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Rajat Sharma Blog: माओवादियों और उनके शुभचिंतक शहरी नक्सलियों से अब कोई हमदर्दी नहीं

चिंता की बात यह है कि माओवादियों की इस हरकत का शिकार सिर्फ सुरक्षाबलों के जवान ही नहीं, बल्कि रास्तों से गुजरने वाले आम लोग भी होते हैं

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : November 10, 2018 14:59 IST
Rajat Sharma's Blog
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छत्तीसगढ़ पुलिस ने शुक्रवार को बताया कि माओवादियों ने कच्चे रास्तों में कई गड्ढे खोदकर उनमें लोहे के नुकीले तीर फिट कर दिए हैं। इन स्पाइकहोल्स के सहारे वे पोलिंग स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों को मतदान केंद्रों तक पहुंचने से रोकना चाहते हैं। सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन, जो सूबे में माओवादियों के खिलाफ अभियान चला रही है, ने ऐसे तमाम खतरनाक स्पाइकहोल्स की खोज की है।

ऐसे में यह सवाल मन में उठ सकता है कि आज के जमाने में जब गुरिल्ला वॉर में माइन्स का इस्तेमाल किया जाता है तो नक्सली गड्ढ़े खोदकर ये तीर क्यों लगा रहे हैं। इसका जवाब आसान है, असल में IED और लैंड माइन्स को डिटेक्ट करने के तरीके तो सुरक्षाबलों को पता हैं, लेकिन स्पाइकहोल्स को डिटेक्ट करना मुश्किल काम है। यही वजह है कि माओवादी अब आदिवासी शिकारियों के पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं और स्पाइकहोल्स की मदद ले रहे हैं।

चिंता की बात यह है कि माओवादियों की इस हरकत का शिकार सिर्फ सुरक्षाबलों के जवान ही नहीं, बल्कि रास्तों से गुजरने वाले आम लोग भी होते हैं। चूंकि माओवादियों के मन में किसी के लिए कोई दर्द नहीं है, वे किसी की भी, यहां तक कि फोटोजर्नलिस्ट्स तक की जान लेने से नहीं चूक रहे हैं। ऐसे में उनके साथ भी हमदर्दी रखने का कोई मतलब नहीं है। सुरक्षाबलों को पूरी बेरहमी और ताकत के साथ उन्हें खत्म करना चाहिए।

इसके अलावा शहरों में, विश्वविद्यालयों में और बड़े-बड़े संस्थानों में लैपटॉप लेकर बैठे देश के खिलाफ षड्यंत्र कर रहे शहरी नक्सलियों के साथ भी कोई रियायत नहीं होनी चाहिए। उन्हें भी उनकी सही जगह दिखानी चाहिए।

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