आज मैं आप सभी को साइबर फ्रॉड करने वाले गिरोहों से सावधान करना चाहता हूं। ये गिरोह बैंक अधिकारी बनकर लोगों के बैंक खातों से पैसे उड़ा लेते हैं। इन गिरोहों ने हाल के महीनों में हजारों ग्राहकों के बैंक खातों से करोड़ों रुपयों की चोरी की है। ज्यादातर पीड़ितों को उनका पैसा कभी वापस नहीं मिल पाता और अधिकांश मामलों में पुलिस जालसाजों को पकड़ने में नाकाम रहती है। इंडिया टीवी के पास दर्शकों के सैकड़ों फोन कॉल रोजाना आते हैं जिनमें लोग बताते हैं कि कैसे ऑनलाइन धोखाधड़ी के जरिए उनकी गाढ़ी कमाई लूट ली गई।
इन गैंग्स का जालसाजी करने का तरीका बेहद आसान है: वे बैंक एग्जेक्यूटिव बनकर ग्राहकों को फोन करके कहते हैं कि उनके बैंक खातों को सस्पेंड कर दिया जाएगा या केवाईसी (Know Your Customer) वेरिफिकेशन न होने के चलते उनका एटीएम कार्ड ब्लॉक हो जाएगा। ये जालसाज ग्राहकों से उनके बैंक खातों का ब्यौरा, यहां तक कि ओटीपी (One Time Password) के बारे में सारी जानकारी ले लेंगे और फिर मिनटों के अंदर हजारों, लाखों रुपये बैंक खातों से ऑनलाइन ट्रांसफर हो जाएंगे। बैंक एग्जेक्यूटिव बनकर ठगी को अंजाम देने वाले इन धोखेबाजों से निपटने का एक ही तरीका है कि इनको चैलेंज किया जाए, और इन्हें फोन या संदिग्ध ईमेल लिंक्स पर किसी भी तरह की जानकारी न दी जाए।
बीते कुछ महीनों में 10 राज्यों की पुलिस ने कई बार झारखंड में जामताड़ा नाम के एक कस्बे का दौरा किया है। ये गिरोह यहीं से अपना कामकाज करते हैं। भोपाल साइबर क्राइम सेल के अधिकारियों ने मंगलवार को ऐसे ही एक गैंग के 5 लोगों को मध्य प्रदेश की राजधानी से लगभग 1,500 किलोमीटर दूर जामताड़ा से गिरफ्तार किया। इन पांचों जालसाजों ने KYC डिटेल्स अपडेट करने के नाम पर एक रिटायर्ड BHEL अधिकारी के बैंक अकाउंट से 10 लाख 40 हजार रुपये निकाल लिए थे।
यह तो इस गिरोह के कारनामों की एक झलक भर है। पुलिस के मुताबिक, पांचों आरोपियों के पास से जो बैंक स्टेटमेंट जब्त किए गए हैं उन्हें खंगालने से ऐसा लगता है कि इस गिरोह ने करीब 1,000 लोगों के अकाउंट्स से 10 करोड़ रुपये की ठगी की है। इस गैंग के मेंबर्स झारखंड-पश्चिम बंगाल की सीमा पर बने आलीशान घरों में रहते हैं। इन इमारतों में अत्याधुनिक अलार्म, सेंसर-बेस्ड दरवाजे और वॉयस कमांड लाइट सिस्टम जैसी सुविधाएं मौजूद हैं। पुलिस ने कहा कि इस गिरोह ने उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई अन्य राज्यों में कई हजार बैंक ग्राहकों को ठगा है।
भोपाल के हमारे रिपोर्टर अनुराग अमिताभ ने BHEL के रिटायर्ड अधिकारी देवनाथ पाठक से बात की, जिन्होंने विस्तार से बताया कि उनके साथ क्या हुआ था। यह सारा खेल ग्राहक से OTP हासिल करने से शुरू होता है। एक बार जब गैंग के मेंबर को OTP मिल जाता है, तो अकाउंट से लिंक फोन नंबर को बदल दिया जाता है। इसके बाद ग्राहक के अकाउंट से सारे पैसे निकाल लिए जाते हैं, लेकिन इन ट्रांजैक्शंस का मैसेज दूसरे फोन नंबर पर जाता है। ऐसे में ग्राहक अंधेरे में ही रहता है और बैंक स्टेटमेंट के आने पर ही उसे ठगी के बारे में पता चलता है।
पुलिस के मुताबिक, गैंग के लोग फेसबुक प्रोफाइल के जरिए अपना शिकार चुनते हैं। या फिर ये लोग किसी भी कंपनी के मोबाइल नंबर्स की एक सीरीज को सेलेक्ट करते हैं, शुरू के 6 डिजिट उससे लेते हैं और आखिरी के 4 नंबर रेंडमली लगाते हैं। फिर वे बैंक एग्जेक्यूटिव बनकर ग्राहक को बताते हैं कि केवाईसी वेरिफिकेशन न करवाने के कारण उनका बैंक अकाउंट और ATM कार्ड ब्लॉक होने वाला है। देवनाथ पाठक के केस में उनके खाते से 27 बार 8 अलग-अलग बैंक खातों में पैसा भेजा गया, और ये सभी जामताड़ा में थे। भोपाल के पुलिसकर्मी जामताड़ा पहुंचे तो आदिवासियों ने अपने घरों से उनके ऊपर पत्थर फेंककर उनका स्वागत किया।
आखिरकार इन 5 जालसाजों के पास से एक एसयूवी, 13 सेल फोन, 11 एटीएम कार्ड और 50 जाली सिम कार्ड बरामद किए गए। गिरफ्तार किए गए सभी पाचों आरोपी झारखंड और पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के दूर-दराज के इलाकों के अलग-अलग गांवों में रह रहे थे। गिरफ्तार किए गए लोगों में जामताड़ा निवासी मोहम्मद इमरान अंसारी, पश्चिम बंगाल के चित्तरंजन का रहने वाला अभिषेक सिंह, पश्चिम बंगाल के आसनसोल के रहने वाले मोहम्मद अफजल एवं गुलाम मुस्तफा और पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले का निवासी संजू देबनाथ शामिल हैं।
2 लोगों को छोड़कर गैंग के अधिकांश मेंबर्स या तो अनपढ़ हैं या बहुत कम पढ़े-लिखे हैं। मोहम्मद अफजल कक्षा 3 तक पढ़ा है, वह बैंक अकाउंट्स और नकली सिम कार्ड की व्यवस्था करता था। उसका काम एटीएम से ठगी के पैसे निकालना भी था। गुलाम मुस्तफा 8वीं कक्षा तक पढ़ा है, वह फर्जी बैंक खाते खोलकर उन्हें 'कमिशन' पर बेचता था। संजू देबनाथ दूसरी कक्षा तक पढ़ा है, वह फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बैंक अकाउंट्स खुलवाता था। इस गिरोह के मास्टरमाइंड मोहम्मद इमरान अंसारी ने दावा किया कि उसने बी.टेक. तक की पढ़ाई की है। बैंक अधिकारी बनकर वही ग्राहकों से बात करता था। अंसारी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता है और उसे बैंकों के कामकाज के बारे में अच्छी जानकारी है। वह ग्राहकों से ओटीपी हासिल करता था और इसे अपने गैंग के लोगों को अकाउंट्स से पैसे निकालने के लिए बढ़ा देता था। इस काम में उसकी मदद अभिषेक सिंह करता था। अभिषेक ने और जालसाजी को अंजाम देने के लिए वह ऑनलाइन बैंक खातों को ऐक्सेस करता था। उसे अफजल, गुलाम मुस्तफा और संजू देबनाथ फर्जी बैंक खाते उपलब्ध करवाते थे जिनमें ठगी के पैसे ट्रांसफर किए जाते थे।
इस गैंग के लोग जामताड़ा, आसनसोल और आसपास के इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को फर्जी बैंक अकाउंट्स खोलने के लिए राजी करते थे, और उसके लिए उन्हें हर महीने 10,000 से 15,000 रुपये दिए जाते थे। चूंकि इन आदिवासियों को आसानी से अच्छी कमाई हो जाती है, इसलिए जब भी पुलिस ठगों पकड़ने के लिए गांवों में पहुंचती है तो वे ठगों का बचाव करते हैं। आदिवासी महिलाएं पुलिस की टीम पर पथराव करती हैं और गैंग के लोग बच निकलते हैं। ऑनलाइन धोखाधड़ी करने वाले इस गैंग के लोगों की तलाश में कम से कम 10 राज्यों की पुलिस ने जामताड़ा के आसपास के 50 गांवों का दौरा किया है। नागालैंड के पुलिसकर्मियों की एक टीम हाल ही में जामताड़ा आई थी और गैंग के एक सदस्य को पकड़कर अपने साथ ले गई थी। केरल की एक पुलिस टीम भी उस गैंग के लोगों की तलाश में आई थी, जिसने राज्य की एक महिला से ठगी की थी।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि झारखंड के देवघर, गिरिडीह और धनबाद जैसे जिलों में भी साइबर क्रिमिनल्स ऐक्टिव हैं। कुछ मामलों में जालसाज फोन कॉल करने के बजाय केवाईसी अपडेट करने के लिए ग्राहकों के फोन नंबरों पर लिंक भेजते हैं। कुछ ठगों ने तो कोरोना काल में कोविड-19 की वैक्सीन बुक कराने के नाम पर भी लोगों से पैसे ऐंठ लिए। पुलिस का कहना है कि ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब दूसरे राज्यों की पुलिस या फिर बाकी जांच एजेंसियों के अफसर साइबर क्राइम के सिलसिले में जामताड़ा या आसपास के इलाकों में विजिट ना करते हों। पुलिस अफसरों का कहना है कि जामताड़ा ही साइबर क्राइम का सबसे पहला एपिसेंटर है। पांडेडीह, झुलवा, कालाझरिया, दुधानी मटर, खेरकोकुंडी, मोहनपुर, टोपाटार जैसे गांव उन लगभग 50 गांवों में शामिल हैं जहां से ऑनलाइन साइबर क्राइम को अंजाम दिए जाने के बारे में पता चला है।
साइबर फ्रॉड क्राइम पर पुलिस के आंकड़े डराने वाले हैं। हमारे देश में औसतन इस तरह की ठगी के 3,137 मामले हर रोज हो रहे हैं। कोरोना काल में डिजिटल ट्रांजैक्शन्स में 41 प्रतिशत तक बढ़े हैं और इसके साथ-साथ साइबर ठगी के मामलों में भी 28 पर्सेंट की बढ़ोत्तरी हुई है। करीब 25 हजार करोड़ रुपये की साइबर ठगी की गई है। सिर्फ 2019 में ही साइबर क्राइम के कारण देश को सवा लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अकेले दिल्ली पुलिस ने कोरोना काल में साइबर ठगी के मामलों में 214 बैंक अकाउंट सीज किए हैं, 900 फोन जब्त किए हैं और 91 लोगों को जेल पहुंचाया है।
मैं आप सभी से अपील करता हूं कि आप अपने बैंक खातों के बारे में कोई भी ब्यौरा दूसरों से शेयर न करें, चाहे फोन पर हो या इंटरनेट पर। साइबर ठगों का गिरोह काफी सक्रिय है। जब भी आपके पास ऐसे फोन कॉल आएं, तो इस बात को हमेशा याद रखें: कोई भी बैंक आपसे कभी भी फोन, मेल या इंटरनेट पर आपके खातों के ब्यौरे नहीं मांगता। इन सब चीजों को हैंडल करने का बैंक का अपना तरीका होता है।
ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि जालसाजों से डरकर, साइबर क्राइम से डरकर आप डिजिटल बैंक ट्रांजैक्शन ही न बंद कर दे। महामारी और लगातार लॉकडाउन लागू होने के कारण, डिजिटल बैंक ट्रांजैक्शन सबसे तेज और सबसे सुरक्षित तरीका रहा है, लेकिन कभी भी अपना ओटीपी किसी और के साथ शेयर न करें। अपने फोन पर या अपने ई-मेल में आए हुए OTP को डिलीट कर दें, भले ही वे सिर्फ कुछ सेकंड के लिए ही क्यों न होते हों।
भारत में बैंकिंग की तस्वीर पिछले 6 सालों में डिजिटल ट्रांजैक्शन के कारण काफी बदल गई है। खास तौर से पिछले डेढ साल में, कोरोना के कारण जब सारे लोग मुसीबत में थे, तब डिजिटल इंडिया बहुत काम आया। कल्पना कीजिए कि लोगों के ऊपर क्या बीतती, अगर लॉकडाउन के दौरान डिजिटल बैंकिंग मनी ट्रांसफर की सुविधा न होती। अगर डिजिटाइजेशन न हुआ होता तो कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर पड़ सकती थी। इसलिए जब भी कोई फोन पर या ईमेल पर आपसे संपर्क करके खुद को बैंक अधिकारी बताए, तो उससे डील करते समय सावधानी बरतें। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 01 जुलाई, 2021 का पूरा एपिसोड