नई दिल्ली: प्रणब मुखर्जी तब एक युवा सांसद थे और यहां स्थित अपने आवास के बरामदे में बैठे हुए राष्ट्रपति भवन से घोड़ों को गुजरते हुए देखकर उन्होंने अपनी बहन से मजाक में कहा था कि वह चाहते हैं कि अगले जन्म में राष्ट्रपति भवन के एक घोड़े हों।
मुखर्जी से उम्र में 10 वर्ष बड़ी उनकी बहन अन्नपूर्णा बनर्जी ने तब भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि वह अपने इसी जीवन में राष्ट्रपति होंगे।
आज राष्ट्रपति कार्यालय में प्रणब मुखर्जी का आखिरी दिन था जिन्हें कांग्रेस का एक निष्ठावान एवं विश्वसनीय व्यक्ति जाना जाता है। इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति बनाकर पुरस्कृत किया गया, यद्यपि प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया।
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भारत के 13वें राष्ट्रपति मुखर्जी के स्थान पर कल रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण कर लेंगे। मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल के मिराती गांव में एक स्कूल में छात्र से आगे बढ़ते हुए अपने जीवन में काफी लंबा सफर तय किया और आगे जाकर भारत के सबसे सम्मानित राजनीतिज्ञों में से एक बने।
इसकी शुरूआत तब हुई थी जब इंदिरा गांधी ने उन्हें मिदनापुर में एक उपचुनाव में देखा था जहां वह वी के कृष्ण मेनन के चुनाव एजेंट थे। मुखर्जी के कुशल प्रबंधन के चलते मेनन ने उक्त चुनाव बड़े अंतर से जीत लिया जबकि वह एक मलयाली थे। मेनन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वी धड़े बांग्ला कांग्रेस से उम्मीदवार थे।
इंदिरा गांधी मुखर्जी के राजनीतिक कौशल से बहुत प्रभावित हुईं थीं और वह उन्हें कांग्रेस में ले आयीं। इंदिरा ने मुखर्जी की संसद की यात्रा 1969 में राज्यसभा के जरिये शुरू करायी। उसके बाद प्रणब दा के नाम से लोकप्रिय मुखर्जी ने कई उपलब्धियां हासिल कीं।