गया (बिहार): सनातन धर्म की परंपरा के मुताबिक, पूर्वजों (पितरों) को मोक्ष दिलाने के लिए प्रसिद्ध मोक्षस्थली गया में इन दिनों पिंडदान के बाद सुफल देने वाले गयापाल पंडा ही पिंडदान कर यहां की पुरानी परंपरा निभा रहे हैं। हिंदू सनातन धर्मावलंबियों के लिए मोक्ष भूमि गया की पहचान मोक्षस्थली के रूप में की जाती है। मान्यता है कि यहां विभिन्न पिंडवेदियों पर पिंड देने के बाद पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
गया की परंपरा रही है कि यहां प्रतिदिन 'एक मुंड और एक पिंड' आवश्यक है। लॉकडाउन के कारण यहां पिंडदानी नहीं पहुंच रहे हैं, जिस कारण इस परंपरा का निर्वाह खुद यहां के गयापाल पंडा विष्णुपद मंदिर परिसर में कर रहे हैं।
तीर्थवृत्त सुधारिनी सभा के अध्यक्ष और गयापाल पंडा समाज के गजाधरलाल कटियार ने बताया कि वायुपुराण और गरुड़ पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त गयासुर के लिए जनकल्याणार्थ मिले वरदान के मुताबिक गयाधाम में प्रतिदिन एक मुंड (शवदाह) व पिंड (पिंडदान) अनिवार्य है। विशेष परिस्थिति में ऐसे अवसर का अभाव होता है तो शवदाह की जगह पुतला का दहन व पिंड की जगह तीर्थ पुरोहित स्वयं पिंडदान कर परंपरा का निर्वहन करते हैं।
उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के काराण यहां श्रद्धालु नहीं पहुंच रहे हैं, जिस कारण इस परंपरा को गयावाल पंडा खुद निर्वहन कर रहे हैं। कहा जाता है कि गयासुर के मांगे वरदान के मुताबिक, भगवान विष्णु ने उन्हें तीन वरदान दिए थे। मान्यता है कि इसी वरदान के तहत गयासुर के विशालकाय शरीर पर आज भी गया स्थित पिंड वेदियां हैं, जहां पिंडदानी पिंडदान करते हैं। विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी सदस्य शंभूलाल विट्ठल ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से मंदिरों में पूजा-पाठ पिंडदान श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए सरकार के आदेश के अनुसार प्रतिबंध किया गया है।
उन्होंने कहा, "अभी चल रहे लॉकडाउन की वजह से श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गयाजी में पिंडदान और तर्पण करने नहीं पहुंच रहे हैं। इस हालात में विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति या गयापाल पंडा समाज अपने पूर्वजों की शांति और दुर्घटना में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए सोशल डिस्टेंस निभाते हुए पिंडदान तर्पण किया जा रहा है।"
समिति के एक अन्य सदस्य ने कहा कि ऐसी स्थिति शायद पहले कभी नहीं आई थी कि किसी दिन कोई श्रद्धालु यहां पिंडदान के नहीं पहुंचा हो। उन्होंने कहा, "गयातीर्थ को सनातनियों का प्रथम तीर्थ माना जाता है। यहां प्रत्येक दिन कोई ना कोई श्रद्धालु आकर पिंडदान करता ही है। आज की स्थिति में जब श्रद्धालु नहीं पहुंच रहे हैं, तो यहां के तीर्थ पुरोहित मंदिर के कपाट बंद होने से पहले विष्णुपदी पर पिंडदान करते हैं।"
उल्लेखनीय है कि पितृपक्ष के दौरान देश-विदेश के लाखों लोग यहां पहुंचते हैं और अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए पिंडदान करते हैं।