नई दिल्ली: जिस मुल्क में करीब-करीब सौ परसेंट मुसलमान रहते हैं, उस देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजलिस शुरू होने जा रही है। दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी अपने विदेश दौरों की शुरुआत इसी इस्लामिक मुल्क से करने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री 8 जून को मालदीव जा रहे हैं और वहां के सांसदों की मजलिस को संबोधित करेंगे। नरेंद्र मोदी को मालदीव के सांसदों के बीच भाषण देने का न्यौता खुद इस मुस्लिम देश की संसद पीपुल्स मजलिस ने एक प्रस्ताव पास करने के बाद दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की मेजबानी की थी और अब प्रधानमंत्री मोदी मालदीव के राष्ट्रपति के मेहमान बनकर वहां पहुंच रहे हैं। 4 लाख की आबादी वाला ये मुस्लिम बहुल देश एक आईलैंड कंट्री है। पर्यटकों के बीच मालदीव बेहद ही लोकप्रिय डेस्टिनेशन है। क्षेत्रफल के हिसाब से मालदीव दिल्ली से भले ही पांच गुना छोटा है लेकिन 130 करोड़ लोगों के मुल्क के प्रधानमंत्री का इस छोटे इस्लामिक देश में जाना एक विराट सोच और अचूक कूटनीति का हिस्सा है।
मालदीव दौरा मुस्लिम देशों में मोदी के बढ़ते दबदबे का सबूत है जहां मोदी की मजलिस से चीन के वर्चस्व का असर कम होगा और इस्लामिक देश में मोदी के इस्तकबाल से पाकिस्तान परेशान होगा। मालदीव दौरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसलिए भी काफी अहम है क्योंकि इस दौरान नरेंद्र मोदी वहां के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के साथ कई ऐसे अहम मसलों पर चर्चा करेंगे जो चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए परेशानी भरा हो सकता है।
भारत और मालदीव के बीच बढ़ती दोस्ती की वजह से चीन और पाकिस्तान की परेशानी उसी वक्त शुरू हो गई थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल नबंबर में मालदीव गए थे। तब इस मुस्लिम देश में मोदी का भव्य स्वागत हुआ था। तब मोदी ने बताया था कि मालदीव से भारत के रिश्तों की अहमियत क्या है।
नरेंद्र मोदी का दोबारा मालदीव दौरा इसलिए अहम है क्योंकि उनके दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद मालदीव ने इंडिया फर्स्ट की नीति अपनाई है। यानी वो चीन से अपना पिंड छुड़ाना चाहता है और भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है। मालदीव को चीन ने 23 हजार करोड़ रुपए का कर्ज दे रखा है। ये कर्ज मालदीव के हर नागरिक पर 5.60 लाख के बराबर है।
नरेंद्र मोदी के लिए ये मौका चीन को घेरने का है। हिंद महासागर में स्थित मालदीव का इस्तेमाल करके चीन अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड को अमली जामा पहचाना चाहता है जिससे वो हिंद महासागर पर अपना दबदबा बना सके। चीन अगर मालदीव में कोई निर्माण कार्य करता है तो ये भारत के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। मालदीव से लक्षद्वीप की दूरी महज 1200 किलोमीटर है। ऐसे में मोदी नहीं चाहते कि चीन मालदीव का इस्तेमाल करके भारत की सीमाओं की घेराबंदी करे।
हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए मालदीव से भारत की ये दोस्ती बेहद अहम हो जाती है। मालदीव के बाद प्रधानमंत्री श्रीलंका जाने वाले हैं। ये दौरा इसलिए खास है क्योंकि पिछले दिनों श्रीलंका में हुए बम धमाकों के बाद पहली बार कोई राष्ट्राध्यक्ष श्रीलंका पहुंच रहा है। श्रीलंका चाहता है कि आतंकवाद से लड़ने में भारत उसकी मदद करे और भारत भी चाहता है कि समुद्री इलाके में चीन की घेराबंदी में वो मदद करे।
उम्मीद है कि श्रीलंका में चीन के बढ़ते असर को कम करने पर बातचीत हो सके। वहीं भारत, जापान और श्रीलंका मिलकर बंदरगाह बनाने पर भी बातचीत संभव है। भारत बहुत ही आसान शर्तों पर मालदीव और श्रीलंका को हर तरह से आर्थिक मदद देता है। ऐसे में चीन के चंगुल में फंसा मालदीव और श्रीलंका अब सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों के प्रधानमंत्री की तरफ उम्मीद से देख रहा है और दोनों देश जोरदार स्वागत के लिए तैयार है।