Monday, November 25, 2024
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प्रधानमंत्री को संसद में बयान देना चाहिए, जासूसी हुई या नहीं बताना चाहिए: पी. चिदंबरम

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने रविवार को कहा कि सरकार को या तो पेगासस जासूसी के आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति के जरिए जांच करानी चाहिए या उच्चतम न्यायालय से मामले की जांच के लिए किसी मौजूदा न्यायाधीश को नियुक्त करने का अनुरोध करना चाहिए।

Reported by: Bhasha
Updated on: July 25, 2021 19:40 IST
Congress leader P Chidambaram- India TV Hindi
Image Source : PTI Congress leader P Chidambaram

नयी दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने रविवार को कहा कि सरकार को या तो पेगासस जासूसी के आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति के जरिए जांच करानी चाहिए या उच्चतम न्यायालय से मामले की जांच के लिए किसी मौजूदा न्यायाधीश को नियुक्त करने का अनुरोध करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले को संसद में स्पष्ट करना चाहिए कि लोगों की निगरानी हुई या नहीं।

पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि उन्हें यकीन नहीं है कि कोई इस हद तक कह सकता है कि 2019 के पूरे चुनावी जनादेश को ‘‘गैरकानूनी जासूसी’’ से प्रभावित किया गया। लेकिन, उन्होंने कहा कि इससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जीत हासिल करने में ‘‘मदद’’ मिली हो सकती है, जिसको लेकर आरोप लगे थे। चिदंबरम ने पीटीआई-भाषा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा जांच सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति की जांच से अधिक प्रभावी हो सकती है।

उन्होंने कहा कि जेपीसी को संसद द्वारा अधिक अधिकार मिलता है। संसद की सूचना प्रौद्योगिकी समिति के प्रमुख शशि थरूर की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर चिदंबरम ने संदेह व्यक्त किया कि क्या भाजपा के बहुमत वाली आईटी समिति मामले की पूरी जांच होने देगी। थरूर ने कहा था, ‘‘ यह विषय ‘‘मेरी समिति के अधीन है’’ और जेपीसी की आवश्यकता नहीं है, उन्होंने कहा, ‘‘संसदीय समिति के नियम ज्यादा सख्त हैं। उदाहरण के लिए वे खुले तौर पर सबूत नहीं ले सकते हैं लेकिन एक जेपीसी को संसद द्वारा सार्वजनिक रूप से साक्ष्य लेने, गवाहों से पूछताछ करने और दस्तावेजों को तलब करने का अधिकार दिया जा सकता है। इसलिए मुझे लगता है कि एक जेपीसी के पास संसदीय समिति की तुलना में कहीं अधिक शक्तियां होंगी।’’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह मामले की जांच की हद को लेकर संसदीय समिति की भूमिका को कमतर नहीं बता रहे हैं।

पिछले रविवार को, एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ने कहा था कि भारत में पेगासस स्पाईवेयर के जरिए 300 से अधिक मोबाइल नंबरों की संभवत: निगरानी की गयी। इसमें दो मंत्री, 40 से अधिक पत्रकारों, तीन विपक्षी नेताओं के अलावा कार्यकर्ताओं के नंबर भी थे। सरकार इस मामले में विपक्ष के सभी आरोपों को खारिज करती रही है। चिदंबरम ने कहा कि सरकार या तो पेगासस जासूसी के आरोपों की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराए या उच्चतम न्यायालय से मामले की जांच के लिए किसी मौजूदा न्यायाधीश को नियुक्त करने का अनुरोध करे। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले को संसद में स्पष्ट करना चाहिए कि लोगों की निगरानी हुई या नहीं।

आरोपों को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया पर चिदंबरम ने संसद में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) एवं संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव के बयान का हवाला देते हुए कहा कि वह स्पष्ट रूप से बहुत ‘‘चतुर मंत्री’’ हैं, इसलिए बयान को ‘‘बहुत चतुराई से’’ कहा गया। कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘उन्होंने (वैष्णव) इस बात से इनकार किया कि कोई अनधिकृत निगरानी की गयी। वह इस बात से इनकार नहीं करते कि निगरानी हुई थी। वह इस बात से इनकार नहीं करते कि अधिकृत निगरानी हुई थी। निश्चित रूप से मंत्री अधिकृत निगरानी और अनधिकृत निगरानी के बीच का अंतर जानते हैं।’’ सरकार से चिदंबरम ने पूछा कि क्या निगरानी हुई थी और क्या पेगासस के जरिए जासूसी की गई। उन्होंने सवाल किया, ‘‘यदि पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया था, तो इसे किसने हासिल किया? क्या इसे सरकार द्वारा या उसकी किसी एजेंसी द्वारा हासिल किया गया था?’’

राज्यसभा सदस्य ने सरकार से स्पाईवेयर हासिल करने के लिए भुगतान की गई राशि पर सफाई देने को भी कहा। उन्होंने कहा, ‘‘ये सरल, सीधे-स्पष्ट सवाल हैं जो आम नागरिक पूछ रहा है और मंत्री को इसका सीधा जवाब देना चाहिए। फ्रांस ने भी जांच का आदेश दिया है जब यह पता चला कि राष्ट्रपति (इमैनुएल) मैक्रों का नंबर हैक किए गए नंबरों में से एक था। इजराइल ने खुद अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद से जांच के आदेश दिए हैं।’’ उन्होंने कहा कि अगर दो बड़े देश जांच का आदेश दे सकते हैं, तो भारत जांच का आदेश क्यों नहीं दे सकता है और चार सरल सवालों के जवाब क्यों नहीं पता किये जा सकते। चिदंबरम ने कहा कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों से भी जुड़ा है, क्योंकि अगर सरकार कहती है कि उसने निगरानी नहीं की, तो सवाल उठता है कि जासूसी किसने की।

विपक्ष द्वारा उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग और क्या शीर्ष अदालत को इस पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए, इस बारे में पूछे जाने पर चिदंबरम ने कहा कि वह इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे कि अदालत क्या कर सकती है और क्या नहीं, लेकिन उन्होंने कहा एक या दो व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग दायर की गई जनहित याचिका में पेगासस खुलासे का स्वत: संज्ञान लेने का अनुरोध किया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘जैसा भी हो, सरकार को या तो संसद से जेपीसी का गठन करने का अनुरोध करना चाहिए या सरकार को शीर्ष अदालत से एक माननीय न्यायाधीश को जांच करने के लिए नियुक्त करने का अनुरोध करना चाहिए।’’

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि आरोपों का उद्देश्य विश्व स्तर पर भारत को अपमानित करना था, चिदंबरम ने कहा कि गृह मंत्री ने अपने शब्दों को बहुत सावधानी से चुना और इस बात से इनकार नहीं किया कि निगरानी की गयी। उन्होंने कहा, ‘‘वह (शाह) इस बात से इनकार नहीं करते हैं कि भारत में पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके कुछ टेलीफोन हैक किए गए थे। इसलिए, वास्तव में गृह मंत्री ने जो कहा, उसके बजाय उन्होंने जो नहीं कहा, वह अधिक महत्वपूर्ण है।’’

चिदंबरम ने कहा कि अगर गृह मंत्री इस बात से स्पष्ट रूप से इनकार नहीं कर पाते कि स्पाईवेयर से भारतीय टेलीफोन में घुसपैठ हुई है तो जाहिर तौर पर उन्हें अपनी निगरानी में हो रहे इस ‘‘'घोटाले’’ की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इस मुद्दे पर संसद में गतिरोध और विपक्ष के आह्वान के बारे में पूछे जाने पर कि प्रधानमंत्री को पेगासस मुद्दे पर बयान देना चाहिए, उन्होंने कहा कि मोदी को संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन ही बयान देना चाहिए था जब आरोप सामने आए।

चिदंबरम ने कहा, ‘‘केवल कुछ एजेंसियां हैं जो यह निगरानी कर सकती हैं। सभी एजेंसियां ​​प्रधानमंत्री के नियंत्रण में हैं।’’ चिदंबरम ने कहा, ‘‘प्रत्येक मंत्री केवल वही जानता है जो उसके विभाग के अधीन है। प्रधानमंत्री जानते हैं कि सभी विभागों के तहत क्या हो रहा है। इसलिए, प्रधानमंत्री आगे आकर बताएं कि निगरानी हुई थी या नहीं और यदि निगरानी हुई थी तो क्या यह अधिकृत था या नहीं।’’

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