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Rajat Sharma's Blog: कानून व्यवस्था में कमियों का यूं नाजायज फायदा उठाते हैं बलात्कारी

इंसाफ मिलने में देरी के पीछे पहला बड़ा कारण पुलिस का रवैया है। यह देखा गया है कि यौन उत्पीड़न और बलात्कार की घटनाओं को दर्ज करने के लिए पुलिस आम तौर पर टालमटोल करती है। 

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : December 19, 2019 16:59 IST
Rajat Sharma's Blog: A look at how rapists take undue advantage from loopholes in legal system
Image Source : INDIA TV Rajat Sharma's Blog: A look at how rapists take undue advantage from loopholes in legal system

सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप एवं हत्याकांड के 4 दोषियों में से एक, अक्षय ठाकुर की पुनर्विचार याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया। बुधवार को ही दिल्ली की एक अदालत ने तिहाड़ जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे सभी चारों दोषियों को उनके शेष कानूनी उपाचारों से अवगत कराएं और एक सप्ताह के भीतर उनकी प्रतिक्रियाएं पता करें। कोर्ट इस मामले की सुनवाई 7 जनवरी को करेगा।

दिल्ली प्रिजन रूल्स 2018 के नियम 837 के तहत, जेल अधीक्षक को मृत्युदंड के दोषियों को सूचित करना होगा कि यदि वे दया याचिका दायर करना चाहते हैं, तो इसे सूचना मिलने के 7 दिन के अंदर ही लिखित में दायर कर दिया जाए। डेथ वॉरंट जारी करने के लिए सभी दोषियों की समीक्षा याचिकाओं का खारिज होना जरूरी है। मौत की सजा पाए चारों दोषियों की स्थितियां अलग-अलग हैं। दोषियों में से एक मुकेश ने कहा है कि वह दया याचिका दायर नहीं करेगा जबकि एक अन्य दोषी विनय ने अपनी दया याचिका वापस ले ली। चौथे दोषी पवन ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि वह 2012 में अपराध के समय नाबालिग था।

निर्भया के साथ हुई भयावह घटना के 7 साल बाद उसकी मां ने बुधवार को भीगी हुई आंखों के साथ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश से पूछा, ‘उनके अधिकारों पर इतना विचार किया जा रहा है, हमारे अधिकारों का क्या?’ जज ने उससे कहा, ‘मैं जानता हूं कि किसी की जान गई है लेकिन उनके अधिकार भी हैं। हम यहां आपको सुनने के लिए हैं लेकिन हम कानून से भी बंधे हुए हैं।’ 7 साल पहले हुई इस घटना को लेकर देशव्यापी आक्रोश था। भले ही अदालतों ने दोषियों को मौत की सजा सुनाई हो, लेकिन कानूनी व्यवस्था में खामियां भी हैं, जिसका फायदा दोषियों को हो रहा है। ये खामियां इंसाफ के मिलने में देरी का मुख्य कारण हैं।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि निर्भया की घटना के बाद अकेले दिल्ली में 14,384 बलात्कार के मामले हुए, और एक भी मामले में मौत की सजा नहीं दी गई। अदालतों ने इनमें से केवल 800 मामलों में फैसले दिए। इंसाफ मिलने में देरी के पीछे पहला बड़ा कारण पुलिस का रवैया है। यह देखा गया है कि यौन उत्पीड़न और बलात्कार की घटनाओं को दर्ज करने के लिए पुलिस आम तौर पर टालमटोल करती है। कुछ मामलों में, पीड़िता को पुलिस द्वारा परेशान किया जाता है, और उनके परिवारों को ‘सामाजिक कलंक’ का डर दिखाकर मामला दायर न करने के लिए राजी किया जाता है।

दूसरा कारण है: पुलिस द्वारा की गई जांच। ढीली तरह से की गई छानबीन की वजह से अभियोजन पक्ष का मामला कानूनी जांच के दायरे में नहीं आता। तीसरा कारण: फॉरेंसिक लैब की संख्या में कमी, जहां नमूनों के डीएनए का परीक्षण किया जा सकता है। चौथा कारण: अभियोजकों की संख्या में कमी। कुछ POCSO मामलों में शायद ही अभियोजन पक्ष का कोई वकील उपलब्ध था। पांचवां कारण: अदालतों में गवाह कई बार जिरह के दौरान पलट जाते हैं।

पुलिस का रवैया, लंबी कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक दृष्टिकोण, सब साथ मिलकर रेप पीड़िता और उनके परिवारों के दिमाग पर बहुत ज्यादा दबाव डालते हैं। कई मामलों में पुलिस रेप पीड़िता को सुरक्षा प्रदान करने में नाकाम रहती है, और पीड़िता धमकियों और डर के चलते अपना बयान बदल देती है जिसके चलते बलात्कारी आजाद हो जाते हैं। अब जब सुनवाई को 7 जनवरी तक के लिए टाल दिया गया है, तो यह बात साफ हो गई है कि निर्भया के हत्यारों को 2019 में फांसी नहीं दी जाएगी। उसके माता-पिता को न्याय पाने के लिए अगले साल तक इंतजार करना होगा। (रजत शर्मा)

देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 18 दिसंबर 2019 का पूरा एपिसोड

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