नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने औद्योगिक इकाइयों में पेट कोक के इस्तेमाल से संबंधित मामले में आज नाराजगी के साथ टिप्पणी की कि क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय खुद को ‘ भगवान ’ या सुपर सरकार मानता है और सोचता है कि ‘‘ बेरोजगार ’’ न्यायाधीश उसकी दया पर हैं। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने यह तीखी टिप्पणियां उस वक्त कीं जब शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने कल ही पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है। यह कोक औद्योगिक ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है।
शीर्ष अदालत ने इस रवैये पर कड़ा रूख अपनाते हुये पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय पर इस ‘‘ लापरवाही ’ के लिये 25 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया। न्यायलय दिल्ली - राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर पर्यावरणविद् अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता द्वारा 1985 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार पर भी एक लाख रूपए का जुर्माना किया क्योंकि उसने राजधानी में अनेक मार्गो पर यातायात अवरूद्ध होने की समस्या को दूर करने के लिये कोई समयबद्ध स्थिति रिपोर्ट पेश नहीं की। पीठ ने कहा कि दस मई के न्यायालय के आदेश के अनुसार दिल्ली सरकार को छह सप्ताह के भीतर इस बारे में हलफनामा दाखिल करना था लेकिन उसने न तो ऐसा किया और न ही उसकी ओर से कोई वकील उपस्थित हुआ। पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार इन आदेशों के प्रति गंभीर नहीं है।
पीठ ने पेट्रोलियम एंव प्राकृतिक गैस मंत्रालय के खिलाफ ये तल्ख टिप्पणियां उस वक्त कीं जब अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने उसे सूचित किया कि इस मंत्रालय से उसे कल ही जवाब मिला है। इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुये पीठ ने कहा , ‘‘ क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय भगवान है ? क्या वे भगवान हैं ? उनसे कह दीजिये कि वे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की बजये अपना नाम बदल कर भगवान कर लें। ’’ पीठ ने कहा , ‘‘ क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय सुपर सरकार है ? क्या वह भारत सरकार से ऊपर है ? हमें बतायें कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की क्या हैसियत है ? वे किसी भी आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं ? नाडकर्णी ने जब यह कहा कि उनका हलफनामा तैयार है और इसे आज ही दाखिल कर दिया जायेगा तो न्यायमूर्ति लोकुर ने पलट कर कहा , ‘‘ यदि वे (पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय) आदेशों पर अमल नहीं करना चाहते हैं तो वे पालन नहीं करें। और क्या वे सोचते हैं कि उच्चतम न्यायालय के ‘‘ बेरोजगार ’ न्यायाधीश उन्हें समय देंगे। क्यों हमें उनकी दया पर रहना होगा। ’’
पीठ ने अतिरिक्त् सालिसीटर जनरल को आज दिन में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुये कहा , ‘‘ हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को जवाब भेजने के लिये अपने हिसाब से वक्त लगाने के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के रवैये से आश्चर्यचकित हैं। यह विलंब सिर्फ पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ‘‘ सुस्ती ’’ के कारण हुआ है। ’’ पीठ ने इस मंत्रालय पर 25 हजार रूपए लगाते हुये कहा कि यदि जुर्माने की राशि उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण में 13 जुलाई तक जमा नहीं कराई गयी तो वह जुर्माने की राशि बढ़ा देगी। न्यायालय इस मामले में अब 16 जुलाई को आगे सुनवाई करेगा। इससे पहले , संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने तथा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के बारे में जवाब देना था।