मेट्रो शहर हो या गांव हर जगह पर आम आदमी तेल की बढ़ी कीमतों से इन दिनों परेशान है। कच्चे तेल की कीमतों में हाल ही में वैश्विक स्तर पर बढ़ोत्तरी देखने को मिली है लेकिन सोशल मीडिया पर पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले उच्च स्तर के करों और उत्पादन शुल्क को लेकर व्यापक स्तर पर चर्चा हो रही है।
अगर आप पेट्रोल की कीमतों का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि पेट्रोल की वास्तविक कीमत उसकी कुल कीमत से आधी है। कुल कीमत का करीब आधे से ज्यादा हिस्सा करों और उत्पादन शुल्क से जुड़ा है। कई राज्यों में यह कुल कीमत का 54 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। अगर हम सिर्फ दिल्ली की बात करें तो एक लीटर पेट्रोल के लिए आपको 76.87 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। जिसमें से 3.50 रुपए सीधे डीलर के पास जाता हैं और करीब 36 रुपए केंद्रीय उत्पादन शुल्क, राज्य ब्रिकी कर और अन्य करों के रूप में सरकार के पास जाता है।
अगर पेट्रोल और डीजल को केंद्र सरकार जीएसटी के अंदर ले आती है तो ज्यादा से ज्यादा इनपर 18 फीसदी से लेकर 28 फीसदी तक कर लग सकता है। जिसके चलते तेल की कीमतों में भारी कमी देखने को मिल सकती है लेकिन कई राज्य सरकार इस बात पर सहमत नहीं हैं। राज्य सरकारों का कहना है कि उनकी कमाई का बड़ा भाग तेल से उत्पनन होने वाले राजस्व से जुड़ा है। कई राज्यों का तो पूरा-पूरा बजट तेल से उत्पन्न होने वाले राजस्व पर निर्भर है। इसलिए राज्य सरकारें जीएसटी में पेट्रोल और डीजल को शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं।
लेकिन लगता है कि अब समय आ चुका है जब केंद्र सरकार को इस समस्या के इलाज के लिए कॉस्मिटक तरीके अपनाने की जगह स्थायी हल खोजना चाहिए। तेल की कीमतों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए राज्य सरकारों के बीच सहमति बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। इसी के माध्यम से आम आदमी को राहत पहुंच सकती है।