नई दिल्ली. भारत और चीन के बीच जारी तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ बीते तीन महीनों से जारी है, भारत और चीन के बीच कम से कम दर्जन बार से ज्यादा बातचीत हो चुकी है लेकिन चीन ने पैंगॉन्ग झील और ग्रीन टॉप इलाके से पैर खींचने से इंकार कर दिया है। भारत की तमाम कोशिशों के बावजूद चीन के अडियल रवैये से स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है।
इस बात की तस्दीक सीडीएस जनरल बिपिन रावत और तीनों सेना प्रमुखों ने संसदीय समिति के सामने भी की है। सेना का मानना है कि चीन के साथ तनातनी लंबी चलेगी, लिहाजा सर्दियों में भी सैनिक तैनाती की तैयारी पूरी कर ली गई है। जबतक चीन भारतीय इलाकों को खाली करके लद्दाख पर कब्जे वाले क्षेत्र से वापस नहीं जाता तबतक भारतीय फौज डटी रहेगी।
इस हालात में चीन लद्दाख में कोई हरकत करे तो उसका जवाब देने के लिए राफेल के इस्तेमाल की तैयारी भी जारी है। भारतीय वायुसेना ने अपने ब्रह्मास्त्र राफेल के साथ रात के अंधेरे में हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है ताकी चीनी रडार से बचते हुए हम अपने राफेल से जरूरत पड़ने पर चीन के दांत खट्टे कर सकें।
राफेल फाइटर जेट LAC से करीब 1800 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में हुंकार भर रहे हैं। रात के अंधेरे में राफेल की सफल लैंडिंग की ट्रेनिंग चल रही है। राफेल को LAC से दूर रखा जा रहा है क्योंकि राफेल को चीन की नजरों से बचाकर रखना है। इसकी वजह ये है कि अक्साई चिन और LAC की पहाड़ियों पर चीन की पिपुल्स लिब्रेशन आर्मी यानी पीएलए ने इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस रडार सिस्टम लगाए हुए हैं।
चीन के ये रडार सिस्टम अमेरिकी वायुसेना को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, ऐसे में युद्ध की स्थिति में भारत के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। चीन इन रडार सिस्टम का इस्तेमाल राफेल के सिग्नल फ्रीक्वेंसी को लॉक करने के लिए कर सकता है, वो ये जान सकता हैं कि ये फाइटर जेट कितनी ऊंचाई पर उड़ रहे हैं, कितनी रफ्तार से उड़ रहे हैं। LAC से कितनी दूरी पर हैं।
हालांकि मिलिट्री एविएशन के एक्सपर्ट का मानना है कि राफेल का इस्तेमाल बाद में लद्दाख में ट्रेनिंग के लिए भी किया जा सकता है क्योंकि राफेल में युद्ध की स्थिति में सिग्नल फ्रीक्वेंसी बदलने की क्षमता है, जो दुश्मन के एयर डिफेंस को चकमा देने में पूरी तरह सक्षम है। लद्दाख सेक्टर में जुलाई के पहले सप्ताह के मुकाबले चीनी एयरफोर्स की गतिविधियां कम हुई हैं, लेकिन भारतीय वायुसेना कोई चांस नहीं ले रही है और एयर मूवमेंट को बेहद सतर्कता के साथ ट्रैक किया जा रहा है।
आइए अब आपको बताते हैं कि अगर भारत से चीन का युद्ध हुआ तो क्या होगा। चीन के पास राफेल के मुकाबले जे-20 फाइटर जेट हैं, जबकि भारत के पास राफेल। राफेल का विंग स्पैन जे-20 से कम है, इसलिए पहाड़ी इलाकों के लिए आदर्श फाइटर जेट है। राफेल 100 मीटर के दायरे में करीब 40 टारगेट की पहचान कर सकता है जबकि जे-20 सिर्फ 22-25 टारगेट की पहचान कर सकता है। राफेल हर मौसम में उड़ान भरने में सक्षम है। राफेल की कॉम्बेट रेडियस 3700 किलोमीटर है, जबकि जे-20 की 3400 किलोमीटर है। राफेल की स्पीड 2200 किलोमीटर से ज्यादा है, जबकि जे-20 की 2100 किलोमीटर है।