खरीदा था। चूंकि कुछ दिन पहले (20 सितंबर को) पंजाब के फरीदकोट में और डेरा बस्सी में विरोध प्रदर्शन के दौरान ट्रैक्टर को आग लगाने की तस्वीरें आई थी। जब पुराने वीडियो को देखा गया तो उससे पता चला कि जिस ट्रैक्टर को डेरा बस्सी में जलाया गया था, उसी ट्रैक्टर में दिल्ली में आग लगाई गई। ट्रैक्टर का रजिस्ट्रेशन नंबर भी मैच कर गया। आधे जले हुए ट्रैक्टर को एक ट्रक में दिल्ली लाया गया था, और फिर सोमवार को इंडिया गेट के पास इसमें आग लगा दी गई।
कांग्रेस द्वारा विभिन्न राज्यों में इस तरह की फर्जी ड्रामेबाजी आम लोगों के मन में एक ऐसी धारणा बनाने के लिए की जा रही है ताकि लोगों को यह लगे कि किसान नए कृषि कानून के विरोध में अपने ट्रैक्टर जला रहे हैं। फिलहाल किसानों का विरोध प्रदर्शन केवल पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों तक ही सीमित रह गया है और स्थानीय नेताओं, बिचौलियों और कमीशन एजेंट्स जिनकी कमाई नए कृषि कानूनों के कारण बुरी तरह से प्रभावित हो रही है, प्रदर्शनकारी किसानों का हर तरह से समर्थन कर रहे हैं, हर स्तर पर उनकी मदद भी कर रहे हैं।
पंजाब और हरियाणा में आम किसानों को अफवाहों के जरिए गुमराह किया जा रहा है। किसानों से कहा जा रहा है कि एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) की मंडियां बंद हो जाएंगी और सरकार किसानों की उपज के लिए एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करना बंद कर देगी। केंद्र सरकार ने समय-समय पर इन अफवाहों को निराधार बताया और खारिज कर दिया।
पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शन की अगुवाई खुद वहां के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कर रहे हैं। वे सोमवार को पंजाब में शहीद भगत सिंह के पैतृक गांव खटकर कलां में 45 विधायकों और छह सांसदों के साथ धरने पर बैठे। इन लोगों ने केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और नए कानूनों को किसानों के गले में फांसी का फंदा बताया। उन्होंने कहा कि इससे जनवितरण प्रणाली पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। कैप्टन ने कहा कि जिन राज्यो में इस तरह के कानून पहले से लागू हैं, जहां मंडियों को पहले ही खत्म किया जा चुका है, वहां के किसानों की हालत सरकार को देखनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि क्या कॉरपोरेट घराने गरीबों को सब्सिडी पर अनाज देंगे? कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उनकी सरकार नए कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों को यह नहीं बताया कि उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस ने 2019 के चुनाव घोषणापत्र में एपीएमसी से मुक्त करने का वादा किया था। वो सारी बातें जो कांग्रेस ने उस वक्त अपने चुनाव घोषणापत्र में कही थीं, अमरिंदर ने उसका जिक्र नहीं किया। हालांकि ये भी सही है कि कांग्रेस के नेता आज से नहीं बल्कि पिछले दस साल से मंडियों को खत्म करने के पक्ष में दलीलें दे रहे थे। उस वक्त बीजेपी के लोग इसका विरोध करते थे। लेकिन अब बीजेपी की सरकार ने जब वही स्टैंड ले लिया जो पहले कांग्रेस का था, तो कांग्रेस अपने पुराने स्टैंड को किसान विरोधी क्यों बता रही है? कांग्रेस क्यों कृषि बिल का जोरदार विरोध कर रही है?
यहां तक कि बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी और केंद्र की एनडीए सरकार में शामिल शिरोमणि अकाली दल भी एनडीए से अलग हो गया। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं को नए कृषि कानून पर अपना जनाधार खिसकता हुआ नजर आया, उन्हें लगा कि इससे उनका किसानों का वोट बैंक टूट जाएगा इसलिए एनडीए से नाता तोड़ लिया। मैंने अपने रिपोर्टर को पंजाब और हरियाणा के गांवों में भेजा और सीधे किसानों से बात करने को कहा। किसानों का कहना है कि अगर मंडी खत्म हुई, आढ़तिए खत्म हुए तो नुकसान किसानों का होगा। क्योंकि किसानों का आढ़तियों से पीढ़ियों का रिश्ता होता है। बुरे वक्त में या जरूरत के वक्त में आढ़तिए किसानों की मदद करते हैं। अगर आढ़तिए खत्म हो गए तो किसान कहां जाएंगे।
ऐसा लग रहा है कि देश की कृषि में बदलाव को लेकर सरकार की बात अबतक पंजाब और हरियाणा के किसानों तक नहीं पहुंची है। किसान ये कह रहे हैं कि कुछ सालों तक कंपनियां उनकी फसल ज्यादा दाम में खरीदेंगी। जब मंडियां खत्म हो जाएंगी तो फिर कंपनियों की मोनोपॉली (एकाधिकार) होगी और फिर किसान औने-पौने दामों पर अपनी फसलें बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेचने के लिए मजबूर होंगे। मुझे लगता है कि किसानों की शंकाओं को दूर करने के लिए कुछ और क्लेरीफिकेशन देने की जरूरत है। हर पहलू को स्पष्ट करने और किसानों की बात सुनने की जरूरत है। क्योंकि जहां-जहां अटकलें लगाई जाती हैं, वहां अविश्वास बढ़ता है और इससे बचने का जितनी जल्दी उपाय करेंगे उतना बेहतर होगा। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 28 सितंबर, 2020 का पूरा एपिसोड