सेंटर फॉर जॉइंट वॉरफेयर स्टडीज (CENJOWS) और इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (IDS) की तरफ से नई दिल्ली में बुधवार को आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि पूर्वोत्तर में बांग्लादेशी प्रवासियों के बड़ी संख्या में भारत में दाखिल होने के पीछे पाकिस्तान और चीन का हाथ था। जनरल रावत ने साथ ही कहा कि इन दोनों पड़ोसी देशों का उद्देश्य इस इलाके में जनसांख्यिकीय बदलाव लाना था।
गुरुवार को जब अखबारों में जनरल रावत की वह टिप्पणी छपी, जिसमें उन्होंने जनसांख्यिकीय बदलाव के परिणाम को इंगित करने के लिए जनसंघ के चुनावी सफर की तुलना AIUDF के चुनावी सफर के साथ की थी, तो अच्छा-खासा विवाद पैदा हो गया। AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने तुरंत इसपर आपत्ति जताते हुए कहा कि सेना प्रमुख का काम राजनीतिक दलों पर टिप्पणी करने का नहीं है। वहीं, ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के चीफ बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि थल सेनाध्यक्ष ने अपनी भूमिका से परे जाकर राजनीतिक दलों पर टिप्पणी की है।
मैंने जनरल विपिन रावत का पूरा भाषण ध्यान से सुना और मुझे उसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा। जनरल रावत यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि पड़ोसी मुल्कों, विशेषकर चीन और पाकिस्तान से किस-किस तरह के खतरे हैं जो कि हमारे अंदरूनी मामलों में दखलअंदाजी कर रहे हैं। इस बात को समझाने के लिए आर्मी चीफ ने डेमोग्राफिक फैक्ट्स बताए और वहां के राजनैतिक हालात पर दो-चार लाइनें बोलीं। और इसमें भी उन्होंने कोई ऐसी बात नहीं कही, जो सीक्रेट हो या किसी को पता न हो।
आखिर में जनरल रावत ने यह भी कहा कि हमें सबको साथ लेकर चलना है और धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र के नाम पर आर्मी किसी के साथ कोई भेदभाव न करे। इसमें कौन सी राजनीतिक बात हुई। आज के जमाने में सोशल मीडिया के जरिए, इंटरनेट के जरिए, सब कुछ पूरी दुनिया के सामने हैं। फिर थल सेनाध्यक्ष ने दो फैक्ट्स का जिक्र अगर कर दिया तो इसमें कौन-सी बुरी बात है। (रजत शर्मा)