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नौकरियों में आरक्षण पर न्यायालय के आदेश में सुधार के लिए अध्यादेश लाना चाहिए: पासवान

पासवान ने कहा कि सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दायर करने और इस विषय पर कानूनी राय लेने पर विचार कर रही है।

Written by: Bhasha
Published on: February 14, 2020 23:19 IST
Ram Vilas Paswan- India TV Hindi
Image Source : FILE Ram Vilas Paswan

नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के लिए नौकरियों में आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले में ‘सुधार’ के लिए सरकार को एक अध्यादेश लाना चाहिए। साथ ही, इस तरह के सभी मुद्दों को संविधान की ‘‘नौवीं अनुसूची’’ में डाल देना चाहिए ताकि उन्हें ‘न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर रखा जा सके’। पासवान ने कहा कि सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दायर करने और इस विषय पर कानूनी राय लेने पर विचार कर रही है।

उन्होंने पीटीआई भाषा के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘पुनर्विचार याचिका का विकल्प है लेकिन यह विषय फिर से न्यायालय में जाएगा, यह देखना होगा कि यह सफल होता है या नहीं। इसलिए, मेरे विचार से आसान तरीका एक अध्यादेश जारी करना और संविधान में संशोधन करना होगा। ’’ लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) नेता की यह टिप्पणी राजनीतिक भूचाल ला देने वाले शीर्ष न्यायालय के एक हालिया फैसले पर आई है।

उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकारें एससी और एसटी समुदायों को नियुक्तियों में आरक्षण मुहैया करने के लिए बाध्य नहीं हैं तथा पदोन्न्ति में आरक्षण का दावा करने के लिए कोई मूल अधिकार नहीं है। पासवान ने कहा, ‘‘यह संविधान का हिस्सा है और लोगों को यह आपत्ति है कि यह फैसला एससी/एसटी के हितों के खिलाफ है।’’ उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण मंत्री ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले में सुधार के लिए एक अध्यादेश लाया जाना चाहिए और संविधान में संशोधन करना चाहिए। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि संसद के सत्र में नहीं रहने के दौरान अध्यादेश लाया जा सकता है।

पासवान ने कहा कि लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने भी लोकसभा में यह विषय उठाया था और एससी/एसटी से जुड़े इस तरह के सभी विषयों को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग की थी। उन्होंने कहा, ‘‘एससी/एसटी से जुड़े सभी मुद्दों को नौवीं अनुसूची में डाल देना चाहिए।’’ पासवान ने कहा, ‘‘इसके बाद अदालत जाने से छुटकारा मिल जाएगा क्योंकि हो यह रहा है कि राज्य विधानसभाएं और संसद कानून (एससी/एसटी अधिकारों पर) पारित कर रही हैं लेकिन वे कानूनी लड़ाई में उलझ के रह जा रही हैं।’’

उन्होंने बताया कि करीब 70 दलित और आदिवासी सांसद इस हफ्ते की शुरुआत में उनके आवास पर मिले थे। उनमें केंद्रीय मंत्री भी थे। उन्होने सरकार के समक्ष दो मुख्य मांगें रखी--एक अध्यादेश जारी किया जाए और फिर उच्चतम न्यायालय के इस आदेश को अमान्य करने के लिए संविधान संशोधन किया जाए तथा एससी, एसटी और ओबीसी की उच्चतर न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए भारतीय न्यायिक सेवा हो। उन्होंने कहा, ‘‘मैं कह सकता हूं कि आरक्षण कभी खत्म नहीं होगा और सरकार को जो कदम उठाना होगा, वह उठाएगी।’’

लोजपा नेता ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘राहुल को लोगों से कहना चाहिए कि संसद के केंद्रीय कक्ष में एक ही परिवार की इतनी सारी तस्वीरें क्यों थी, जबकि वीपी सिंह सरकार के सत्ता में आने तक आंबेडकर की तस्वीर नहीं लगाई गई थी।’’ उल्लेखनीय है कि राहुल ने कहा था कि आरक्षण खत्म करने के लिए एक ‘‘बड़ी साजिश’’ चल रही है। इस मुद्दे पर संसद के अंदर और बाहर सोमवार को एक बड़ा विवाद पैदा होने पर तथा विपक्ष के हमलों के बीच सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने दोनों सदनों में अपने बयान में यह स्पष्ट कर दिया कि केंद्र से इस विषय में कोई हलफनामा दाखिल करने को नहीं कहा गया था। 

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