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शर्मनाक: रैगिंग की वजह से उत्तर प्रदेश में मेडिकल कॉलेज के फ्रेशर्स को अपना सिर मुंडवाना पड़ा

Rajat Sharma Blog: एक अध्ययन के मुताबिक, पिछले 7 सालों के दौरान भारत में रैगिंग की 4700 शिकायतें मिली हैं, 54 छात्रों ने रैगिंग की वजह से इन 7 सालों के दौरान आत्महत्या कर ली है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published : August 21, 2019 15:22 IST
Rajat Sharma Blog
Image Source : INDIA TV Rajat Sharma Blog

इंडिया टीवी ने मंगलवार रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में बने उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के परिसर में बड़े पैमाने पर हो रही रैगिंग पर एक विशेष जांच रिपोर्ट प्रसारित की।

वीडियो में लगभग 150 प्रथम वर्ष के मेडिकल छात्रों को दिखाया गया, जो एक ही लाइन में चल रहे थे, उनके सिर झुके थे और मुंडे हुए थे। उन सभी ने एक ही जैसे सफेद कपड़े पहने हुए थे। फ्रेशर छात्र एक तरह के ''दिशा निर्देशों'' का अनुसरण कर रहे थे जिन्हें उनके वरिष्ठ सहयोगियों ने निर्धारित किया हुआ था, ''दिशा निर्देश'' थे: अपने वरिष्ठ सहयोगियों के सामने आंख नहीं उठाना और जब भी कोई वरिष्ठ सहयोगी पहुंचे तो उसके सामने झुक जाना।

यह बॉलीवुड की प्रतिष्ठित फिल्म '3 इडियट्स' का दृश्य नहीं था। वीडियो में उन कठोर वास्तविकताओं को दिखाया गया है जिनसे फ्रेशर्स को विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के बाद जूझना पड़ता है। माता-पिता अपने बच्चों को डाक्टर बनाने की चाहत का जो सपना देखते हैं, ये फ्रेशर्स उसी सपने को पूरा करने के लिए आए हैं।

यह वीडियो इन मेडिकल छात्रों के आत्म सम्मान की सहज भावना पर प्रहार करता है। यह उस सभ्य समाज को शर्मसार करता है, जिसमें हम रहते हैं। यह इस बात को प्रमाणित करता है कि रैगिंग पर रोक लगाने वाले कानून को लागू करने के बावजूद हमारे शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की शर्मनाक प्रथा अभी भी चल रही है।

आम तौर पर कॉलेज के प्रथम वर्ष में फ्रेशर छात्रों को मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है। उनके ऊपर पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करने और नए माहौल में ढलने का दबाव होता है। ऐसे में उनकी मदद करने के बजाय इस आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के वरिष्ठ छात्रों ने उन्हें (1) सिर मुंडवाने (2) साधारण सफेद वर्दी पहनने (3) वरिष्ठ छात्रों के आगे आंख उठाने से रोकने (4) वरिष्ठ छात्र को देखते ही झुकने, और (5) कक्षा में लाइन लगाकर पहुंचने का दबाव बनाया।  

यह एक मध्यकालीन प्रथा से कम नहीं है। शुरुआत में, मैने जब इस वीडियो को देखा, तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब मैने इसे क्रॉसचेक करवाया और पाया कि वीडियो असली था, तो मैं हिल गया। क्या हम 21वीं सदी में जी रहे हैं या नहीं?

हमारे संवाददाता ने इस वीडियो को जब आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर को दिखाया तो उनका जवाब हैरान करने वाला था। उन्होंने कहा, फ्रेशर छात्र सिर्फ दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं ताकि वे अनुशासित रहें।  

अपने तर्क को दबाने के लिए वाइस चांसलर ने कहा कि पहले तो मेडिकल छात्रों को गंभीर रैगिंग से गुजरना पड़ता था और फ्रेशर छात्रों को कुछ निश्चित ‘’दिशा-निर्देशों’’ का अनुसरण करना होता था। मुंह से तीर छूटने के बाद, वाइस चांसलर को अपनी मूर्खता का एहसास हुआ और आश्वासन दिया कि कार्रवाई की जाएगी।

एक अध्ययन के मुताबिक, पिछले 7 सालों के दौरान भारत में रैगिंग की 4700 शिकायतें मिली हैं, 54 छात्रों ने रैगिंग की वजह से इन 7 सालों के दौरान आत्महत्या कर ली है।

अकेले उत्तर प्रदेश में ही रैगिंग के 1,078 मामले सामने आए हैं, जिसके बाद मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तमिलनाडु का नंबर है। एंटी-रैगिंग कानून लागू होने के बाद, शिक्षण संस्थानों ने रैगिंग को रोकने के लिए सख्त नियम लागू किए। लेकिन ऐसा लगता है कि दिशा निर्देशों को अनदेखा किया जाता रहा है। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में एक मेडिकल छात्र अमन कचरू का मामला था, जिसने 2009 में रैगिंग के बाद आत्महत्या कर ली थी।

उत्तर प्रदेश सरकार को इन गुनहगारों के खिलाफ कड़े कदम उठाकर एक उदाहरण पेश करना चाहिए ताकि शिक्षण संस्थानों में बाकी लोक इस तरह का अनुचित बर्ताव करने से परहेज करें।  

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