नयी दिल्ली: पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले भारतीय प्रेस परिषद या किसी न्यायिक प्राधिकरण से इसकी अनुमति लेने के लिये दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को याचिकाकर्ता मुंबई के वकील से कहा कि वह सरकार को इस बारे में प्रतिवेदन दें। प्रधान न्यायाधीश एसस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने वीडियो कॉफ्रेन्स के माध्यम से मामले की सुनवाई करते हुये याचिकाकर्ता धनश्याम उपाध्याय से कहा कि वह पहले सरकार को इस संबंध में प्रतिवेदन दें।
मुंबई निवासी अधिवक्ता उपाध्याय का कहना था कि कुछ समाचार चैनलों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है और उनके खिलाफ अलग-अलग राज्यों में तरह-तरह के आरोपों में प्राथमिकी दर्ज की जा रही हैं ताकि उनकी आवाज दबाई जा सके। याचिकाकर्ता का तर्क था कि निराधार और मनगढ़ंत तथा झूठे आरोपों से प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये कानून में कोई प्रावधान नहीं है जबकि इसके लिये कुछ दिशा निर्देश बनाये जाने की आवश्यकता है।
याचिका में कहा गया था कि न्यायालय को यह निर्देश देना चाहिए की मीडिया और पत्रकारों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत किसी अपराध के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले भारतीय प्रेस परिषद या शीर्ष अदालत द्वारा नामित किसी न्यायिक अधिकरण से मंजूरी लेना अनिवार्य किया जाये। याचिका में कहा गया कि इस संबंध में दिशानिर्देश होने चाहिए और कानूनी कार्यवाही की मंजूरी देने वाले प्राधिकार को समयबद्ध तरीके से ऐसे आवेदन पर निर्णय का अधिकार दिया जाना चाहिए।