दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में गुरुवार तड़के आतंकवादियों ने एक बीजेपी सरपंच सज्जाद अहमद खांडे की हत्या कर दी। काजीगुंड ब्लॉक में उनका घर राष्ट्रीय राइफल्स के कैंप के करीब ही था। आतंकियों ने उन्हें बाहर बुलाया और गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। घाटी में बीजेपी के सरपंचों के खिलाफ 48 घंटों के भीतर यह दूसरी आतंकी वारदात थी। इस दौरान एक अन्य बीजेपी सरपंच आदिल अहमद को गोली मारी गई जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए। जम्मू और कश्मीर पुलिस ने बीजेपी के स्थानीय नेताओं को जैश और लश्कर के आतंकवादियों से बचाने के लिए पहलगाम और काजीगुंड के सुरक्षित मकानों में ट्रांसफर करना शुरू कर दिया है।
साफ है कि पिछले साल 5 अगस्त को हुए अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद केंद्र के एक साल के शासन दौरान स्थानीय कश्मीरियों में तेजी से घटते समर्थन के कारण घाटी के आतंकवादी अब हताश हो गए हैं। सीमा पार बैठे आतंकियों और उनके मास्टरमाइंड्स ने पिछले साल हुई केंद्र की इस कार्रवाई के खिलाफ भारी जनाक्रोश की उम्मीद की थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके ठीक उलट केंद्र ने यहां कई विकास योजनाएं शुरू की हैं और जनता द्वारा चुने गए स्थानीय सरपंचों को ये योजनाएं उनके गांवों में लागू करने की शक्तियां दी हैं। इन योजनाओं के परिणामस्वरूप आम कश्मीरियों का जीवन बेहतर होने लगा है। कश्मीरी नौजवानों ने टेरर ग्रुप्स को जॉइन करना बंद कर दिया है और इस ट्रेंड ने पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं को बेचैन कर दिया है।
गुरुवार को अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में मैंने दिखाया कि कैसे स्थानीय कश्मीरी विकास के समर्थन में बोल रहे थे। मैंने अपने 2 संवाददाताओं को दक्षिणी और उत्तरी कश्मीर के सुदूर गांवों में लोगों का मूड भांपने के लिए भेजा था। अधिकांश लोगों ने इंडिया टीवी के संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि विकास का फल इतनी आसानी से उनके गांवों तक पहुंच जाएगा। मुझे याद है कि पिछले साल जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था तब भी हमने अपने संवाददाताओं को भेजा था। उस समय आम कश्मीरियों की बातों से साफतौर पर संदेह झलक रहा था। कश्मीरियों ने उस समय कहा था, ‘हमने कई पार्टियों को आते-जाते देखा है, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ’।
यह ट्रेंड अब बदल गया है। कश्मीरी अब आम लोगों से जुड़े विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य मुद्दों पर बात कर रहे हैं। पिछले एक साल में 20,000 से भी ज्यादा छोटी-बड़ी विकास परियोजनाएं पूरी हुईं, नियंत्रण रेखा के पास स्थित गांवों में बिजली पहुंचाई गई, 1.3 करोड़ कश्मीरियों को आयुष्मान योजना का फायदा मिला है, स्कूली बच्चों की छात्रवृत्ति में 262 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, और लगभग 4 लाख डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी किए गए थे। राज्य प्रशासन ने अपनी उपलब्धियों की लंबी-चौड़ी लिस्ट तैयार की है, लेकिन हमने एक आम कश्मीरी की आवाज सुनने का फैसला किया।
घाटी में पिछले साल पंचायत चुनाव कराए गए थे और पंच एवं सरपंचों से यह सुनकर अच्छा लगा कि किस तरह विकास का फल अब उनके गांवों तक पहुंच गया है। केवल एक साल पहले यही लोग कैमरे पर बोलने से डरते थे, लेकिन इस बार वे खुलकर बोले। इंडिया टीवी ने जिन कश्मीरियों से बात की उनमें से अधिकांश ने कहा कि विकास के फायदे अब आम आदमी तक पहुंच रहे हैं। अनंतनाग, पुलवामा और शोपियां जैसी जगहों पर, जो आतंकवाद के गढ़ के रूप में कुख्यात हैं, आम लोग बाहर आए और अपनी बात कही। एक अधिकारी ने कहा कि आतंकी संगठनों को जॉइन करने वाले युवाओं की संख्या में लगभग 40 पर्सेंट की गिरावट आई है। आम कश्मीरी नौजवानों ने 'गन कल्चर' को छोड़ दिया है और अब अपने करियर पर फोकस कर रहे हैं। युवा कश्मीरी लड़कियां कंप्यूटर एजुकेशन सीख रही हैं और आईटी प्रोफेशनल बनना चाहती हैं।
घाटी में सुरक्षा बलों समेत सभी सरकारी एजेंसियां पूरे कोऑर्डिनेशन में काम कर रही हैं और ग्राउंड पर इसके नतीजे भी दिख रहे हैं। सरकारी अधिकारी, जो पहले शायद ही कभी सुदूर ग्रामीण इलाकों का दौरा करते थे, अब स्थानीय पंचायतों की मदद के लिए ज्यादा समय देने लगे हैं। लगभग हर गांव में स्थानीय लोगों की शिकायतों पर काम करने के लिए ग्राम पंचायत अब नोडल पॉइंट बन गई है।
एक साल पहले यहां के लोगों में सुरक्षा की भावना का पूर्ण अभाव था। सेना, जम्मू एवं कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ करीबी समन्वय में काम कर रहे हैं। उन्होंने आम लोगों से वादा किया है कि यदि आतंकवादी उनके घरों में घुसते हैं, तो सुरक्षा बल पहले गांववालों की रक्षा करने की कोशिश करेंगे, और फिर आतंकवादियों को निशाना बनाएंगे। कुलगाम के लकड़ीपोरा गांव में 20 जून को 2 आतंकवादियों ने एक घर में घुसकर हमला किया था। स्थानीय ग्रामीणों को डर था कि सुरक्षा बल पूरे घर को उड़ा देंगे जिसमें घरवालों की जान भी चली जाएगी, लेकिन जवानों ने बेहद शानदार काम किया। उन्होंने पहले परिवार के सदस्यों को बाहर आने के लिए कहा, उन्हें सुरक्षा दी और फिर दोनों आतंकवादियों को खत्म कर दिया। घर को कोई नुकसान नहीं हुआ। परिवार के सदस्य अब सुरक्षा बलों की तारीफ कर रहे हैं।
कश्मीर घाटी के अंदरूनी इलाकों में दूर-दूर के गांवों का दौरा करना और फिर स्थानीय लोगों से बात करना हमारे पत्रकारों मनीष प्रसाद और अमित पालित के लिए आसान काम नहीं था। उन्होंने जोखिम उठाया, गांवों में गए और आम लोगों से बात की। पिछले साल 5 अगस्त के बाद, जब अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया था, हमने अपने संवाददाताओं को गांवों में भेजा था। उस समय लोगों के मन में डर था, और उनमें से ज्यादातर ने तब कैमरे पर कहा था कि वे इस बात के लिए इंतजार करेंगे कि सरकार अपने वादों को पूरा करती है या नहीं। एक साल पहले आम कश्मीरियों को शायद ही कोई उम्मीद थी कि गांव की सड़कें बनेंगी, अस्पताल और स्कूल फिर से खुलेंगे और बिजली की सप्लाई दी जाएगी। अब, एक साल के बाद आम लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि विकास के काम वाकई में शुरू हो गए हैं, चीजों में सुधार हो रहा है, लेकिन बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है।
आम कश्मीरियों को भी इस बात का एहसास है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण काम की रफ्तार में कमी आई है, लेकिन विकास के पहिये निश्चित रूप से आगे की तरफ बढ़ने लगे हैं। जम्मू-श्रीनगर रेलवे लाइन पर काम शुरू हो गया है और कई अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स पर काम हो रहा है।
अब जबकि केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल के तौर पर मनोज सिन्हा जैसे अनुभवी नेता को नियुक्त किया है, तो उम्मीद की जा रही है कि राजनीतिक प्रक्रियाएं भी शुरू होंगी। मनोज सिन्हा पूर्वी यूपी के गाजीपुर के रहने वाले हैं। वह एक अनुभवी राजनेता हैं और कई चुनाव जीत चुके हैं। उन्होंने केंद्र में दूरसंचार और रेलवे मिनिस्ट्री में भी काम किया है। सिन्हा के उपराज्यपाल के रूप में कार्यभार संभालने के साथ ही हमें जम्मू-कश्मीर में जल्द चुनाव की उम्मीद करनी चाहिए। हमें आशा है कि एक निर्वाचित सरकार निकट भविष्य में कार्यभार संभालेगी और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करेगी। (रजत शर्मा)
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