छत्तीसगढ़ में करारी हार और मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी बन पाने में बीजेपी के नाकाम रहने, और हिंदी पट्टी के इन तीन महत्वपूर्ण राज्यों की सत्ता में कांग्रेस की वापसी के बाद अगले साल होने वाले आम चुनावों की रूपरेखा तैयार हो गई है। ये नतीजे 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर गहरा असर डालेंगे। सबसे पहले तो ये नतीजे कांग्रेस में नई जान फूंक देंगे और पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ेगा, लेकिन कांग्रेस के नेताओं में आपसी तकरार और आपसी मारामारी में भी इजाफा होगा।
हालांकि राहुल गांधी की लीडरशिप के बारे में अब ये नहीं कहा जा सकेगा कि वह चुनाव नहीं जिता सकते। उन्होंने तीन महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव जीतकर दिखा दिया है। अब राजनीति के जानकारों को लग रहा होगा कि राहुल गांधी को अन्य पार्टियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर का महागठबंधन बनाने में आसानी होगी, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। दरअसल, लोकसभा चुनाव जीतने के लिए अगर कोई एलायन्स सबसे ज्यादा जरूरी है तो वह उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीएसपी ने अपने दम पर काफी सीटें जीतीं हैं, ऐसे में उनकी ताकत बढ़ेगी और उनके साथ डील करना ज्यादा मुश्किल हो जाएगा।
वहीं, मध्य प्रदेश के चुनावी नतीजों का विश्लेषण किया जाए तो यहां कांग्रेस को 114 और बीजेपी को 109 सीटें मिलना दिखाता है कि न तो यहां बीजेपी बुरी तरह हारी है और न ही कांग्रेस ने जबर्दस्त जीत दर्ज की है। पिछले चुनावों में बीजेपी ने 165 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई थी, लेकिन इस बार सीटों का आंकड़ा घटकर 109 पर आ गया है। वहीं, मत प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो बीजेपी को 41 प्रतिशत और कांग्रेस को 40.90 प्रतिशत वोट मिले, और दोनों के बीच सिर्फ 0.1 प्रतिशत का अंतर रहा। दूसरी सबसे बड़ी पार्टी को ज्यादा वोट मिले, और इस तरह यह कहना गलत होगा कि बीजेपी मध्य प्रदेश में चुनाव हार गई है। इन नतीजों को लेकर दोनों पार्टियों में संतोष है। कांग्रेस सूबे की सत्ता में 15 साल बाद वापसी कर रही है, वहीं बीजेपी को लगता है कि यदि लोकसभा चुनावों में थोड़ी मेहनत की जाए तो लोकसभा में फिर से परचम लहराया जा सकता है।
राजस्थान चुनावों के नतीजों पर नजर डाली जाए तो एक बेहद ही महत्वपूर्ण तथ्य सामने आता है। यहां निश्चित तौर पर कांग्रेस की जीत हुई है, और वह बहुमत से सिर्फ एक सीट पीछे है, लेकिन उसकी जीत में बड़ा योगदान जाट नेता हनुमान बेनीवाल का भी है। बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने सिर्फ 3 सीटें जीती हैं, लेकिन उनकी वजह से कम से कम एक दर्जन सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों की हार हुई है। बेनीवाल ने 2008 में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार, और 2013 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीता था। उन्हें कुछ महीने पहले बीजेपी से निकाल दिया गया था। इसके बाद उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई, आनंदपाल सिंह के समर्थकों को साथ लिया और 65 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए। इनमें से बेनीवाल समेत कुल 3 उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे। इसलिए यदि यह कहा जाए कि राजस्थान में बीजेपी कांग्रेस से नहीं, बल्कि बेनीवाल से हारी है तो गलत नहीं होगा।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नतीजे छत्तीसगढ़ से आए हैं। भाजपा नेतृत्व को ऐसी करारी हार का अंदेशा कम ही था, वहीं शुरूआत में कांग्रेस के नेता अपनी जीत को लेकर आशंकित थे। अजीत जोगी और मायावती के गठबंधन ने बीजेपी को काफी नुकसान पहुंचाया। जब इस गठबंधन की घोषणा हुई थी तो बीजेपी के नेताओं को लगा कि अजीत जोगी कांग्रेस के वोट बैंक को नुकसान पहुंचाएंगे। लेकिन छत्तीसगढ़ के लोग जोगी को किसी कीमत पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं देखना चाहते। लोगों को लगा कि चुनाव के बाद बहुमत न आने पर बीजेपी कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए कहीं जोगी को समर्थन न दे दे, छत्तीसगढ़ के लोगों ने कांग्रेस को सपोर्ट कर दिया। इस तरह जोगी को खुद से दूर रखने का फायदा कांग्रेस को हुआ।
जहां तक तेलंगाना का सवाल है, तो लोगों को तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता के. चंद्रशेखर राव की सियासी समझ का लोहा मानना पड़ेगा। उन्होंने वक्त से 8 महीने पहले ही विधानसभा को भंग करके एक बड़ा रिस्क लिया, और इसका उन्हें जबरदस्त फायदा मिला। उन्होंने एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी का समर्थन लिया और उन्हें इसका लाभ भी हुआ। अब देखना होगा कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी केंद्र की राजनीति में क्या भूमिका निभाती है। (रजत शर्मा)
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