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PAU के विशेषज्ञों ने कहा, पंजाब से पराली का धुंआ दिल्ली पहुंचना लगभग नामुमकिन

विशेषज्ञों ने कहा कि पंजाब के खेतों में धान की पराली जलाने के कारण पैदा हुए धुंए के 300-400 किलोमीटर दूर पहुंचकर दिल्ली की वायु गुणवत्ता को प्रभावित करना लगभग नामुमकिन है।

Reported by: IANS
Updated on: October 30, 2020 19:20 IST
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Image Source : PTI REPRESENTATIONAL दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ते ही पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं की बात होने लगती है।

चंडीगढ़: दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ते ही पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं की बात होने लगती है। लेकिन लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) के विशेषज्ञों ने शुक्रवार को एक नई बात बताई। इन विशेषज्ञों ने कहा कि पंजाब के खेतों में धान की पराली जलाने के कारण पैदा हुए धुंए के 300-400 किलोमीटर दूर पहुंचकर दिल्ली की वायु गुणवत्ता को प्रभावित करना लगभग नामुमकिन है। यह अनुमान जलवायु परिवर्तन और कृषि मौसम विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं के 2017 और 2019 के बीच अक्टूबर और नवंबर के दौरान पंजाब में हवा की गति पर आधारित है।

क्यों दिल्ली नहीं पहुंच सकता पराली का धुआं?

अध्ययन को संकलित करने वालीं प्रभजोत कौर सिद्धू ने बताया कि अगर पंजाब से धुआं हरियाणा और दिल्ली की ओर बढ़ता है, तो हवा की गति 4-5 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक होनी चाहिए और इसकी दिशा उत्तर-पश्चिम या कम से कम पश्चिम होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अध्ययन के 3 वर्षो में, केवल एक दिन 7 नवंबर, 2019 को हवा की गति 5 किलोमीटर/ घंटा से बढ़कर 5.9 किलोमीटर/ घंटा हो गई थी। उन्होंने कहा, ‘वास्तव में, उस दिन हवा की दिशा दक्षिणपूर्व की ओर थी, जिसका मतलब है कि हरियाणा और दिल्ली जैसे पड़ोसी राज्यों से हवा पंजाब की ओर बह रही थी।’

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‘हवा के प्रवाह के फॉर्मेशन में आई कमी’
उन्होंने कहा कि इसलिए पंजाब से आने वाली दक्षिण पूर्वी हवाएं द्वारा पड़ोसी राज्यों में वायु की गुणवत्ता को प्रभावित करने की संभावना नहीं हैं। अक्टूबर और नवंबर में पारे में गिरावट के साथ, हवा के प्रवाह के फॉर्मेशन में कमी आई है। सिद्धू ने कहा, ‘इन 2 महीनों के दौरान एक स्थिर वायुमंडलीय स्थिति का निर्माण होता है जिसमें केवल वायु प्रवाह की थोड़ी वर्टिकल गति होती है जबकि वायु की क्षैतिज गति भी कम हो जाती है। भूसा जलाने और अन्य प्रदूषण स्रोतों के कारण धूल और धुएं के कण वायुमंडल में एकत्र हो जाते हैं।’

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‘प्रत्येक राज्य अपने ही प्रदूषकों से त्रस्त है’
उन्होंने कहा कि यह एक बंद कमरे की स्थिति की तरह है जिसमें मुश्किल से कुछ भी बाहर से आता है या बाहर जाता है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में, विशेष रूप से धान उगाने वाले राज्यों में, प्रत्येक राज्य अपने ही प्रदूषकों से त्रस्त है। सुखजीत कौर और संदीप सिंह संधू सहित उनके साथी शोधकर्ताओं ने 10 स्टेशनों- गुरदासपुर, बल्लोवाल सौंखरी, चंडीगढ़, अमृतसर, लुधियाना, पटियाला, अंबाला, बठिंडा, फरीदकोट और अबोहर में औसत हवा की गति संकलित की। उत्तरी राज्यों के लिए, अक्टूबर बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि तापमान कम हो जाता है और दशहरा और दिवाली के दौरान पटाखे जलाने के कारण वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।

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