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Rajat Sharma’s Blog: बिहार चुनाव - एनडीए के लिए बोझ बने नीतीश कुमार

बीजेपी के नेता भी ये समझ गए हैं कि नीतीश कुमार के पंद्रह साल के शासन के बाद लोगों में नाराजगी तो है। कोरोना के दौरान मिस मैनेजमेंट हो या फिर बाढ़ के वक्त नीतीश की गैर-मौजूदगी, लोग ये सब भूले नहीं हैं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : October 22, 2020 16:24 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने आपको बिहार के मधुबनी, खगड़िया, बेतिया, आरा, पटना, बक्सर, हाजीपुर और राघोपुर जैसी जगहों पर आम मतदाताओं का मूड बताने की कोशिश की। इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने इन जगहों पर आम मतदाताओं से बात की। यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। इन इलाकों में एंटी इन्कम्बैंसी को साफ महसूस किया जा सकता है। यहां केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही गेम चेंजर साबित हो सकते हैं, जो शुक्रवार को प्रचार के मैदान में उतरने वाले हैं। अब मोदी ही आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन के पासे को पलट सकते हैं। 

बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के बड़े-बड़े धुरंधर मोर्चा संभाले हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी प्रचार में उतर चुके हैं। इन लोगों ने मतदाताओं का मिजाज भांप लिया है कि वे इसबार बदलाव चाहते हैं। बीजेपी के नेता भी ये समझ गए हैं कि नीतीश कुमार के पंद्रह साल के शासन के बाद लोगों में नाराजगी तो है। बिहार में नीतीश कुमार ने 15 साल तक शासन किया, पहले भाजपा के साथ गठबंधन किया और फिर आरजेडी के साथ महागठबंधन में शामिल हो गए। बाद में वे महागठबंधन से भी निकल गए और वापस भाजपा के साथ एनडीए गठबंधन में शामिल हो गए।

ऐसे में सवाल उठता है कि मतदाता अपने मुख्यमंत्री से क्यों नाराज हैं? इंडिया टीवी रिपोर्टर्स ने जब लोगों से बात की और तो उनकी बात सुनने के बाद लगता है कि बिहार में चुनाव की तस्वीर जनता के सामने स्पष्ट है। चुनाव लड़ने वाले भी माहौल को समझ रहे हैं और चुनाव लड़ाने वाले भी। बीजेपी के नेता भी ये समझ गए हैं कि नीतीश कुमार के पंद्रह साल के शासन के बाद लोगों में नाराजगी तो है। कोरोना के दौरान मिस मैनेजमेंट हो या फिर बाढ़ के वक्त नीतीश की गैर-मौजूदगी, लोग ये सब भूले नहीं हैं। तेजस्वी यादव हों या चिराग पासवान या फिर उपेंद्र कुशवाहा, सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बेदाग छवि लोगों के जेहन में है, लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। मतदाताओं में से किसी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ नहीं कहा। लोग कह रहे हैं कि वो नीतीश से खुश नहीं हैं, लेकिन मोदी जी के कहने पर एक बार फिर नीतीश को वोट दे देंगे। सार्वजनिक जीवन में मोदी की स्वच्छ छवि आम मतदाताओ के मन में है, लेकिन नीतीश कुमार के समर्थन में किसी ने कुछ नहीं कहा। 

उधर, आरजेडी के नेता और मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव भी जनता का मूड भांप चुके हैं। यही वजह है कि वे अपने भाषणों में सिर्फ नीतीश कुमार को निशाना बनाते हैं। वे सिर्फ नीतीश कुमार के कामों की बात करते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लेते हैं। वे जानते हैं कि आम जनता का प्रधानमंत्री मोदी के प्रति गहरा लगाव है। 

चिराग पासवान तो साफ-साफ कह रहे हैं कि वो मोदी के भक्त हैं, लेकिन नीतीश कुमार को किसी कीमत पर दोबारा सत्ता में नहीं आने देना चाहते। बीजेपी के सीनियर नेता चाहे योगी आदित्यनाथ हों, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह या रविशंकर प्रसाद हों, ये सारे नेता मोदी के नाम पर और मोदी के काम पर वोट मांग रहे हैं। वे अपने भाषणों में कभी-कभार ही नीतीश कुमार का नाम ले रहे हैं। अब मोदी खुद चुनाव प्रचार में उतरेंगे। शुक्रवार को मोदी की तीन रैलियां होंगी। बिहार चुनाव में मोदी कुल 12 रैलियां करेंगे। बीजेपी नेताओं को उम्मीद है कि मोदी की रैलियों के बाद तस्वीर और बदलेगी। मोदी की रैली गेमचेंजर साबित हो सकती है। मोदी अपने प्रचार में मतदाताओं को आगाह कर सकते हैं कि वे एंटी इन्कम्बैंसी के नाम पर कोई गलती नहीं करें, क्योंकि बिहार के लोग 15 साल के राजद के कुशासन को नहीं भूले हैं। उस दौरान राज्य में कानून-व्यवस्था की हालत बेहद बदतर हो गई थी। यहां तक कि एंटी इन्कम्बैंसी से बचने के लिए नीतीश कुमार भी मोदी का नाम ले रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर लालू यादव भ्रष्टाचार के केस में सजा काट रहे हैं। वे ढाई साल से जेल में हैं और ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल के चुनाव प्रचार का पूरा दारोमदार तेजस्वी यादव पर है। तेजस्वी क्रिकेट के खिलाड़ी रह चुके हैं और उन्होंने 9वीं क्लास तक पढ़ाई की है। सत्ता में आने के बाद 10 लाख युवाओं को रोजगार के वादे से वे मतदाताओं के बीच उत्साह पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। चुनाव प्रचार में तेजस्वी जबरदस्त मेहनत कर रहे हैं। जो लोग उन्हें राजनीति में बच्चा समझ रहे थे, वे भी तेजस्वी की मेहनत देखकर, उनकी रैलियों में जुट रही भीड़ को देखकर और तेजस्वी के अंदाज को देखकर चिंता में हैं। बुधवार को तेजस्वी यादव ने 12 रैलियां की। सोचिए बारह चुनावी रैली एक दिन में, कोई लंबा भाषण नहीं। वे बिहार की जनता से ठेठ बिहारी अंदाज में बात करते हैं। तेजस्वी यादव अपने भाषणों में न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हैं, न बीजेपी के दूसरे नेताओं की बात करते हैं। सिर्फ फोकस नीतीश कुमार पर है। सिर्फ बिहार की बात करते हैं, बिहारियों की बात करते हैं। राजद, कांग्रेस, वाम दलों और कुछ छोटे दलों को मिलाकर बने महागठबंधन के कर्णधार के तौर पर तेजस्वी उभर रहे हैं। युवा मतदाताओं के बीच तेजस्वी की अपील कितना असर करती है, इसका नतीजा तो 10 नवंबर को सामने आ जाएगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 21 अक्टूबर, 2020 का पूरा एपिसोड

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