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BLOG: सावधान! कहीं आपके मासूम बच्चे को मौत का हैवान तो नहीं ले जा रहा

कहीं आपके बच्चे को मौत का हैवान तो नहीं ले जा रहा हैं....आप सोच रहे होंगे कि मैंने ऐसा क्यों कहा...मैं पिछले कई दिनों से सुबह घर से स्कूल जाते मासूम बच्चों को देखता हूं...

Written by: Prashant Tiwari
Updated : September 04, 2018 13:39 IST
blog on school children
blog on school children

कहीं आपके बच्चे को मौत का हैवान तो नहीं ले जा रहा हैं....आप सोच रहे होंगे कि मैंने ऐसा क्यों कहा...मैं पिछले कई दिनों से सुबह घर से स्कूल जाते मासूम बच्चों को देखता हूं... किसी की उम्र 4  साल तो किसी की 5 .. तो कोई कोई बच्चा 7 या 8 साल का है मतलब सिर्फ मासूम बच्चे जिनकी हंसी और मुस्कुराहट देख कर अनजान व्यक्ति भी उन मुस्कुराहटों मे कुछ देर के लिए अपनी तकलीफे भूल जाता हैं।

बच्चे हंसते -रोते स्कूल को निकलते हैं.. कही मम्मी की याद तो कभी पापा का लाड़ उन्हें घर छोड़ने से रोक देता हैं पर फिर भी अनमने मन से मुस्कुराते हुए कंधो पर देश के भविष्य का बोझ उठाये निकल पड़ते हैं एक अनजाने जंग की ओर।

आप सोच रहे होंगे की मैंने स्कूल जाने को जंग क्यों कह दिया... दरअसल आज की भागती हुई दुनिया में मासूम बच्चों के लिए स्कूल जाना और वहा से वापस आना बिलकुल वैसे ही हैं जैसे बॉर्डर पर अवैध तरीके से नो मैन्स लैंड को पार करना और ये उन मासूमों के लिए या देश के लिए किसी आपातकाल या जंग से कम नहीं हैं...  क्योंकि अब जगह-जगह मासूम बच्चों का क़त्ल होने लगा हैं।

आपकों प्रद्युम्न के बारे में पता होगा.. पता होगा उससे पहले डूब कर मरी उस मासूम बच्ची के बारे में.. सुना होगा मासूमों से अत्याचार की खबर.. सुनी होगी बस और कैब या ऑटो के पलट जाने से मासूमों की मौत की खबर.. आपको ये भी पता होगा स्कूल की बस पलटने से कितने मासूम अपने घर तक नहीं पहुच पाते और कही राजधानी से हज़ारों किलो मीटर दूर दराज के बच्चों की मौत, ख़बरों का हिस्सा बनने से पहले ही दो गज ज़मीन के निचे दफ़न हो जाते हैं।

मां बाप सालों तक स्कूलों, प्रशासन, सरकार को कोसते-कोसते रोते हुए ज़िन्दगी बिता ले जाते हैं, उन्हें और उनके साथी अभिभावकों को अपनी गलती का एहसास नहीं हो पाता। क्योंकि हिंदुस्तान में लोगो को अपनी गलती ना समझने की आदत हो गई हैं... और स्कूल, प्रशासन इसे  हादसा मान कर.. कड़ी कार्यवाही देने का वायदा करते हैं और फिर चैन की नींद सो जाते हैं तब तक के लिए जब तक कोई और हादसा उनकी नींद से जागने का अलार्म ना बने।

दरअसल इन मासूमों की मौत कोई हादसा नहीं  इसे मैं ह्त्या कहूंगा.. राष्ट्र के विरोध में किया जाने वाला षड़यंत्र कहूंगा.. क्योंकि एक-एक मासूमों की हत्या देश के भविष्य की ह्त्या हैं और इसके लिए सबसे पहले मां बाप, स्कूल, प्रशासन सरकार और हम सभी बराबर के गुनाहगार हैं इसके लिए सज़ा तय होनी ज़रूरी हैं... क्योंकि हम सभी को लापरवाही की और गैरजिम्मेदारी की गन्दी बिमारी लग गई हैं.. मैं इस लिए ये बात कह रहा हूँ की प्रद्युम्न के कत्ल के बाद सब पेरेंट्स और प्रशासन बहुत चुस्त हो गए थे पर तीन  महीने नहीं बिता और हम लापरवाही की ओर कदम बढ़ा चुके हैं बेफिक्र हो गए हैं।

आज सुबह और पिछले कई दिनों से मैं लगातार देखते हुए आ रहा हूं कि स्कूलों की बस और  कैब इतनी तेज़ी से और बेपरवाही से गाड़ी चला कर ले जाते हैं कि कब कोई हादसा हो जाए पता नहीं हैं.. और मैं फिर कह रहा हूं की वो हादसा नहीं सोची समझी ह्त्या होगी...

अगर आपको अपने बच्चों की फिक्र हैं तो... फिलहाल कुछ खास बातों का ध्यान रखना ज़रूरी हैं... आपको लड़ने की ज़रूरत हैं अपने बच्चे के लिए...

कुछ बाते हैं जिनका आपको खास ध्यान रखना होगा हर रोज़

  • 1- स्कूल बस और कैब की स्पीड को निर्धारित कर देना चाहिए लगभग  40 किलोमीटर प्रति घंटा उससे ज्यादा तेज़ गाडी चल ही ना सके.. बच्चे भले ही देर से पहुंचे पर सुरक्षित रहे.
  • 2- ड्राईवर और कंडक्टर की वर्कशॉप महीने में 1 बार ज़रूरी
  • 3- अभिभावक नियमित रूप से जब बच्चे को छोड़ने जाए तो एक बार ड्राईवर से बात ज़रूर करे की कहीं उसने कोई नशा तो नहीं किया हैं।
  • 5- बच्चो से दोस्ताना रवैया रखे ताकि वो अपने दिल की बात बेख़ौफ़ होकर आपसे कह सके।
  • 6- स्कूल पर लगातार दबाव बनाए बच्चो की सुरक्षा को लेकर।
  • 7- किसी भी स्कूल बस या कैब को तेज़ चलते हुए देखे तो तुरंत स्कूल या पुलिस को रिपोर्ट करे।
  • 8- आखिरी में सिर्फ यही सुझाव हैं कि नियमित रूप से अपने बच्चो की सुरक्षा का ख्याल रखे.. वरना आपकी एक लापरवाही की कीमत सिर्फ मासूम बच्चों और इस देश को झेलना पड़ेगा।

बहुत सी बाते हैं बताने को पर सबसे अहम यही हैं कि अब चौकन्ने होने की ज़रूरत हैं... क्योंकि अब आपकी सतर्कता ही आपके बच्चो की सुरक्षा हैं..... ज़माना बदल चुका हैं ज्यादा पैसा और सबसे बेहतर महंगे स्कूल आपके लाडले को सुरक्षित रखने में नाकाम होते दिखाई दे रहे हैं।

(इस ब्लॉग के लेखक प्रशांत तिवारी है)

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