प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को देश की जनता ने जाति-धर्म और वंशवाद की सियासत से ऊपर उठकर लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए गुरुवार को जबर्दस्त जनादेश दिया है। बीजेपी लोकसभा की 303 सीटें जीतने में कामयाब रही और बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को लोकसभा की कुल 352 सीटों पर जीत हासिल हुई।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा और वह बड़ी मुश्किल से 2014 के चुनाव में हासिल 44 सीटों के आंकड़े से बढ़कर इस बार 52 सीटों तक पहुंची है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी खानदानी सीट अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। केरल में वायनाड से मिली जीत ने उनकी प्रतिष्ठा बचा ली।
उत्तर प्रदेश में गठबंधन बनाने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को भी उम्मीद को मुताबिक सफलता नहीं मिली जबकि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की अगुवाई वाले 'महागठबंधन' को बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी के गठबंधन से करारी मात खानी पड़ी।
दरअसल देश की स्वतंत्रता के बाद के इतिहास का यह ऐतिहासिक दिन था। स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़़ी मशक्कत से हासिल इस जीत के लिए बधाई के पात्र हैं, लेकिन मैं इस शानदार जीत के लिए देश की जनता को धन्यवाद देना चाहता हूं। देश के मतदाताओं ने इस जनादेश से यह दिखाया कि वे एक निर्णायक नेता की अगुवाई में मजबूत और स्थायी सरकार चुनने के लिए काफी परिपक्व हैं।
जाति और धर्म की राजनीति को खारिज करने के लिए मैं देशवासियों को सलाम करता हूं, देश की जनता ने आजादी के बाद दशकों से चली आ रही वंशवादी राजनीति को नापसंद किया है। लोगों ने समझदारी से हर मुद्दे पर देशहित को ऊपर रखकर मतदान किया।
मैं नरेंद्र मोदी को उनकी असीम ऊर्जा, उनके पूर्ण समर्पण के लिए बधाई देता हूं। अपनी ईमानदारी और स्वच्छ छवि से वे जनता का दिल जीतने में कामयाब रहे। वह मोदी ही थे जिन्होंने मतदाताओं को बताया कि वे वंशवाद, जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर राष्ट्रवाद को रखें।
असल में अब तक तो ये होता था कि सांसद अपने प्रधानमंत्री को चुनते थे लेकिन इन नतीजों का संदेश साफ है कि इस बार प्रधानमंत्री ने सांसदों को चुनवाया। मतलब नरेन्द्र मोदी के नाम पर और नरेन्द्र मोदी के काम पर ही देश भर में वोटिंग हुई। जनता ने ना पार्टी देखी और ना उम्मीदवार देखा, सिर्फ मोदी सरकार के पिछले पांच साल के कामकाज पर वोट दिया और उसका नतीजा ये है कि देश के इतिहास में पहली बार किसी गैर-कांग्रेस सरकार को जनता ने लगातार दूसरा मौका दिया है। जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेन्द्र मोदी लगातार दूसरी बार बहुमत की सरकार बनाने वाले तीसरे प्रधानमंत्री हो गए हैं। अगर संक्षेप में कहें तो यह जीत विशुद्ध रूप से नरेन्द्र मोदी की जीत है।
गुरुवार को मोदी अपने पूरे फॉर्म में थे जब उन्होंने पार्टी दफ्तर में हजारों कार्यकर्ताओं का अभिवादन स्वीकार करते हुए विनम्रता दिखाई। भारत के लोग अपने वादों को पूरा करने के लिए मोदी पर भरोसा करते हैं। मोदी ने जो कहा, वो करके दिखाया। 2014 में मेरे शो 'आप की अदालत' में मोदी ने कहा था कि अब पाकिस्तान को 'लव लेटर' लिखना बंद होना चाहिए और पाकिस्तान को उसकी भाषा में जबाव देना चाहिए। आंतकवादियों को पाकिस्तान में घुसकर मारना चाहिए। मोदी ने अपनी कही हुई बात को करके दिखाया। उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की और इसके बाद कश्मीर के पुलवामा में हुए हमले के बाद पाकिस्तान में घुसकर एयरस्ट्राइक कर दी।
पाकिस्तान के खिलाफ मोदी की इस कार्रवाई को देश की जनता ने काफी पसंद किया। ये बदलते भारत की नई तस्वीर थी। जनता ने उनके 'घर में घुस के मारेंगे' बयान का पूरे जोर-शोर से समर्थन किया। लोगों ने उन्हें लोकसभा की 300 से ज्यादा सीटें दी ताकि वे एक मजबूत सरकार का नेतृत्व कर सकें और गलत करनेवालों को कड़ा संदेश दिया सकता है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी की करारी हार काफी दुखद रही। कांग्रेस अपने पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के अति आत्मविश्वास की वजह से हार गई। उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ 'चौकीदार चोर है' जैसे गंदे शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने लगभग अपनी हर रैली में बिना सबूत के ये आधारहीन आरोप लगाया कि 'नरेन्द्र मोदी ने अनिल अंबानी की जेब में तीस हजार करोड़ डाल दिए', ये भी कहा कि उनकी सरकार आएगी तो नरेन्द्र मोदी को जेल में डाल देगी, नरेन्द्र मोदी के माता-पिता के नाम को भी घसीटा। आम मतदाताओं ने इसे पंसद नहीं किया और उल्टा उनकी पार्टी और उनके उम्मीदवारों को करारा जवाब दिया। राहुल खुद अमेठी में अपनी खानदानी सीट हार गए। अमेठी में उनके परिवार की पिछली हार 1977 में ईमरजेंसी के बाद हुई थी, जब संजय गांधी को इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा था।
कांग्रेस के कई नेताओं से मेरी बात हुई, वो भी राहुल के कैंपेन से सहमत नहीं थे। कांग्रेस के नेता ये भी मानते हैं कि राहुल गांधी के रोजगार, किसानों की कर्ज माफी और 72 हजार रुपये की एनवाईएवाई (न्याय) योजना के वादों पर जनता ने भरोसा नहीं किया। राफेल सौदे पर राहुल के आरोप और बयानबाजी मतदाताओं पर बेअसर रहे।
परिणाम: केरल में कांग्रेस ने 18 सीटी जीतीं इसके बावजूद कांग्रेस पिछले चुनाव (2014) के 44 के आंकड़े से बढ़कर 51 सीट तक ही पहुंच पाई। ये राहुल गांधी की बहुत बड़ी राजनीतिक हार है। मैं तो ये भी मानता हूं कि प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने के मामले में राहुल गांधी को फैसला पहले लेना चाहिए था। प्रियंका गांधी के प्रचार की ताकत को भी राहुल गांधी ने इस चुनाव में बर्बाद कर दिया।
उत्तर प्रदेश और बिहार के नतीजे आश्चर्यजनक हैं और जाति के प्रति बेहद जागरूक और संवेदनशील इन दोनों प्रदेशों में एक नई राजनीति का आगाज हुआ है।
मतगणना से एक दिन पहले बुधवार को मैंने अपने कैमरा पर्सनस और रिपोर्टर्स से काफी देर बात की थी, जिन्होंने यूपी और बिहार की गली-गली में घूमकर चुनाव की खबरें आप तक पहुंचाईं थी। उनमें से अधिकांश ने बताया कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ और बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने मोदी सरकार के साथ मिलकर गरीबों और कमजोर वर्गों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना सुनिश्चित किया। इन लोगों को डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर का लाभ मिला और इसलिए इन लोगों ने जाति-धर्म से अलग हटकर नरेन्द्र मोदी के लिए वोट दिया।
आपको याद होगा कि चुनाव प्रचार के दौरान समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कहा करते थे कि मोदी का भाषण शौचालय से शुरू होता है और शौचालय पर ही खत्म हो जाता है। वे स्वच्छ भारत के मुद्दे पर मोदी का मजाक उड़ाते थे। वहीं दूसरी ओर नरेंद्र मोदी अपने हर भाषण में गांव के हर घर में शौचालय बनाने की योजना का जिक्र करते थे और इसे गरीब महिलाओं के लिए इज्जत घर बताते थे। दोनों हिंदी प्रदेशों की महिलाओं पर मोदी की इन बातों का असर हुआ।
इसी तरह लाखों छोटे कारोबारियों को मुद्रा लोन योजना से लाभ हुआ, गांवों की गरीब महिलाओं की रसोई में उज्जवला योजना के जरिए एलपीजे सिलेंडर पहुंचा और गरीबों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर मिला। यह स्पष्ट है कि मोदी सबसे गरीब व्यक्ति तक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में सफल रहे। मोदी का काम जमीन पर दिखाई दिया इसीलिए लोगों ने जाति, मजहब और वंशवाद से ऊपर उठकर काम के आधार पर मोदी को वोट दिया। जनता ने दशकों पुराने तथाकथित जाति, मजहब और परिवार पर आधारित 'वोट बैंक' की राजनीति को नकार दिया। जनता अब जमीनी स्तर पर प्रदर्शन के लिए मतदान कर रही थी।
पश्चिम बंगाल में मतदाताओं ने तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटों तक सीमित करके और बीजेपी को 18 सीटें देकर, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के लिए चेतावनी का संकेत दे दिया है। यह चमत्कार कैसे हुआ? 8 साल पहले ममता बनर्जी ने काफी संघर्ष के बाद बंगाल की सत्ता वाम मोर्चा से छीनी थी। लेकिन ममता ने भी वही फॉर्मूले अपनाए और बंगाल को उसी तरह चलाना चाहा जैसे पहले की वाम मोर्चे की सरकार चलाती थी। शायद ममता ये भूल गईं थी कि वाम मोर्चा अपने इन्ही तरीकों के कारण जनता की नजरों से उतर गया था। बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने ममता की नीतियों के खिलाफ बंगाल में बहुत संघर्ष किया। तुष्टीकरण की नीतियों और दुर्गा विसर्जन पर सरकारी फरमानों का विरोध किया। बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं ने अपनी जान देकर इसकी कीमत देकर चुकाई। लेकिन बंगाल की जनता चुप-चाप सब देख रही थी। आम जनता ने नारे नहीं लगाए और वह सड़कों पर भी नहीं उतरी। बंगाल की जनता ने खामोशी से पोलिंग बूथ पर जाकर बीजेपी के पक्ष में वोटिंग की ममता को झटका दे दिया। अब अगर ममता ये आरोप लगाएं कि साजिश करके, ईवीएम में हेराफेरी की गई है तो उनकी इस बात पर बंगाल की जनता यकीन नहीं करेगी। क्योंकि बंगाल की जनता जानती है कि उन्होंने क्या किया है।
पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी कुल 13 सीटों में से 8 सीटें जीतने में कामयाब रही है। पार्टी और अधिक सीटें जीत सकती थी, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आरोप लगाया है कि उनके अपने मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल बाजवा को गले लगाया। इससे पंजाब के आम मतदाताओं में गलत संदेश गया और उन्होंने कांग्रेस को सबक सिखाने का फैसला किया।
कुल मिलाकर कहें तो देश के मतदाताओं ने उन सभी नेताओं को इस बार रास्ता दिखा दिया जो जाति, गोत्र और धर्म के नाम पर वोट मांग रहे थे। यह स्पष्ट है कि अब मतदाता केवल प्रदर्शन और सकारात्मक सोच के आधार पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे। मोदी ने शौचालय बनवाया, और महिलाओं ने उन्हें वोट दिया। मोदी ने घर बनवाए, और गरीबों ने उन्हें वोट दिया। मोदी ने गरीब लोगों को 5 लाख रुपये तक की महंगी चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई तो दलितों और गरीबों ने उन्हें वोट दिया। अगर किसी राजनीतिक दल को गरीबों को एलपीजी सिलेंडर और बिजली मुहैया कराने के लिए वोट मिले, तो इसमें कुछ गलत नहीं है। मोदी ने मध्यम वर्ग को यह बताया कि वे टैक्स से मिले उनके धन का उपयोग गरीबों की मदद करने के लिए कर रहे हैं, और मध्यम वर्ग ने मोदी पर भरोसा किया।
अगर विरोधी दल मोदी की राजनीति को समझ पाते तो थोड़ा बहुत उनसे लड़ सकते थे। विरोधी दलों ने 'वोट बैंक', 'वोट गणित' और 'परिवार के प्रति वफादारी' के पुराने और परंपरागत तरीकों से मोदी को हराने की कोशिश की, जो उनकी बड़ी गलती थी। विपक्ष मोदी को समझ पाने में असफल रहा लेकिन देश की जनता ने मोदी को समझ लिया और भरपूर समर्थन देकर उन्हें सलाम किया। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 23 मई 2019 का पूरा एपिसोड