नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम दिल्ली उच्च न्यायालय से सोमवार को किसी भी तरह की राहत हासिल करने में नाकाम रहे। अदालत ने आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले में उनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि जांच अग्रिम चरण में है और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।
उच्च न्यायालय ने चिदंबरम की याचिका खारिज करने के दौरान कड़ी टिप्पणियां करते हुए कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगर चिदंबरम के खिलाफ मामला साबित हुआ तो यह समाज, अर्थव्यवस्था, वित्तीय स्थिरता और देश की अखंडता के साथ किया गया अपराध है। अदालत ने कहा कि चिदंबरम के विदेश भागने का खतरा नहीं है और इस बात का भी अंदेशा नहीं है कि वह सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं लेकिन अगर उन्हें जमानत दी गई तो वह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि आर्थिक अपराध एक अलग वर्ग हैं और यह खुद एक वर्ग बनाते हैं, क्योंकि यह लोक प्रशासन में ईमानदारी और शुद्धता की जड़ को काट देता है। यह चुनी हुई सरकार में जनता के विश्वास का खत्म करता है। चिदंबरम (74) को 21 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। तब से वह हिरासत में हैं। अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि चिदंबरम मजबूत वित्त और गृह मंत्री रहे हैं और फिलहाल वह राज्यसभा के सदस्य हैं। अदालत ने कहा, ‘‘ वह उच्चतम न्यायालय की बार एसोसिएशन के सम्मानजनक सदस्य हैं। वह वरिष्ठ अधिवक्ता के तौर पर लंबे वक्त तक बार में रहे हैं। उनकी भारतीय समाज में गहरी जड़े हैं और शायद विदेश में भी कुछ संपर्क हैं।’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ लेकिन वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, जांच अग्रिम चरण में है। लिहाजा, यह अदालत उन्हें जमानत देने को तैयार नहीं है।’’ उनके विदेश भागने के संबंध में न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा पासपोर्ट को जमा कराने, लुक आउट नोटिस जारी करने और आरोपी के बिना अदालत की इजाजत के देश से बाहर नहीं जाने (यहां तक के नेपाल और भुटान के जरिए भी) जैसी शर्तें लगाकर रोका जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘ रिकॉर्ड पर इस तरह का कोई साक्ष्य नहीं लाया गया कि चिदंबरम ने भारत से भागने की कोशिश की है।’’
न्यायाधीश ने विदेश भागने के मुद्दे पर चिदंबरम की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों से सहमति जताई जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों को खारिज कर दिया। सबूतों के साथ छेड़छाड़ के मामले पर अदालत ने कहा कि मामले से संबंधित दस्तावेज सीबीआई, सरकार और अदालत के पास हैं। न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ याचिकाकर्ता संसद का सदस्य होने के अलावा सत्ता में नहीं है। इसलिए मेरे विचार से चिदंबरम द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ की कोई आशंका नहीं है।’’
चिदंबरम संप्रग सरकार में 2004 से 2014 के बीच वित्त और गृह मंत्री थे। उन्हें उनके जोर बाग स्थित घर से गिरफ्तार किया गया था। वह तीन अक्टूबर तक न्यायिक हिरासत में हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि चिदंबरम को न्यायिक हिरासत में भेजने का निचली अदालत का फैसला ‘न्यायोचित’ है। उन्होंने नियमित जमानत के लिए निचली अदालत का रुख न करके सीधे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
सीबीआई ने 15 मई 2017 को एक प्राथमिकी दर्ज की थी और आरोप लगाया था कि चिदंबरम के वित्त मंत्री रहने के दौरान 2007 में आईएनएक्स मीडिया समूह को 305 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश हासिल करने के लिये एफआईपीबी की मंजूरी देने में अनियमितता की गई। इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय ने भी इस संदर्भ में 2017 में धनशोधन का एक मामला दर्ज किया था।