संविधान के अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू कश्मीर में आयोजित पहले बड़े चुनावों में घाटी की जनता ने एक बेहद ही जरूरी इम्तिहान पास करके दुनिया को यह जता दिया कि घाटी में लोकतंत्र था, है और आगे भी रहेगा। बीजेपी जहां जम्मू क्षेत्र में जिला विकास परिषद (DDC) चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, वहीं घाटी के इतिहास में बीजेपी ने पहली बार अपना खाता खोला।
पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन, जिसमें फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सहित 7 पार्टियां शामिल हैं, ने घाटी में अच्छी कामयाबी हासिल की है। इस गठबंधन को गुपकार अलायंस के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, इन चुनावों मं सबसे रोचक बात ये रही कि बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों की भी जीत हुई ।
अब जबकि जनता का फैसला आ चुका है, कोई भी यह आरोप नहीं लगा सकता है कि ये चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे। घाटी में लोगों ने बड़ी संख्या में बगैर किसी डर के अपने वोट डाले, पार्टियों ने पूरी तरह खुलकर चुनाव लड़ा, और नतीजे सामने आने के बाद एक भी बड़े नेता को चुनावों के स्वतंत्र और निष्पक्ष होने को लेकर कोई शिकायत नहीं थी।
गुपकार गठबंधन को उम्मीद थी कि डीडीसी चुनावों में उसकी बड़ी जीत होगी, लेकिन वह बहुमत हासिल करने में भी नाकाम रहा। बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा और कश्मीर घाटी में 3 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि जम्मू के इलाके में कुल 72 सीटों पर उसके उम्मीदवार विजयी हुए। घाटी के कई निर्वाचन क्षेत्रों में तो बीजेपी बहुत ही कम मार्जिन से हार हुई। सबसे ज्यादा हैरानी की बात बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत रही। वे आम कश्मीरियों के बीच गए, उनसे सड़क, बिजली, पानी, स्कूल और अस्पताल का वादा किया, और कश्मीर की आवाम ने उनके ऊपर भरोसा किया।
कुल मिलाकर, इन चुनावों में लोकतंत्र की जीत हुई है। आतंकवादियों के खतरे के चलते कुल 8 चरणों में वोट डाले गए। कुलगाम जैसी जगहों पर भी 60 से 70 पर्सेंट वोटिंग हुई, जो कि हाल के दिनों में कभी नहीं सुना गया। अलगाववादियों और आतंकवादियों की धमकियों के बावजूद लोग अपने घरों से बाहर निकले और अपने मताधिकार का प्रयोग किया। घाटी में लोग अपने-अपने उम्मीदवारों के जीत के बाद जश्न मनाते नजर आए।
चुनावों के बाद सड़कों पर जो जश्न मना, उससे लगता है कि कश्मीर की आवाम का लोकतांत्रिक और राजनीतिक प्रक्रिया में भरोसा बढ़ा है। कश्मीर के आम मतदाता ने उन लोगों को सबक सिखा दिया जो सीमा पार बैठे अपने आकाओं के बताए गए एजेंडे पर काम कर रहे थे। आम वोटर, और खासकर महिलाएं जब स बार वोट देने पहुंचीं, तो उन्होने अपनी बुनियादी जरूरतों की बात की, जैसे बिजली, पानी, स्कूल और अस्पताल। लोगों के बीच से ही एक नई पार्टी, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, भी उभर कर सामने आई। इस पार्टी का गठन अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद हुआ था।
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के वरिष्ठ नेताओं ने भी माना कि इस बार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए हैं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक बहुत बड़ी उपलब्थि है। उनकी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर जल्द से जल्द लोकतंत्र लाने का वादा किया था। आम लोग अलगाववादियों द्वारा लगभग हर दिन बुलाए जाने वाले बंद से तंग आ चुके थे। वे सुरक्षाबलों पर नौजवानों द्वारा बगैर किसी उकसावे के पत्थर फेंके जाने की घटनाओं से भी दुखी थे।
मैं यहां बताना चाहता हूं कि धारा 370 के हटने और जम्मू एवं कश्मीर को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित करने के बाद, 7 अगस्त 2019 से अक्टूबर 2020 के बीच ग्रामीण इलाकों में औसतन हर रोज 30 किलोमीटर सड़क बन रही है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 212 सड़कें और 38 छोटे पुल बनाए गए हैं। जम्मू-कश्मीर के सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासेज बनकर तैयार हैं। इसके अलावा कम से कम 40 छोटे-बड़े पावर प्रॉजेक्ट्स शुरू किए गए हैं ताकि बिजली की कमी को पूरा किया जा सके।
बेशक, अभी भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। अभी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण करना होगा और कई घरों तक अभी भी बिजली नहीं पहुंच पाई है। सिनेमाघरों की हालत खस्ता है। आम लोग अभी भी अच्छे 4जी नेटवर्क का इंतजार कर रहे हैं।
यह केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन की जिम्मेदारी है कि विकास और कल्याणकारी योजनाओं को जल्द से जल्द शुरू किया जाए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जिला विकास परिषद में कौन-सी राजनीतिक पार्टी सत्ता में है। एनसी, पीडीपी, बीजेपी या कांग्रेस, सभी पार्टियों के नेताओं को घाटी में शांति और तरक्की लाने के लिए हाथ मिलाना होगा। यही लोकतंत्र और कश्मीर की आवाम, दोनों के लिए सबसे बड़ी जीत होगी। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 22 दिसंबर, 2020 का पूरा एपिसोड