नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अपनी एक महत्वपूर्ण व्यवस्था में इंटरनेट के इस्तेमाल को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार करार दिया और जम्मू कश्मीर प्रशासन से कहा कि केन्द्रशासित प्रदेश में सभी प्रतिबंधों की एक सप्ताह के भीतर समीक्षा की जाए। पिछले पांच महीने से इंटरनेट पर रोक का सामना कर रहे कश्मीर घाटी के लोगों ने न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया और इसे ‘‘सुखद समाचार’’ करार दिया। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने इस संबंध में दायर विभिन्न याचिकाओं पर यह व्यवस्था दी।
पीठ ने कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मत-भिन्नता को दबाने के लिए निषेधाज्ञा लगाने संबंधी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 का इस्तेमाल अनिश्चितकाल के लिए नहीं किया जा सकता। इसने यह भी कहा कि प्रेस की आजादी बहुत ही कीमती और पवित्र अधिकार है। पीठ ने जम्मू कश्मीर प्रशासन को निर्देश दिया कि आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने वाले अस्पतालों और शैक्षणिक स्थानों जैसी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाएं बहाल की जाएं। हालांकि, अन्य क्षेत्रों और घाटी के लोगों के लिए इंटरनेट सेवाएं बहाल करने की किसी समयसीमा का कोई उल्लेख नहीं किया। न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को निषेधाज्ञा जारी करते समय आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय के आदेश का विपक्षी कांग्रेस ने स्वागत किया और इसे सरकार के लिए ‘‘2020 का पहला बड़ा झटका’’ करार दिया। वहीं, कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा, ‘‘यह उच्चतम न्यायालय का अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है।’’ न्यायालय ने जिन याचिकाओं पर सुनवाई की, उनमें भसीन की याचिका भी शामिल थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने निर्णय को ‘‘ऐतिहासिक’’ करार देते हुए कहा कि सरकार ने लोगों को गुमराह करने की कोशिश की थी और इस बार शीर्ष अदालत किसी दबाव में नहीं आई। आजाद की याचिका भी संबंधित याचिकाओं में शामिल थी।
वरिष्ठ वकील एवं कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। देश के लोगों को जम्मू-कश्मीर की स्थिति को लेकर चिंता थी। अब वहां से सूचनाएं आ सकेंगी।’’ वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी को लेकर उच्चतम न्यायालय का आदेश केंद्र सरकार के अहंकारी रुख को खारिज करता है और अब इस केंद्रशासित प्रदेश में संविधान का सम्मान करने वाले नए प्रशासकों की नियुक्ति होनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक को अब गोवा के राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, ''उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार की गैरकानूनी गतिविधियों को यह कहते हुए पहला बड़ा झटका दिया कि इंटरनेट की आजादी एक मौलिक अधिकार है।'' उन्होंने दावा किया, '' मोदी-शाह के लिए दोहरा झटका है कि विरोध को धारा 144 लगाकर नहीं दबाया जा सकता। मोदी जी को याद दिलाया गया है कि राष्ट्र उनके सामने नहीं, संविधान के सामने झुकता है।''
सुरजेवाला ने कहा, ‘‘न्यायालय ने मोदी सरकार की अवैध गतिविधियों को 2020 का पहला बड़ा झटका दिया।’’ नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने भी आदेश का स्वागत किया। न्यायालय के निर्णय पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रांतीय अध्यक्ष देवेंद्र सिंह राणा ने यहां कहा कि यह एक महत्वपूर्ण फैसला है। वहीं, पीडीपी ने अपने टि्वटर हैंडल पर कहा, ‘‘जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ अन्याय पर उच्चतम न्यायालय अंतत: जाग गया है न्यायपालिका में हमारा विश्वास बहाल हुआ।’’
माकपा ने भी न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया। पार्टी पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में नागरिक अधिकारों की कटौती पर उल्लेखनीय टिप्पणी की है जिससे राज्य में सामान्य जनजीवन की बहाली के बारे में केन्द्र सरकार के गलत दावे का खुलासा हुआ है। उधर, कश्मीर घाटी के लोगों ने न्यायालय के निर्णय पर खुशी व्यक्त की और इसे ‘‘सुखद’’ समाचार करार दिया। उन्होंने घाटी में जल्द इंटरनेट सेवा बहाल होने की उम्मीद व्यक्त की। श्रीनगर के लाल चौक क्षेत्र के कारोबारी इश्तियाक अहमद ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए अत्यंत सुखद और बड़ी राहत का समाचार है क्योंकि इंटरनेट को बंद हुए पांच महीने हो गए हैं।’’
वहीं, श्रीनगर की छात्रा आफरीन मुश्ताक ने कहा कि इंटरनेट पर रोक से छात्र समुदाय पर बुरा असर पड़ा है। इंटरनेट प्रतिबंध पर न्यायालय की आलोचना देर से आई है, लेकिन यह खुली हवा में सांस लेने जैसा है। श्रीनगर के एक पत्रकार ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने जो टिप्पणी की है, वह एकदम उचित है। उन्होंने कहा, ‘‘यह वही है, जो हम लंबे समय से कह रहे थे। उच्चतम न्यायालय ने सरकार की सही आलोचना की है। अब हम उम्मीद करते हैं कि मीडिया प्रतिष्ठानों की इंटरनेट सेवाएं बहाल हो जाएंगी ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें ।’’