पुणे पुलिस ने मंगलवार को देश के सात शहरों में एक के बाद एक छापे मारकर नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और लेखक पी. वरवरा राव, वकील वेर्नोन गॉन्साल्विस, मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील अरुण फेरेरा, कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में गिरफ्तार कर लिया। इस साल जनवरी में हुई हिंसा में एक शख्स की मौत हो गई थी जबकि बड़े पैमाने पर आगजनी और दंगे हुए थे। यह हिंसा एलगार परिषद् की तरफ से आयोजित एक रैली के तुरंत बाद हुई थी जिसे दलित और वाम समर्थक नेताओं ने संबोधित किया था।
राष्ट्रव्यापी छापों के बाद सोशल मीडिया पर खूब हायतौबा मची और कांग्रेस और सीपीआई (एम) ने इस कार्रवाई की निंदा की। भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच के दौरान पुणे पुलिस को इस सिलसिले में पकड़े गए एक संदिग्ध के कंप्यूटर से एक मेल मिला था जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश का जिक्र था। रोड शो के दौरान पीएम मोदी पर हमला कर उनकी हत्या करने की योजना थी। इस साजिश के गंभीर परिणामों के मद्देनजर जांच अधिकारियों को कार्रवाई करनी पड़ी और आगे की पूछताछ के लिए वाम चरमपंथियों के इन समर्थकों को हिरासत में लेना पड़ा।
पुणे पुलिस का दावा है कि जिन लोगों को पकड़ा गया उनके खिलाफ वामपंथी साजिशों के पुख्ता सबूत हैं और संदिग्धों से पूछताछ के बाद इस मामले में और खुलासा होने की उम्मीद है।
इस मामले में मेरा सिर्फ इतना कहना है कि इस तरह के आपराधिक मामलों में सियासत करने की बजाए पुलिस की जांच पूरी होने का इंतजार करना चाहिए। जांचकर्ताओं को अदालत में सबूत पेश करने होंगे और कौन गुनहगार है और कौन बेगुनाह, इसका फैसला आखिरकार अदालत में ही होगा। (रजत शर्मा)