बीजेपी उत्तर प्रदेश में अपने दो मजबूत गढ़ गोरखपुर और फूलपुर में उपचुनाव क्यों हारी? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि अति आत्मविश्वास इसकी वजह हो सकता है जबकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि यह सोशल इंजीनियरिंग और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के बहुमूल्य समर्थन का नतीजा है। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने जटिल जातीय समीकरणों पर काफी मेहनत की थी जिसका अच्छा लाभ उसे मिला था। इस बार अखिलेश यादव ने भी ठीक उसी फॉर्मूले को अपनाया और बीजेपी को मात दी। उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से नाराज चल रहे बड़ी तादाद में विभिन्न जातियों के नेताओं को अपने साथ जोड़ा। इस बार अखिलेश यादव ने निषाद पार्टी और पीस पार्टी को साथ लिया और नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया खत्म होने के बाद मायावती ने यह ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी उस मजबूत उम्मीदवार का समर्थन करेगी जो बीजेपी को हरा सके। मायावती द्वारा समाजवादी पार्टी को समर्थन देने के इस ऐलान के बाद बीजेपी के पास कोई मौका ही नहीं था और बदली हुई परिस्थितियों में उसे चुनावी मुकाबले का सामना करना पड़ा। यही वजह है कि बुधवार को उपचुनाव के परिणाम की घोषणा के बाद अखिलेश यादव ने अपने 15 मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस में धुर राजनीतिक विरोधी से सहयोगी बनीं मायावती को कई बार धन्यवाद दिया। इसके बाद उन्होंने मायावती से फोन पर बात की और मुलाकात की इच्छा जताई। बीएसपी सुप्रीमो ने अखिलेश यादव को अपने घर तक लाने के लिए काले रंग की मर्सिडीज भेजी।
अब इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन करेंगे। वहीं दूसरी तरफ, बीजेपी के नेता जनता के बीच कुछ भी कहें, लेकिन यूपी और बिहार में हार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए शुभ संकेत नहीं है। विरोधी दलों के नेता तो पिछले कई दिन से इस कोशिश में लगे हैं कि मोदी को हराने के लिए सब एक हो जाएं। ममता बनर्जी और उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने ट्वीट करके सबसे पहले उपचुनाव के नतीजों का स्वागत किया और इसी तरह के संकेत एक बार फिर दिए। अब गोरखपुर और फूलपुर के नतीजों की मिसाल विरोधी दलों को साथ लाने के लिए दी जाएगी जो कि सबको एक मंच पर लाने के लिए चुंबक का काम करेगी।
सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने होगी। गोरखपुर में कांग्रेस का उम्मीदवार चौथे नंबर पर रहा और उसकी जमानत जब्त हो गई। इस चक्कर में कांग्रेस की राजनीतिक सौदेबाजी की शक्ति (Bargaining Power) धीरे-धीरे कम होती जा रही है। अब अखिलेश, कांग्रेस को ज्यादा भाव नहीं देंगे। बुधवार को इंडिया टीवी को दिए अपने इंटरव्यू में उनके सहयोगी रामगोपाल यादव ने यह साफ किया था कि जब कांग्रेस ने अलग उम्मीदवार उतारा और चुनाव के दौरान यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष, अखिलेश को भला बुरा कहते रहे...तो फिर कांग्रेस से तालमेल की संभावना कहां है? अगर अखिल भारतीय स्तर पर बीजेपी विरोधी मोर्चा उभरता है तो उसमें कांग्रेस की भूमिका क्या होगी इसको लेकर कुछ भी साफ नहीं है। यहां तक कि खुद कांग्रेस के नेता भी नहीं जानते कि विपक्ष की एकजुटता के लिए पार्टी की भूमिका क्या होगी। (रजत शर्मा)