Sunday, December 29, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog: यूपी के वोटरों का मूड भांपने में नाकाम रहे अखिलेश और मायावती

Rajat Sharma’s Blog: यूपी के वोटरों का मूड भांपने में नाकाम रहे अखिलेश और मायावती

बीएसपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीती थी, जबकि इस बार पार्टी के प्रत्याशियों ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : June 04, 2019 14:57 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma | India TV
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma | India TV

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने सोमवार को पार्टी के पदाधिकारियों के साथ की गई एक समीक्षा बैठक में संकेत दिया कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ उनका गठबंधन (महागठबंधन) लगभग समाप्त हो गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस बारे में साफ-साफ कुछ नहीं कहा। बैठक में मौजूद लोगों के मुताबिक, मायावती ने अपनी पार्टी के नेताओं से कहा कि वे अपने दम पर 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ने के लिए तैयार रहें।

सूत्रों के मुताबिक, बसपा सुप्रीमो ने इस बैठक में कहा कि अखिलेश यादव अपनी पारिवारिक सीट भी नहीं बचा पाए और उनकी पत्नी के साथ-साथ चचेरे भाई तक चुनाव हार गए। उन्होंने कथित तौर पर कहा कि समाजवादी पार्टी यादव वोटों का बसपा के उम्मीदवारों को ट्रांसफर करवाने में नाकाम रही, जबकि अजीत सिंह जाटों का वोट बसपा प्रत्याशियों को दिला पाने में नाकाम रहे। मायावती ने बैठक में कथित तौर पर यह भी कहा कि हालांकि वह अभी महागठबंधन की समाप्ति की घोषणा नहीं करेंगी, लेकिन पार्टी को अपने दम पर 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ने की तैयारी करनी चाहिए।

मायावती के यह कहने में शायद कुछ भी गलत नहीं है कि गठबंधन को जारी रखने का कोई मतलब नहीं रह गया है। सियासत में एक पार्टी हमेशा दूसरी पार्टी की कीमत पर ही सत्ता हासिल करती है। बीएसपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीती थी, जबकि इस बार पार्टी के प्रत्याशियों ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ। इसकी बजाय मायावती यह कह सकती हैं कि उनकी पार्टी ने उतनी सीटें नहीं जीतीं जितनी उन्होंने उम्मीद की थी।

मेरे ख्याल से यहां न तो गलती अखिलेश यादव की है और न ही मायावती की। इन दोनों बड़े नेताओं ने जातिगत समीकरणों के आधार पर, कागजों पर अपनी-अपनी पार्टियों के वोट शेयरों को जोड़कर गठबंधन कर लिया। लेकिन 2019 में उत्तर प्रदेश की जमीनी हकीकत कुछ और ही थी। यहां मतदाताओं ने जाति आधारित वोट बैंक की राजनीति को खारिज कर दिया था और वे मोदी के नाम और काम पर वोट दे रहे थे। वहीं, अखिलेश और मायावती वोटरों के मिजाज को समझ नहीं पाए और दोनों इसे टीवी चैनल्स द्वारा बनाया गया फर्जी माहौल करार देते रहे।

अखिलेश अभी युवा हैं और उनके पास अनुभव की कमी है। मुझे उम्मीद है कि चुनाव बीतने के बाद अब उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो गया होगा। जब अखिलेश ने चुनाव प्रचार की शुरुआत में अचानक मायावती के साथ गठबंधन की घोषणा की थी, तभी उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अखिलेश अनुभवहीन हैं और उन्होंने ‘मरे हुए हाथी’ को जिंदा कर दिया है। मुलायम सिंह की यह बात सही साबित हुईं। यादव खानदान के सदस्य चुनाव हार गए और सपा का वोट शेयर भी पहले के मुकाबले काफी कम हो गया। वहीं, दूसरी तरफ मायावती की पार्टी फायदे में रही और उसने अपनी सीटों की संख्या 0 से 10 तक पहुंचा दी। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 03 जून 2019 का फुल एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement