नई दिल्ली: पूरी दुनिया में क्रिसमस की धूम मची हुई है। प्रभु यीशू के जन्म के साथ ही कल आधी रात से गिरिजाघरों में प्रार्थनाएं हो रही हैं। प्यार और पवित्रता का संदेश देने वाला ये त्योहार सबसे पहले रोम में 336 ईस्वी में मनाया गया था तब से लेकर आजतक हर साल पच्चीस दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है। क्रिसमस का जश्न 12 दिनों तक चलेगा। इसके पीछे मान्यता है कि प्रभु यीशू के जन्म के 12वें दिन तीन आलिम उन्हें तोहफे और दुआएं देने आए थे इसीलिए ये धूम 12 दिनों तक चलती है।
इस त्योहार के लिए बड़ों से ज्यादा बच्चे उत्साहित रहते हैं। ये भी मान्यता है कि क्रिसमस की रात को सैंटा क्लॉज बच्चों के लिए तोहफे लेकर आते हैं। इस मौके पर ईसाई समुदाय के लोग घरों में क्रिसमस ट्री को भी सजाते हैं। सबसे पहले क्रिसमस ट्री के साथ इस त्योहार को मनाने की शुरुआत उत्तरी यूरोप में हजारों सालों पहले हुई थी।
उस समय 'Fir' नाम के पेड़ को सजाकर इस फेस्टिवल को मनाया जाता था। धीरे-धीरे क्रिसमस ट्री का चलन हर जगह बढ़ गया। लोग अब क्रिसमस के दिन इस पेड़ को घर लाकर कैंडी, चॉकलेट्स, खिलौने, लाइट्स, बल्ब और गिफ्ट्स से सजाते हैं।
मान्यता है कि क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा 1570 में शुरू हुई। क्रिसमस ट्री एक सदाबहार पेड़ है, जिसकी पत्तियां न तो किसी मौसम में गिरती हैं और न ही कभी मुरझाती हैं। मान्यता है कि क्रिसमस ट्री को सजाने से घर में मौजूद वास्तु दोष भी दूर होते हैं।
इस अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि ईसा मसीह की सीख और उनके कार्यों में आज की दुनिया में व्याप्त अशांति, घृणा और हिंसा से पीड़ितों को राहत प्रदान करने की ताकत है। क्रिसमस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने भारत और विदेशों में अपने सभी नागरिकों और खासकर ईसाई भाइयों एवं बहनों को शुभकामनाएं दीं।
उन्होंने कहा, ‘‘हम ईसा मसीह के जन्मदिन का उत्सव मनाते हैं जिनके जीवन से मानवता को प्यार, दया और भाईचारे का अनुपालन करने का संदेश हासिल होता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘आज जब दुनिया अशांति, घृणा और हिंसा से पीड़ित है तो उनके शब्दों और कार्यों से राहत मिलेगी और आगे का रास्ता दिखेगा।’’ उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि हम ईसा मसीह के बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लें और ‘‘अधिक दयालु एवं समतामूलक समाज का निर्माण करें।’’