नयी दिल्ली। जहां देश में कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है वहीं दूसरी ओर कोरोना फैलने को लेकर एक अध्ययन में बड़ा खुलासा हुआ है। कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर के मद्देनजर देश में टीकाकरण अभियान को तेज किया गया है ताकि आने वाले समय में कोरोना को फैलने से रोका जा सके और लोगों की जान बचाई जा सके। आप भी जानिए कि आखिर पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) द्वारा किए गए एक नए शोध में कोरोना वायरस फैलने को लेकर क्या कहा गया है।
पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) द्वारा किए गए एक नए शोध में सामने आया है कि कोरोना वायरस फैलने के लिए जैव ईंधन के जलने के दौरान उत्सर्जित काले कार्बन का ही सहारा लेता है और यह अन्य अभिकणीय पदार्थ (पीएम) 2.5 कणों के साथ नहीं फैलता है।
जर्नल 'एल्सेवियर' में प्रकाशित शोध सितंबर से दिसंबर 2020 के दौरान दिल्ली से एकत्रित पीएम 2.5 और काला कार्बन के 24 घंटे के औसत आंकड़ों पर आधारित है। पीएम 2.5 ऐसे सूक्ष्म कण होते हैं जोकि सांस के द्वारा शरीर में गहराई से प्रवेश करते हैं और फेफड़ों एवं श्वसन प्रणाली में सूजन पैदा करते हैं। इसके कारण कई बीमारियों होने के साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी आती है। पीएम 2.5 में अन्य सूक्ष्म कणों के साथ ही काला कार्बन भी शुमार रहता है। अलग-अलग तरह के ईंधन के जलने पर काला कार्बन उत्सर्जन होता है।
शोध के लेखक अदिति राठौड़ और गुफरान बेग ने कहा कि कई अध्ययन में कोविड-19 के बढ़ते मामलों को वायु प्रदूषण से जोड़ा गया है। उन्होंने कहा कि इटली में किए गए एक शोध में पीएम 2.5 के स्तर और कोरोना वायरस के मामलों का आपस में संबंध दर्शाया गया है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक बेग ने कहा, '' हालांकि, हमारे शोध में यह दलील दी गई है कि पीएम 2.5 के सभी कणों में कोरोना वायरस नहीं होता है। हालांकि, कोरोना वायरस फैलने के लिए जैव ईंधन के जलने के दौरान उत्सर्जित काला कार्बन का ही सहारा लेता है।''
शोध में कहा गया, '' दिल्ली कोरोना वायरस संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित रही। हालांकि, जब लगभग छह महीने बाद हालात सामान्य होने के साथ मृतक संख्या में कमी दर्ज की जाने लगी, तो अचानक ही संक्रमण के नए मामलों में 10 गुना से अधिक का इजाफा दर्ज किया गया। ऐसा पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं के बाद देखने में आया।''