नई दिल्ली: क्या राइट टू प्राइवेसी यानी निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना जा सकता है? इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। राइट टू प्राइवेसी पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और कहा कि सरकार आम लोगों के जीवन में दखल नहीं दे सकती। इस फैसले के बाद आधार के भविष्य पर भी संकट छा गया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. एस. खेहर, न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति आर. के. अग्रवाल, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर वाली संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया। ये भी पढ़ें: दुनिया दहलाने वाली भविष्यवाणी, पाकिस्तान-चीन मिलकर करेंगे भारत पर हमला
बता दें कि मौलिक अधिकार यानी फंडामेंटल राइट्स संविधान से हर नागरिक को मिला बुनियादी अधिकार है। इन अधिकारों का हनन होने पर कोई भी शख्स हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं अदालत में लंबित हैं। इन याचिकाओं में सबसे अहम दलील दी गई है कि आधार कार्ड से प्राइवेसी यानी निजता का हनन होता है जबकि सरकार की दलील है कि राइट टू प्राइवेसी का अधिकार अपने आप में मौलिक अधिकार नहीं है।
फैसले का किनपर असर?
- निजता का अधिकार
- आधार कार्ड की वैधता
- व्हाट्सएप की निजता नीति
- डिजिटल इंडिया पर
- आधार लिंक्ड पेमेंट ऐप पर
- डायरेक्ट बैनिफिट ट्रांसफर
इस फैसले का सोशल नेटवर्क व्हाट्सएप की नई निजता नीति पर भी असर पड़ेगा। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 23 सितंबर, 2016 को दिए अपने आदेश में व्हाट्सएप को नई निजता नीति लागू करने की इजाजत दी थी, हालांकि अदालत ने व्हाट्सएप को 25 सितंबर, 2016 तक इकट्ठा किए गए अपने यूजर्स का डेटा एक अन्य सोशल नेटवर्किं ग कंपनी फेसबुक या किसी अन्य कंपनी को देने पर पाबंदी लगा दी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।