नई दिल्ली। जम्मू एवं कश्मीर में हालिया घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि को लेकर सबकी निगाहें संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) पर हैं, खासकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष इमरान खान के संबोधन पर, जो वे वहां सत्र के दौरान करेंगे। 27 सितंबर को यूएनजीए को संबोधित करने वाले खान ने कहा है कि वह मंच पर जम्मू एवं कश्मीर मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठाएंगे। पीएम नरेंद्र मोदी भी उसी दिन विश्व निकाय को संबोधित करने वाले हैं।
एक संकेत है कि इमरान खान की बयानबाजी की चाल में मोदी नहीं फंसेंगे। इसका अंदाजा संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन के दिए बयान से लागाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था, "वे भले ही अपना स्तर नीचे गिरा सकते हैं, लेकिन इस पर हमारा जवाब यही होगा कि आप जितना नीचे गिरेंगे, हम उतना ही ऊपर उठेंगे।" उनकी यह टिप्पणी तब आई, जब उनसे पूछा गया कि भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी, क्योंकि खान यूएनजीए में इस मुद्दे को उठाने के लिए तैयार हैं।
यूएनजीए में कश्मीर मुद्दे को 'घृणास्पद भाषण' की मुख्यधारा में लाने के एजेंडे पर अकबरुद्दीन ने कहा, "हमें यकीन है कि हमारा कद बढ़ेगा। हमने आपको उदाहरण दिए हैं कि हम नीचे नहीं गिरेंगे। जब वे नीचे गिरेंगे तो हम ऊपर उठेंगे।" भारत सरकार द्वारा 5 अगस्त को जम्मू एवं कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्जा निरस्त किए जाने के बाद से बौखलाया पाकिस्तान इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की पूरी कोशिश कर रहा है। उसने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की भी गुहार लगाई, लेकिन किसी ने उसका साथ नहीं दिया।
मोदी द्वारा यूएनजीए में अपने संबोधन में आर्थिक प्रगति और विकास और 2024 तक देश भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा के बारे में बात किए जाने की संभावना है। देश में कारोबार में सहजता का जिक्र किए जाने के दौरान उनके इस बात पर प्रकाश डालने की संभावना है कि दुनिया इसका कैसे फायदा उठा सकती है, क्योंकि जैसा कि भारत बड़े आर्थिक विकास की ओर अग्रसर है।
इस वर्ष यूएनजीए का विषय 'गरीबी उन्मूलन, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, जलवायु पर काम करने और समावेश के लिए बहुपक्षीय प्रयासों को बढ़ावा देना' है। कल रात अमेरिका की सात दिवसीय यात्रा के लिए रवाना होने से पहले जारी एक बयान में मोदी ने कहा, "अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए कई दबावपूर्ण चुनौतियां हैं - अभी भी एक कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था, अशांति और दुनिया के कई हिस्सों में तनाव, आतंकवाद का विकास और प्रसार, जलवायु परिवर्तन और गरीबी उन्मूलन विशेष वैश्विक चुनौती बनी है।"
उन्होंने कहा कि इन मुद्दों पर मजबूत वैश्विक प्रतिबद्धता और ठोस बहुपक्षीय कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 1945 में संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य के रूप में अपनी भागीदारी के बाद से भारत ने शांति और सुरक्षा को आगे बढ़ाने और दुनिया में व्यापक-समावेशी आर्थिक विकास और विकास को बढ़ावा देने के लिए बहुपक्षवाद के प्रति अटूट प्रतिबद्धता दर्शाई है।