Friday, December 27, 2024
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1962 के भारत-चीन युद्ध ने कश्मीर को पाने का पाकिस्तान का हौसला बढ़ाया: जनरल बरार

लेफ्टिनेंट जनरल एन एस बरार (सेवानिवृत्त) ने कहा है कि 1962 के युद्ध में चीन के हाथों भारत की हार और फिर कच्छ सीमा के सीमांकन ने पाकिस्तान का हौसला बढ़ा दिया कि वह कश्मीर को जबरन हथियाने की कोशिश कर सकता है और सैन्य कार्रवाई कर अपनी राजनीतिक समस्याओं का समाधान कर सकता है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : December 16, 2018 16:56 IST
Pakistan tried to take Kashmir by force post I962 Sino-India war: Lt Gen Brar
Pakistan tried to take Kashmir by force post I962 Sino-India war: Lt Gen Brar

नयी दिल्ली: लेफ्टिनेंट जनरल एन एस बरार (सेवानिवृत्त) ने कहा है कि 1962 के युद्ध में चीन के हाथों भारत की हार और फिर कच्छ सीमा के सीमांकन ने पाकिस्तान का हौसला बढ़ा दिया कि वह कश्मीर को जबरन हथियाने की कोशिश कर सकता है और सैन्य कार्रवाई कर अपनी राजनीतिक समस्याओं का समाधान कर सकता है। अपनी हालिया किताब ड्रमर्स कॉल में बरार ने लिखा है कि यह असल उत्तर की लड़ाई थी, जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध को परिभाषित किया। सितंबर की शुरुआत में असल उत्तर की लड़ाई लड़ी गयी। 

असल उत्तर उन लड़ाइयों में है जिसमें 1965 के युद्ध के दौरान सबसे अधिक टैंकों का इस्तेमाल हुआ और आखिरकार इस युद्ध का अंत भारत की निर्णायक जीत के साथ हुआ। बरार अपने संग्रह में लिखते हैं, 1962 के अपमान के बाद जब अप्रैल-मई 1965 में पाकिस्तान ने कच्छ में घुसपैठ की कोशिश की तब भारत तीन सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण द्वारा कच्छ की सीमा के निर्धारण पर सहमत हुआ था। इस घटना ने कश्मीर को बलपूर्वक पाने की कोशिश करने के लिए पाकिस्तान का हौसला बढ़ा दिया।

उन्होंने लिखा कि पाकिस्तानी सेना उन्नत एवं आधुनिक तोपों और असलहों से लैस थी। 1962 के युद्ध के बाद उसका मानना था कि भारतीय सेना कम प्रशिक्षित है और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ खड़े होने के लिये उसके पास आधुनिक हथियार नहीं हैं। इसलिए पाकिस्तान को यह लगा कि सैन्य कार्रवाई कर भारत के साथ अपनी राजनीतिक समस्याओं के समाधान का यही सही समय है। किताब के अनुसार अपने तब आधुनिक अमेरिकी हथियारों से लैस पाकिस्तानी सेना आठ सितंबर को भारतीय क्षेत्र में घुसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा से पांच किलोमीटर अंदर भारतीय शहर खेमकरण पर कब्जा कर लिया।

भारतीय सेना ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया। कुछ दिन की लड़ाई के बाद 10 सितंबर को जंग उस वक्त अपने चरम पर पहुंची जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को रौंद दिया। उन्होंने लिखा कि असल उत्तर में यह निर्णायक जीत पाकिस्तान की 1 बख्तरबंद डिविजन की बर्बादी का कारण और अति प्रशंसित पैटन टैंकों के लिये कब्रगाह बनी। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने असल उत्तर की लड़ाई में लेफ्टिनेंट के तौर पर हिस्सा लिया था। 

बरार ने बताया कि पाकिस्तान ने 97 टैंक गंवाये। इनमें पाक 4 घुड़सवार फौज की तबाही भी शामिल है, जिसके कमांडिंग ऑफिसर ने अन्य शीर्ष अधिकारियों एवं 11 टैंकों (ठीक हालत में मौजूद टैंकों) के साथ 11 सितंबर को आत्मसमर्पण कर दिया। यह किताब बरार की सैन्य रचनाओं की संग्रह है, जिनमें उन्होंने अपने निजी अनुभवों, ऐतिहासिक घटनाओं, सैन्य परिपाटी, परंपराओं और लोकथाओं के उद्भव का जिक्र किया है। ड्रमर्स कॉल का प्रकाशन द ब्राउजर ने किया था। इसकी कीमत 690 रुपये है।

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