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BLOG: आंखें खोलनेवाला है आरुषि केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट के जजमेंट को पढ़ने के बाद यह सोचकर दुख होता है कि CBI जानती थी कि नूपुर तलवार और राजेश तलवार बेकसूर हैं। CBI ने क्लोजर रिपोर्ट तैयार की थी लेकिन लोअर कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट में तब्दील करवा दिया।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated : October 14, 2017 19:53 IST
Rajat Sharma Blog
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आरुषि मर्डर केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को आंख खोलनेवाले फैसले के रूप में देखा जाना चाहिए। CBI और ट्रायल कोर्ट के खिलाफ बेहद चुभती हुई टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल जज ने 'कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर गौर नहीं किया... आंशिक और संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं अपनाया'... और ट्रायल कोर्ट के फैसले को 'काल्पनिक तर्क का निर्माण' करार दिया। जस्टिस बी के नारायण और ए के मिश्रा की बेंच ने अपने 273 पेज के जजमेंट में कहा कि ट्रायल कोर्ट के जज ने 'एक फिल्म डायरेक्टर की तरह बिखरे हुए तथ्यों को यहां-वहां से जुटाकर एक कड़ी के रूप में जोड़ने की कोशिश की लेकिन इस तरह का कोई आइडिया नहीं दे पाए कि वास्तव में क्या हुआ था।' हाईकोर्ट ने सीबीआई की निंदा करते हुए कहा कि उसने सूबतों के साथ छेड़छाड़ की, पढ़ाए और सिखाए गए गवाहों को पेश किया।

हाईकोर्ट के जजमेंट को पढ़ने के बाद यह सोचकर दुख होता है कि CBI जानती थी कि नूपुर तलवार और राजेश तलवार बेकसूर हैं। CBI ने क्लोजर रिपोर्ट तैयार की थी लेकिन लोअर कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट में तब्दील करवा दिया। इस चार्जशीट में नूपुर और राजेश को प्राइम सस्पैक्ट बना दिया और बेगुनाहों को उम्रकैद की सजा सुना दी। इसलिए हाईकोर्ट ने कहा कि लोअर कोर्ट के जज ने एक फिल्म डायरेक्टर की तरह काम किया। CBI के दो पूर्व अधिकारी जिनसे हमने बात की इनमें से एक ने इसकी जांच की थी और दूसरे उस वक्त CBI डायरेक्टर थे। दोनों का कहना है कि CBI के पास इस बात के कोई सबूत नहीं थे कि आरूषि की हत्या उसके माता पिता ने की तो भी नुपुर और राजेश को चार साल जेल में काटने पड़े। 9 साल इस आरोप के साथ जीना पड़ा कि उन्होंने अपनी बेटी की हत्या की और अब हमारे सिस्टम की कमजोरी देखिए कि बरी होने के बाद भी बेगुनाह साबित होने के बाद भी दोनों को तीन दिन और जेल में काटने पड़ेंगे। ये दोनों बातें ऐसी हैं जिनमें सुधार की जरूरत है। इन बातों पर विचार की जरुरत है ताकि किसी और के साथ ऐसा न हो। (रजत शर्मा)

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