नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र और आरबीआई से एक जनहित याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें ऑनलाइन ऋण देने वाले मंचों को विनियमित करने की मांग की गई है। ये मंच मोबाइल ऐप के जरिए भारी ब्याज दर पर अल्पावधि के व्यक्तिगत ऋण की पेशकश करते हैं, और कथित तौर पर चुकाने में देरी होने पर लोगों को अपमानित और परेशान करते हैं। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को नोटिस जारी करते हुए याचिका पर अपना पक्ष रखने के लिए कहा।
तेलंगाना के धरणीधर करिमोजी ने दायर की याचिका
याचिका में दावा किया गया है कि इस तरह के ऋण देने वाले मंच दिए गए ऋणों पर अत्यधिक ब्याज वसूलते हैं। याचिका तेलंगाना के एक धरणीधर करिमोजी ने दायर की है, जो डिजिटल विपणन के क्षेत्र में काम करते हैं। उनका दावा है कि 300 से अधिक मोबाइल ऐप सात से 15 दिन की अवधि के लिए 1,500 से 30,000 रुपये तक का कर्ज तत्काल देते हैं। याचिका में कहा गया कि इन मंचों से लिए गए ऋण का लगभग 35 प्रतिशत से 45 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न शुल्कों के रूप में तुरंत कट जाता है और शेष राशि ही कर्ज लेने वाले के बैंक खाते में स्थानांतरित की जाती है।
करिमोजी की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि ये संस्थाएं प्रति दिन एक प्रतिशत या उससे अधिक ब्याज दर वसूलती हैं और ऋण राशि की अदायगी में देरी की स्थिति में वे फोन करती हैं और कर्ज लेने वाले की संपर्क सूची में सभी को अपमानित और परेशान करती हैं तथा भुगतान करने के लिए दबाव बनाती हैं। उन्होंने अदालत से कहा कि इन मंचों को विनियमित करने और भारी ब्याज लेने से रोकने के लिए वित्त मंत्रालय और आरबीआई को निर्देश दिया जाए।