हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन सरकार के लिए रास्ता बिल्कुल साफ हो गया है। शुक्रवार की रात दोनों दलों ने संयुक्त रूप से ऐलान किया कि इस गठबंधन की सरकार में मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री होंगे जबकि दुष्यंत चौटाला को उप-मुख्यमंत्री का पद मिलेगा। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि 'जनादेश का सम्मान करते हुए' उप मुख्यमंत्री का पद दुष्यंत चौटाला को देने का निर्णय लिया गया है।
हरियाणा में एक स्थिर सरकार देने के लिए अमित शाह ने बेहद चतुराई से काम किया। उन्होंने निर्दलीयों के साथ समझौते की तमाम झंझटों से मुक्त होना उचित समझा जो कि चुनाव परिणाम आते ही बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान कर चुके थे। वहीं, सत्ता के इस खेल में दुष्यंत चौटाला बेहद समझदार राजनीतिज्ञ के रूप में उभरे। कम उम्र में ही वे अपने दादा की पार्टी आईएनएलडी से अलग हो गए, उन्होंने अपना खुद का संगठन बनाया, प्रचार में कड़ी मेहनत की और 10 सीटें हासिल कर किंगमेकर की भूमिका में आ गए। चुनाव परिणाम आने के बाद दुष्यंत चौटाला ने अत्यंत धैर्य का परिचय दिया, अपनी पार्टी के नेताओं को विश्वास में लिया और हरियाणा की सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर एक ऐसी डील की, जो समझदारी से भरा प्रतीत होता है।
मैं दुष्यंत चौटाला को समझदार इसलिए बता रहा हूं क्योंकि बीजेपी ने पहले ही करीब आठ निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया था और वह सरकार बनाने की स्थिति में थी, क्योंकि उसे महज 6 विधायकों के समर्थन की जरूरत थी। चूंकि जेजेपी एक नयी पार्टी है इसलिए सत्ता के उपयोग से दुष्यंत को अपनी पार्टी का आधार और समर्थन बढ़ाने में मदद मिलेगी। हालांकि हरियाणा में गठबंधन होने के बाद अब महाराष्ट्र में इसका कुछ असर हो सकता है जहां शिवसेना सीएम पद के लिए शोर मचा रही है। वहां बीजेपी नेतृत्व ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि सीएम पद पर कोई समझौता नहीं होगा और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
जिस तेजी के साथ बीजेपी ने जेजेपी के साथ समझौता किया वैसी तेजी और फुर्ती कांग्रेस पार्टी में नजर नहीं आई। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में लड़े गए इस चुनाव में 31 सीटों पर सफलता तो मिली लेकिन पार्टी के अंदर एक सुस्ती सी साफ नजर आ रही थी। एक जमाना वो था जब सरकार बनाने के लिए समर्थन जुटाने में कांग्रेस के नेता माहिर माने जाते थे। लेकिन अब चाहे गोवा हो या हरियाणा, हमने देखा कि कांग्रेस की शुरुआत ही देर से होती है। यह स्पष्ट है कि सुस्ती के कारण कांग्रेस नेतृत्व विफल रहा।
केवल यही एक मामला नहीं है, पार्टी नेतृत्व द्वारा हुड्डा को कमान सौंपने में समय लगा, पार्टी का चुनाव अभियान देर से शुरू हुआ और अब सरकार बनाने के प्रयासों को शुरू करने में भी देरी हुई।
यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे आए दो दिन हो गए हैं लेकिन किसी को नहीं पता कि राहुल गांधी कहां है और क्या कर रहे हैं। न तो चुनाव नतीजों पर उनका कोई बयान आया और न ही सरकार बनाने की दिशा में उनका कोई प्रयास नजर आया। हालांकि कांग्रेस के एक नेता ने मुझे ये भी कहा कि अच्छा हुआ कि हरियाणा में राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार नहीं किया, वरना पार्टी को 31 सीटें भी नहीं मिलती। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 25 अक्टूबर 2019 का पूरा एपिसोड