एमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी और दो चार नेताओं को छोड़कर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के अधिकांश नेताओं ने अयोध्या मसले पर श्री श्री रविशंकर की पहल का स्वागत किया है। ये लोग श्री श्री रविशंकर की कोशिश और उनके भरोसे का सम्मान कर रहे हैं। अयोध्या का विवाद करीब 500 साल पुराना है। डेढ़ सौ साल से अदालतों में मुकद्दमे चल रहे हैं। सैकड़ों बार हिंसा हो चुकी है। हजारों बार बात हो चुकी है। अगर बातचीत से रास्ता निकलना होता तो शायद अब तक निकल आता। दरअसल यह मुद्दा कुछ लोगों का या कुछ संगठनों का नहीं है। यह आस्था का मामला है। सारे हिन्दू चाहते हैं कि अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण हो, लेकिन मुसलमानों में एक राय नहीं है। यह सही है कि बहुत से मुसलमान राममंदिर के पक्ष में हैं और वे विवाद को खत्म करना चाहते हैं। लेकिन कुछ मुस्लिम नेता और संगठन कोर्ट से बाहर बातचीत के जरिए इस मुद्दे के समाधान (आउट ऑफ कोर्ट सैटलमेंट) के पक्ष में नहीं हैं। इन लोगों में अधिकांश पैसे वाले और रसूखदार हैं। जब तक एक भी पक्ष इस समझौते की मुखालफत करेगा, फैसला अदालत को ही करना पड़ेगा और वह फैसला सबको मानना पड़ेगा। इसलिए सबको कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। श्री श्री रविशंकर की कोशिश का कम से कम इतना फायदा तो होगा कि दोनों समुदायों के बीच कड़वाहट और दूरियां कम हो जाएंगी। (रजत शर्मा)